बुधवार, 14 नवंबर 2007

न्यायसंगत हिंसा?

बुद्धदेब भट्टाचार्य का कहना है कि सीपीएम के कार्यकर्ता अपने घरों से दूर थे और वे अपने घर लौटना चाहते थे. जब उनसे पूछा गया कि सीपीएम के कार्यकर्ताओं ने घर लौटते हुए हिंसा की है, तो उन्होंने आरोप लगाया कि हथियारबंद तृणमूल कार्यकर्ताओं ने पहले सीपीएम के लोगों को घरों से खदेड़ा था. उन्होंने कहा, "उन्होंने जैसा किया था वैसा ही पाया."

बुद्धदेब ने आरोप लगाया कि भूमि उच्छेद प्रतिरोध कमेटी के कार्यकर्ताओं को माओवादियों ने हथियार दिए हैं और प्रशिक्षण भी दिया है. उन्होंने स्वीकार किया कि नंदीग्राम के इलाक़े में पुलिस नहीं जा पा रही है.
(बीबीसी की रपट से)


एक मुख्यमंत्री के ऐसे बयान का मतलब है कि उनकी पुलिस और प्रशासन क़ानून का राज क़ायम करने में असफल और अक्षम है। और सीपीएम एक दल के तौर पर पुलिस से अधिक बल और सामर्थ्यवान है तो क्यों न पश्चिम बंगाल में राज्य व्यवस्था को भंग करके राज्य की पूरी बागडोर पार्टी के हाथों ही सौंप दी जाय। जो कि देश के संविधान के विरुद्ध होगा.. चूंकि पश्चिम बंगाल की सरकार का़नून व्यवस्था का़यम रखने में न सिर्फ़ पूरी तरह से असफल रही है बल्कि एक दंगाई दल का खुले आम समर्थन भी कर रही है, अतः संविधान के अनुसार होना तो यह चाहिये कि वहाँ राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया जाय।

और चूँकि बुद्धो बाबू के बयान यह भी कह रहा है कि सीपीएम के कार्यकर्ताओं को अपना घर हासिल करने के लिए एक व्यापक हिंसा अभियान करने का हक़ है तो नरेन्द्र मोदी के गुण्डों को गोधरा का बदला लेने का हक़ भी सिद्ध हो जाता है। इस तरह से तो देश के हर अपराधी को खुला अपराध करने की छूट मिल जानी चाहिये बशर्ते उसके पास तो बस बंदूक उठाने की एक वज़ह हो। वो गोली मारने के बाद कह सकता है कि मरने वाले ने उसे माँ की गाली दी थी.. और बस उसकी हिंसा न्यायसंगत हो जाएगी।

इस हिंसा के तांडव ने मुझे अपने देश और मानवता के भविष्य के प्रति बुरी तरह से चिंतित कर दिया है.. क्या हम कभी भी इतने सभ्य और विवेकवान न हो सकेंगे कि कम से कम अपने जैसे मनुष्यों के प्रति हिंसा की वृत्ति का शमन कर सकें ? उत्तर में कश्मीर में रोज़ाना हिंसा हो रही है, पश्चिम में ‘शांतिप्रिय’ गुजरात की ऐतिहासिक हिंसा को कैसे भुला सकेगा, दक्षिण में तमिल ईलम की हिंसा से भी भारत के तार जुड़े हुए हैं, पूरे का पूरा उत्तर पूर्व हिंसा से पहले ही कम जल रहा था कि वामपंथी बंगाल ने भी अपना नक़ाब नोंचकर फ़ासीवादी चेहरा दिखा दिया।



पढ़ें कैसे माकपा ने कब्जियाया नन्दिग्राम

5 टिप्‍पणियां:

Shiv ने कहा…

"और सीपीएम एक दल के तौर पर पुलिस से अधिक बल और सामर्थ्यवान है तो क्यों न पश्चिम बंगाल में राज्य व्यवस्था को भंग करके राज्य की पूरी बागडोर पार्टी के हाथों ही सौंप दी जाय।"

पार्टी हमेशा सरकार से ज्यादा पॉवरफुल से रही है. सरकार के छोटे से छोटे काम, जैसे ट्रैफिक नियंत्रण और बड़े से बड़े काम, जैसे पुलिस प्रशासन में भर्ती, पार्टी के कैडर ही करते आए है.

समूह बनाकर हिंसा करना इनके लिए कोई नई बात नहीं है. गाँवों में किसी निरीह महिला की जमीन दखल करना हो तो उसे डायन करार देकर उसे भीड़ से पिटवा देना बहुत पुरानी चाल है इस पार्टी की. हिंसा को सही ठहराने की जो महारत तथाकथित 'धार्मिक' संगठनों ने हासिल कर लिया है, उसमें भी ये लोग पीछे नहीं है. सालों पहले किए गए भूमि सुधार का बार-बार जिक्र कर के कुछ भी कर गुजरने का लाईसेंस हासिल कर लिया, इस सोच पर जीने वाले लोग हैं ये.

Farid Khan ने कहा…

भूमंडलीकरण अपना पैर पसार रहा है। चाहे वामपंथी हों या दक्षिणपंथी सभी उस प्रक्रिया का चक्का चला रहे हैं। पूंजीवाद की विषेशता है तानाशाही , और तानाशाही कम्युनिस्टों को बहुत सुहाता है।

अनूप शुक्ल ने कहा…

पिछली कलकत्ता यात्रा में मैंने देखा कि एक ट्रैफ़िक पुलिस् वाले के साथ चार पार्टी वाले लगे थे। पार्टी का जलवा है। :)

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

अपनें राजनैतिक फायदे के लिए ये नेता कुछ भी कर सकते हैं...यह बात बार-बार सामनें आ चुकी है...इन्हें किसी के दुख-दर्द से कोई मतलब नही...यह बात आज कमोबेश सभी पार्टीयों पर लागू होती है।...

Tarun ने कहा…

sunane me ho sakta hai achha na lage, ye sirf shuruat hai

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