शनिवार, 20 अक्टूबर 2007

मेरी माँ का अपना ब्लॉग


मेरी माँ की पारम्परिक शिक्षा सुव्यवस्थित तरह से नहीं हुई.. जो भी पढ़ा-जाना..स्वयं-शिक्षा से सम्भव हुआ.. एक पुरुषवादी समाज में एक स्त्री को जो हमेशा दोयम दरज़े पर धकेला जाता रहा है.. इस प्रवृत्ति के प्रति वे हमेशा सचेत रही हैं.. कहने का अर्थ यह नहीं कि मेरे पिता कोई राक्षस थे.. बस एक पुरुषवादी समाज में एक पुरुष थे.. और क्रांतिकारी नहीं थे.. फिर भी उन्होने अपने स्तर पर मेरी माँ की प्रतिभा को एक सामाजिक मंच देने की कोशिशें की.. पर वह उनके जीवन का उद्देश्य नहीं था.. मम्मी की प्रतिभा को दुनिया के सामने प्रकाशित कर देना मेरा भी जीवन उद्देश्य नहीं.. बस अपने स्तर पर जो कर सकता हूँ कर रहा हूँ..


काफ़ी दिनों से मम्मी की कविताओं का ब्लॉग खोलना चाह रहा था.. मगर मैं मुम्बई से निकल नहीं पा रहा था.. फोन पर मम्मी से कविताओं को लेना सम्भव नहीं था.. अब वे उमर के उस मकाम पर पहुँच गई हैं जहाँ आप को दूसरों की आवाज़े स्पष्ट नहीं सुनाई देतीं.. तो इस दफ़े कानपुर जा कर उनकी कविताओं को सहेज लाया हूँ और धीरे धीरे उनके अपने ब्लॉग पर चढ़ाता रहूँगा.. उम्मीद है आप लोग मेरी माँ के भीतर के कवि का उत्साह-वर्धन करेंगे.. अपने ब्लॉग का नाम उन्होने स्वयं चुना है.. जीवन जैसा मैंने देखा.. आप देखें और टिप्पणी अवश्य करें..

13 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

अच्छा काम शुरू किया। बधाई। यह ब्लाग रजिस्टर कराकर नियमित रूप से कवितायें पोस्ट करें।

काकेश ने कहा…

धन्यवाद आपको इस नेक काम के लिये.

anuradha srivastav ने कहा…

बहुत अच्छे बेटे है आप।

बेनामी ने कहा…

बधाई के पात्र कार्य.

Sanjeet Tripathi ने कहा…

बहुत बढ़िया। बधाई

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत आभार. इन्तजार था इसी का.

आभा ने कहा…

बहुत आनन्द दायक काम है यह। मां की कविता लगातार पढ़ने को मिलेगी।

Pankaj Oudhia ने कहा…

स्वागत है।

Asha Joglekar ने कहा…

आपकी माँ की कविताएँ बहुत ही सुंदर हैं । उनका यह ब्लॉग प्रकाशित कर आपनेइन कविताओं के साथ भी न्याय किया है और हमारे साथ भी ।

Gyan Dutt Pandey ने कहा…

चलो, उनके ब्लॉग पर तुम्हारी शिकायत तो कर पायेंगे!

ePandit ने कहा…

बहुत अच्छा कदम अभय भाई। मैंने भी अपने पिताजी का ब्लॉग खुलवाने का बहुत पहले सोचा था लेकिन वो कम्प्यूटर से एकदम दूर भागते हैं, इसलिए टालना पड़ा।

एक बात की ओर ध्यान दिलाना चाहूँगा, ब्लॉग का सबडोमैन (jeevanjaisamainedekha) रोमनागरी में ज्यादा लम्बा रखने से लोगों को वर्तनी याद रखने में और टाइप करने में दिक्कत होती है, जिससे चाह कर भी कई बार लोग ब्लॉग तक पहुँच नहीं पाते।

अजित वडनेरकर ने कहा…

बहुत पुण्य का काम किया है अभय भाई...
हम ज़रूर देखेंगे , पढेंगे और गुनेंगे ..

अभय तिवारी ने कहा…

माँ के ब्लॉग का नया पता http://vimlatiwari.blogspot.com/ है.. ऊपर दिया गया लिंक काम नहीं करेगा.. क्योंकि पता बदल गया है.. और लिंक को अब बदलने से पोस्ट की तारीख बदल जायेगी.. जिसके दूसरे तमाम लोचे हैं.. इसलिए उसे न छेड़ते हुए, दूसरी जगह के अलावा यहाँ पर भी सूचित कर रहा हूँ..

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