घुघूती बासूती जी ने मुझे टैग किया.. और प्रश्नोत्तरी के इस खेल में मुझे भी शामिल कर लिया है.. इसके लिये मैं उनका शुक्रिया करता हूँ.. और ये रहे मेरे जवाब...
प्रश्न१: एक अच्छी पुस्तक और एक अच्छे टी वी कार्यक्रम में से आप क्या चुनेंगे ?
मूड पर डिपेन्ड करेगा..
अगर पैर फैला कर अलसाने का मूड है.. तो शायद टी वी देखने लग पडूंगा.. अक्सर ऐसा होता है कि कोई नयी किताब पढ़े महीने गुज़र गये.. फिर कोई जिज्ञासा सर उठाती है... और उस जिज्ञासा के शमन के लिये किताबें जुटाता हूँ.. दोस्तों से माँगता हूँ.. खरीदता हूँ.. और तब पढ़ता हूँ.. उपन्यास पढ़ने मे मेरी अब कोई दिलचस्पी नहीं बची है.. धर्म, दर्शन, भाषा और इतिहास में दिमाग़ फँसा रहता है... ज़्यादातर वक़्त मैं किताबों को सन्दर्भ ग्रन्थ की तरह इस्तेमाल करता हूँ.. पढ़ता हूँ.. भूलता हूँ और फिर पढ़ता हूँ ... सच पूछिये तो ब्लॉग खोलने के बाद साथी ब्लॉगियों को पढ़ते हुये ही मैं संस्मरण, व्यंग्य और परिहास के जगत में वापस लौटा हूँ... और अच्छा लग रहा है..
अगर मूड जिज्ञासु हुआ हो.. तो फिर मैं सब कुछ छोड़ कर किताब ही पढ़ूंगा..
और यदि उसी विषय पर टी वी कार्यक्रम है जिस पर कि पुस्तक तो सम्भवतः टी वी देख लूंगा.. क्योंकि उद्देश्य जिज्ञासा को शांत करना है और टी वी देखने में श्रम कम है..
प्रश्न२: यदि एक सप्ताह तक आपको कमप्यूटर से दूर रहना पड़े तो आपको कैसा लगेगा ?पता नहीं.. आम तौर पर तो मैं घर में ही रहता हूँ.. कई दफ़े अपने फ़्लैट से निकले भी हफ़्ता निकल जाता है.. और फिर यदि शहर से बाहर गया तो जहां जाता हूँ.. अपना लैपटॉप साथ लिये जाता हूँ। अगर मान लूं कि ऐसे हालात आते हैं तो पहले कुछ दिन तो अच्छा नहीं ही लगेगा... फिर हालात के साथ समझौता कर के अपने लिये कोई और शग़ल खोज लूंगा...
प्रश्न३: यदि आपकी सलाह से भगवान काम करने लगे तो आप उसे पहली सलाह क्या और क्यों देंगे ?
ऐसा भला क्योंकर होने लगा.. भगवान नाम की हस्ती के साथ तो पहले गुत्थियां कम थीं क्या .. आप ने एक और इजाफ़ा कर दिया.. खैर..
शायद इसी प्रश्न को दूसरी तौर पर ऐसे भी पूछा जा सकता था कि क्या हो जाने से दुनिया की( मेरी समेत) आफ़तें कम हो जायेंगी.. मेरा फ़िलहाल कुछ दिनों से ये खयाल पुख्ता हो रहा है.. कि आस्था के मजबूत होने से अधिकतर मुसीबतें हल हो सकती हैं.. कुछ तो मुसीबतें होती हैं, जो वास्तविक होती हैं.. और कुछ हमारे दिमाग़ मे उनका हौवा होता है..वो मुसीबत से भी बड़ी मुसीबत होती है। कम से कम मेरे दिमाग़ मे तो होती है.. जो पूरी तरह कल्पित और हालात पर थोपा हुआ होती है.. अगर हमें भविष्य को लेकर तमाम तरह की बेहूदी तस्वीरों से अपने मन को सुरक्षित रखें तो वर्तमान की ढेर सरी असुरक्षाओं से बच जायेंगे.. ऐसा मेरा खयाल है.. मैं खुद ऐसी अवस्था प्राप्त करने में निहायत असमर्थ हूँ...
मानवता का हित चाहने वाले जितने भी सच्चे महापुरुष हुये हैं.. सबने एक दो बातों पर विशेष बल दिया... यक़ीन रखो.. आस्था रखो.. और आज मे जियो.. कृष्ण ने कहा कि फल की चिन्ता मत करो.. बुद्ध ने कहा अपरिग्रह... संचय मत करो... एपिकुरिअन ने कहा खाओ पियो और मौज करो( हालांकि उसकी इस सादा जीवन उच्च विचार के दर्शन को अक्सर लोगों ने भोगवाद समझने की ग़लती की).. ईसा ने तो कहा ही है कि सुई के छेद से ऊँट गुज़र सकता है पर अमीर आदमी का स्वर्ग में प्रवेश मुश्किल है.. और बगैर कल के लिये संचय किये कोई अमीर कैसे होगा... मोहम्मद साहब ने कहा कि ज़रूरत भर का रखो बाकी ज़रूरतमंदो में बांट दो.. उनके निजी जीवन के बारे मे एक बात शायद कम लोगों को पता होगी कि उनकी मृत्यु के समय उनकी ढाल अनाज के व्यापारी के पास गिरवी पड़ी थी.. बावजूद इसके कि वो खुद एक सफ़ल व्यापारी रह चुके थे.. वो दिन भर जो कुछ कमाते वो शाम तलक गरीबों में बांट देते। हमारे हाल के संत साईं बाबा जो आजकल काफ़ी लोकप्रिय हैं.. और नये बनाये जाने वाले मन्दिरों में उनकी संख्या सबसे ज़्यादा होगी-.. उनका दो शब्दों का संदेश आप कहीं भी पढ़ सकते हैं- श्रद्धा और सबुरी...
तो इतना सब कहने के बाद मैं आखिर में यही कहूंगा.. कि इतने बड़े बड़े लोगों ने कहा है तो ज़रूर तत्त्व की बात होगी और मुझे तो तर्क संगत भी लगती है..लेकिन मुश्किल भी है इसीलिये यदि भगवान इसे सब के लिये सुलभ कर दे तो बड़ा अच्छा हो..
प्रश्न४: यदि आपको किसी पत्रिका का सम्पादक बना दिया जाए तो आप किन चिट्ठाकारों की रचनाएँ अपनी पत्रिका में छापेगें ?
इसके लिये मुझे तो सर्व प्रथम सभी चिठ्ठाकारों के रचना कौशल से परिचित होना पड़ेगा.. जो कि मैं अभी नहीं हूँ.. क्योंकि मैंने जब चिठ्ठा जगत में प्रवेश किया तो मेरे आने के साथ ही यहां इरफ़ान प्रकरण को लेकर एक गरमा गरमी का माहौल बन गया.. इसका मेरे प्रवेश से ज़ाहिरन कोई लेना देना नहीं.. इस माहौल में मैं अभी कुछ लोगों को ही पढ़ पाया हूँ.. उनमें से जो मुझे अच्छे लगे ये ज़रूर बता सकता हूँ.. जैसे बेजी की
सारा के नाम वो चिठ्ठी बहुत ही सन्तुलित और गरिमापूर्ण थी.. फ़ुरसतिया जी का
इसी प्रकरण पर एक लम्बा लेख.. इसके अलावा
रवीश कुमार आजकल अपने अंदर के गुस्से को जिस व्यंग्य के साथ उगल रहे हैं वो काबिले तारीफ़ है.. मेरे मित्र प्रमोद सिंह का
क्रेडिट कार्ड से खरीदारी मेरी तबियत का लेखन है.. और मैने आज ही
शुएब की क़लमकारी को खोजा.. उसकी खुदा सीरीज़ बहुत मज़ेदार है... खुद घुघूती जी का
घुघूती बासूती क्या है लेख बड़ा मार्मिक था.. और भी ना जाने कितनी प्रतिभायें है जिनकी कौशल से मैं अभी अपरिचित हूँ..
प्रश्न५: यदि आपको जीवन का कोई एक दिन फिर से जीने को मिले तो वह कौन सा होगा और क्यों ?मुझे भूलने की बड़ी घटिया बीमारी है.. मैं देखी हुई फ़िल्में भूल जाता हूँ.. पढ़ी हुई किताबें भूल जाता हूँ.. अपना ही जिया हुआ कल भी भूल जाता हूँ.. बड़े शर्म की बात है लेकिन सच है कि मैने अपने छात्रावासीय जीवन के तमाम सहपाठियों को भूल चुका हूँ.. अगर वो इसे पढ़ेंगे तो मुझे पकड़ के पीटेंगे..
चूंकि मैं अपने स्मृति दोष के चलते ऐसा कोई दिन नहीं याद कर सकता जिसे मैं फिर से जीना चाहूँ इसलिये मैं इस प्रश्न के जवाब मे कहूंगा कि वो दिन अभी आया ही नहीं..
ये सोचकर कि इस प्रश्नावली का मूल मक़सद एक दूसरे के बारे मे जानना है तो ये सोच कर मैंने थोड़े विस्तार से उत्तर दिये... लेकिन तमाम बातें रह गईं.. जैसे कि एक मित्र ने मेरे कानपुर का होने पर खुशी ज़ाहिर करते हुये पूछा था कि भैये कहां के हो.. तो मैं इस मंच का सही इस्तेमाल करते हुये बताना चाहूंगा कि मैने अपने बचपन के शुरुआती सात साल आज़ाद नगर मे गुज़ारे.. फिर कुछ साल बुन्देलखण्ड मे रहने के बाद वापस लौटे तो साकेत नगर में रहे जिस दौरान ग्रन्थम प्रेस के वाल्मीकि त्रिपाठी जी का बड़ा बेटा मनीष मेरा अच्छा मित्र बना, जिसका हाल में असमय निधन हो गया..
फिर कुछ वर्ष आनन्दपुरी में रहे और फिर १९८४ में बी एन एस डी से ग्यारहवीं पास करके कानपुर छूट गया। सम्प्रति कानपुर से नाता ये है कि मेरे पिता ने १९७१ मे एक प्लॉट खरीदा था और सन २००० में मैंने खड़े हो कर उस प्लॉट पर मकान बनवाया। दीनदयाल उपाध्याय विद्यालय के सामने स्थित उस घर में मेरी मां और मेरे बड़े भाई रहते हैं।
आशा है कि अब आप मुझे बेहतर प्लेस कर सकेंगे.. और अपनी खबर भी देंगे..
इस सिलसिले को बनाये रखने के लिये मैंने जो पांच नाम चुने हैं वो इस प्रकार हैं..
१. प्रमोद सिंह
२. रवीश कुमार
३. अविनाश
४. प्रियंकर
५. अनिल रघुराज
इन बन्धुओं से मेरे प्रश्न इस प्रकार हैं:
१. आप आस्तिक हैं या नास्तिक और क्यों?
२. सुख की आपकी क्या परिभाषा है.. क्या करने से आप सुखी हो जाते हैं य अगर नहीं हो पा रहे हैं तो क्या हो जाने से आप सुखी हो जायेंगे.. ?
३. क्या आप अपने बचपन मे वापस लौटना चाहेंगे और क्यों या क्यों नहीं..?
४. बतायें कि औरतों के बारे में आपकी क्या राय है.. क्या वे पुरुषों से अलग होतीं हैं .. अगर हां तो किन मायनों में?
५. क्या इस देश के भविष्य के प्रति आप आस्थावान हैं?
मैं चाहूँगा कि ये मित्र इन्हीं प्रश्नों के उत्तर दें अगर इनसे कोई असुविधा होती है तो इन्हे अपने प्रश्न बनाने की आज़ादी है.. अलबत्ता उन प्रश्नों के उत्तर इनके व्यक्तित्त्व का खुलासा करते हों।
और अंत में आप सब को होली की ढेर सारी शुभकामनाएं!