
बात असल में सीधी सी है.. पाकिस्तान में अगर सचमुच निष्पक्ष चुनाव करा दिये तो हो सकता है कि जेहादी जीत जायँ.. या फिर नवाज़ शरीफ़.. अब एक को अमरीका बरदाश्त नहीं कर सकता और दूसरे को जनरल साहब। मगर लोकतंत्र का ड्रामा तो माँगता है न अमरीकी प्रचार तंत्र को ! तो लो बेनज़ीर पर मांडवली कर डाली, मगर जनरल अपने कपड़े भले उतार दें पर कुर्सी से नहीं उतरेंगे। होगा ये कि पूरे सरकारी ताम-झाम के तहत बेनज़ीर का तानाशाही के खिलाफ़ लोकतांत्रिक प्रतिरोध जनरल द्वारा प्रायोजित किया जाएगा.. ताकि जब बेनज़ीर भारी मतों से जीत कर वज़ीरेआज़म की गद्दी पर विराजें तब शेष दुनिया को ये विश्वास दिलाया जा सके कि अब पाकिस्तान को अमरीका और जनरल मिलकर नहीं.. सच में पाकिस्तान की जनता ही चला रही है।
कितना बड़ा पाखण्ड है ये.. कि पक्ष तो हम हैं ही.. और विपक्ष चाहिये.. तो लो उसका भी हम आयोजन किये देते हैं। जैसे साबुन बनाने वाली कम्पनियाँ.. अलग अलग नाम से पचीस साबुन बनाती हैं.. कोई भी खरीदो.. पैसा उन्ही की जेब में जाएगा। लोभ और लालच से संचालित, दुनिया भर में मानवता के सीने पर सवार ये बाज़ार- किस हद तक जा सकता है .. उसका एक और नमूना।

4 टिप्पणियां:
अभय जी,यह बात तो बिल्कुल सच है की पाकिस्तान में राज किसी का भी हो...पर चलेगा अमरीका का ही ....जनता को धोखा देना...और ताना शाही तो पाकिस्तान kaa जन्म सिद्दि अधिकार है ही...पाकिस्तन मे जब तक कोई बड़ी क्रांती नही होती कुछ बदलने वाला नही।
वाकई मे दुर्भाग्य सा ही है की हमारे ही पड़ोस मे लोग ऐसी जिन्दगी जीने को मजबूर हैं.
अब जनरल साहब ने कह दिया है....अब तो पाकिस्तान में उत्सव का माहौल हो जाना चाहिए...
भाई अकेली जान को कोई सहयोग न करेगा तो ई सब तो करबै करेगा। :)
एक टिप्पणी भेजें