आलोक धन्वा ने गिनी चुनी कविताएं लिखी है.. पर सारी की सारी अविस्मरणीय हैं.. गोली दागो पोस्टर, जनता का आदमी, पतंग, भागी हुई लड़कियाँ, ब्रूनों की बेटियाँ..आलोक धन्वा की उमर पचपन साठ से कम क्या होगी.. मगर कुल जमा उनका एक ही संग्रह छपा है..दुनिया रोज़ बनती है.. आज ही देखने को मिला .. कई कविताएं ऐसी कि साफ़ लगता है कि वे संग्रह की पृष्ठ संख्या को सैकड़े के करीब धकेलने के लिए लिखीं गईं हैं.. पुरानी वाली राय संकट में आ गई.. रायों के साथ ये बहुत होता है.. कुछ नया तथ्य मिलते ही उनका अस्तित्व खतरे में पड़ जाता है.. क्या करूँ.. राय बनाना ही छोड़ दूँ क्या..?पिछले दिनों आलोक धन्वा अपनी कविता के कारण नहीं अपने निजी प्रसंगों के चलते चर्चा में रहे.. साथ ही उनकी कविता 'भागी हुई लड़कियाँ' का भी ज़िक्र होता रहा.. कविता मेरी पढ़ी हुई थी पर पास में नहीं थी.. मेरे निवेदन पर मेरे पुराने अज़ीज़ इरफ़ान ने यतन से आलोक जी के संग्रह की एक प्रति मुझे सप्रेम प्रेषित कर दी .. इरफ़ान इस तरह के कामों के लिए हमेशा प्रसिद्ध भी रहे हैं दोस्तों के बीच.. वो जिन दूसरे तरह के कामों के लिए भी प्रसिद्ध रहे हैं.. उनकी बात मैं यहाँ नहीं करूंगा..
वापस आलोक जी पर लौटते हुए पढ़ने वालों से मेरा आग्रह यही रहेगा कि वे कविता को कवि के निजी जीवन की छाया से स्वतंत्र करके पढ़े.. बावजूद इसके भागी हुई लड़कियां वास्तविक से ज़्यादा एक रूमानी दुनिया का खाका खींचती सी लगती है... मेरी ये राय कविता के शब्दों को कुंजी पटल पर पीटते हुए बनी है.. इसे बहुत कान न दें.. राय ही तो है..
भागी हुई लड़कियाँ
एक
घर की ज़ंजीरें
कितना ज़्यादा दिखाई पड़ती हैं
जब घर से कोई लड़की भागती है
क्या उस रात की याद आ रही है
जो पुरानी फ़िल्मों में बार बार आती थी
जब भी कोई लड़की घर से भागती थी?
बारिश से घिरे वे पत्थर के लैम्पपोस्ट
सिर्फ़ आँखों की बेचैनी दिखाने-भर उनकी रोशनी?
और वे तमाम गाने रजतपर्दों पर दीवानगी के
आज अपने ही घर में सच निकले?
क्या तुम यह सोचते थे कि
वे गाने सिर्फ़ अभिनेता-अभिनेत्रियों के लिए
रचे गए थे?
और वह खतरनाक अभिनय
लैला के ध्वंस का
जो मंच से अटूट उठता हुआ
दर्शकों की निजी ज़िंदगियों में फैल जाता था?
दो
तुम तो पढ़कर सुनाओगे नहीं
कभी वह ख़त
जिसे भागने से पहले वह
अपनी मेज़ पर रख गई
तुम तो छिपाओगे पूरे ज़माने से
उसका संवाद
चुराओगे उसका शीशा, उसका पारा,
उसका आबनूस
उसकी सात पालों वाली नाव
लेकिन कैसे चुराओगे
एक भागी हुई लड़की की उम्र
जो अभी काफ़ी बची हो सकती है
उसके दुपट्टे के झुटपुटे में?
उसकी बची खुची चीज़ों को
जला डालोगे?
उसकी अनुपस्थिति को भी जला डालोगे?
जो गूँज रही है उसकी उपस्थिति से
बहुत अधिक
सन्तूर की तरह
केश में
तीन
उसे मिटाओगे
एक भागी हुई लड़की को मिटाओगे
उसके ही घर की हवा से
उसे वहाँ से भी मिटाओगे
उसका जो बचपन है तुम्हारे भीतर
वहाँ से भी
मैं जानता हूँ
कुलीनता की हिंसा!
लेकिन उसके भागने की बात
याद से नहीं जाएगी
पुरानी पवन चक्कियों की तरह
वह कोई पहली लड़की नहीं है
जो भागी है
और न वह अन्तिम लड़की होगी
अभी और भी लड़के होंगे
और भी लड़कियाँ होंगी
जो भागेंगे मार्च के महीने में
लड़की भागती है
जैसे फूलों में ग़ुम होती हुई
तारों में ग़ुम होती हुई
तैराकी की पोशाक में दौड़ती हुई
खचाखच भरे जगरमगर स्टेडियम में
चार
अगर एक लड़की भागती है
तो यह हमेशा ज़रूरी नहीं है
कि कोई लड़का भी भागा होगा
कई दूसरे जीवन प्रसंग हैं
जिनके साथ वह जा सकती है
कुछ भी कर सकती है
सिर्फ़ जन्म देना ही स्त्री होना नहीं है
तुम्हारे टैंक जैसे बन्द और मज़बूत
घर से बाहर
लड़कियाँ काफ़ी बदल चुकी हैं
मैं तुम्हे यह इजाज़त नहीं दूँगा
कि तुम अब
उनकी सम्भावना की भी तस्करी करो
वह कहीं भी हो सकती है
गिर सकती है
बिखर सकती है
लेकिन वह खुद शामिल होगी सब में
ग़लतियाँ भी खुद ही करेगी
सब कुछ देखेगी
शुरु से अन्त तक
अपना अन्त भी देखती हुई जाएगी
किसी दूसरे की मृत्यु नहीं मरेगी
पाँच
लड़की भागती है
जैसे सफ़ेद घोड़े पर सवार
लालच और जुए के आर-पार
जर्जर दूल्हों से कितनी धूल उठती है!
तुम
जो
पत्नियों को अलग रखते हो
वेश्याओं से
और प्रेमिकाओं को अलग रखते हो
पत्नियों से
कितना आतंकित होते हो
जब स्त्री बेखौफ़ भटकती है
ढूँढ़ती हुई अपना व्यक्तितव
एक ही साथ वेश्याओ और पत्नियों
और प्रेमिकाओं में!
अब तो वह कहीं भी हो सकती है
उन आगामी देशों में भी
जहाँ प्रणय एक काम होगा पूरा का पूरा!
छह
कितनी कितनी लड़कियाँ
भागती हैं मन ही मन
अपने रतजगे, अपनी डायरी में
सचमुच की भागी हुई लड़कियों से
उनकी आबादी बहुत बड़ी है
क्या तुम्हारे लिए कोई लड़की भागी?
क्या तुम्हारी रातों में
एक भी लाल मोरम वाली सड़क नहीं?
क्या तुम्हे दाम्पत्य दे दिया गया?
क्या तुम उसे उठा लाए
अपनी हैसियत अपनी ताक़त से?
तुम उठा लाए एक ही बार में
एक स्त्री की तमाम रातें
उसके निधन के बाद की भी रातें!
तुम नहीं रोए पृथ्वी पर एक बार भी
किसी स्त्री के सीने से लगकर
सिर्फ़ आज की रात रुक जाओ
तुम से नहीं कहा किसी स्त्री ने
सिर्फ़ आज की रात रुक जाओ
कितनी कितनी बार कहा कितनी
स्त्रियों ने दुनिया भर में
समुद्र के तमाम दरवाज़ों तक दौड़ती हुई आईं वे
सिर्फ़ आज की रात रुक जाओ
और दुनिया जब तक रहेगी
सिर्फ़ आज की रात रहेगी।
राजकमल प्रकाशन द्वारा प्रकाशित 'दुनिया रोज़ बनती है' से साभार



When you kiss me / Fever when you hold me tight / Fever / In the morning /Fever all through the night





और इस परिघटना का दूसरा छोर होगा कि व्यक्ति अपनी कोई छवि बनने ही न दे.. बनते ही तोड़ दे.. छवि व्यक्ति नहीं है.. व्यक्ति की काल्पनिक या आभासी अनुकृति है जो दूसरों के मानस में अंकित होते है.. व्यक्ति के द्वारा किए गए कार्यकलापों द्वारा ही इसका निमार्ण होने के बावजूद, इस पर व्यक्ति का अधिकार नहीं होता..मैं अपनी छवि पर अपना अधिकार चाहता भी नहीं.. वह दूसरे का अधिकार क्षेत्र है.. वो वही सम्हाले.. दूसरे मेरे बारे में क्या सोचते हैं इस के प्रति मैं बहुत परेशान नहीं होना चाहता.. मैं उनकी सोच को नियंत्रित नहीं करना चाहता.. और साथ ही साथ इस स्थिति की पलट-स्थिति से भी बचना चाहता हूँ.. जब कि मेरी अपनी छवि मुझे नियंत्रित करने लगे.. दूसरे मेरे बारे में जो सोचते हैं मैं उसी से निर्धारित होने लगूँ.. लोगों ने मेरे बारे में बाबा की स्वामी की छवि बना ली.. मुझे भी अच्छा लगने लगा.. और मैं बाबा हूँ नहीं.. पर छवि के दबाव में बाबा होने की कोशिश करने लगा..
मैं ऐसी किसी भी बाध्यता से बचना चाहता हूँ.. और किसी भी आगामी बदलाव की लहर के लिए.. नए प्रभाव के लिए अपने आप को खुला, लचीला व स्वतंत्र रखना चाहता हूँ.. ताकि नए विचारों, नए जीवन का बिना किसी भय और बोझ के बढ़ कर स्वागत कर सकूँ.. बाबा बनने में कोई तकलीफ़ नहीं.. पर अन्दर की स्फूर्ति से बन गया तो बन गया.. मगर लोगों द्वारा आरोपित छवि के दबाव में बाबा बन जाने से बेहतर है कि ऐसी छवि का विध्वंस कर दिया जाय..
सूचना १) एक प्रकार के पाम या ताड़ के पेड़ का नाम भी बजर बट्टू है.. 

