रविवार, 27 जनवरी 2008

ज्ञान जी भी बदल जाएंगे

मेरे कई मित्र नाखुश हैं कि मैने ज्ञान जी के प्रतिक्रियावाद को ढंग से जवाब क्यों नहीं दिया । वे मेरी प्रगतिशीलता पर शक़ तो नहीं करते पर मेरी शीतलता को उनके ‘गोल’ में बने रहने की मेरी दबी हुई इच्छा मानते हैं। मैं अपने दोस्तों से माफ़ी चाहता हूँ (वे चाहें तो इसे उनके 'गोल' में बने रहने की मुखर इच्छा मान सकते हैं) पर मेरे ऐसे ठण्डे जवाब के कुछ कारण हैं;


१) ज्ञान जी का सुर खिलंदड़ा था और उन्हे एहसास नहीं था कि उनका मज़ाक किसी को इतना बुरा लगेगा। मेरे प्रतिक्रिया करने के पहले कई लोगों ने ज्ञान जी के मज़ाक में छिपी हुई स्त्री-विरोधी विचार को चिह्नित कर दिया था.. अगर वे ज़रा भी समझदार हैं तो समझ चुके होंगे कि उनसे क्या गलती हो गई और समझदार नहीं है तो मेरे भी उसी बात को दोहराने से कोई लाभ नहीं होने वाला था.. बल्कि असर उलटा होता। मेरे उनके बीच स्नेह का जो सम्बन्ध है वो टूट जाता। मेरा मानना है कि ज्ञान जी समझदार व्यक्ति हैं और वो पहली प्रतिक्रिया के बाद ही समझ गए थे कि उनसे कुछ ग़लती हो गई। और उन्होने फ़ौरन माफ़ी भी माँग ली थी।


२) मेरा मानना है कि भीतर बैठे हुए संस्कार सिर्फ़ समझदारी से नहीं बदलते.. एक भौतिक प्रक्रिया में बदलते हैं। मैंने अपने निजी अनुभव में पाया है कि एक व्यक्ति जो अपनी बहनों के सर से दुपट्टा थोड़ा सरकते ही उनके माथे पर दुपट्टे को कील से ठोंकने की बात करता था.. अपने बहुओं को जीन्स पहनकर स्कूटर चलाता हुआ देखकर प्रसन्न होता है और उसकी बहनें इस दुभाति व्यवहार के लिए कुढ़ती हैं। एक दूसरा आदमी जिसने कभी अपने हाथ से एक गिलास पानी लेकर नहीं पिया, अपने खाने-पीने को लेकर इतना अड़ियल रहा कि उसकी पत्नी को जीवन भर दो तरह ही की रसोई बनानी पड़ी (एक बाकी सब के लिए और एक उसके लिए)। वही आदमी अपनी बेटी के जल्दी दफ़्तर जाने पर अपनी नातिन के लिए कभी-कभी लंचबॉक्स भी बनाता है। ईवोल्यूशन का सिद्धान्त बताता है कि वातावरण के अनुकूल वांछित परिवर्तन पीढ़ियों के ज़रिये विकसित होते हैं।

३) मेरे पास इतनी ऊर्जा नहीं है कि हर प्रतिक्रियावादी विचार के साथ मैं एक बहस में उतरूँ। ज्ञान जी के अगर किसी विचार से मुझे तक्लीफ़ है मगर उसका सीधा प्रभाव मुझ पर तो पड़ नहीं रहा तो सही है मैं क्यों खर्चा होऊँ? ज्ञान जी झेंलेंगे उनका परिवार झेलेगा। मेरे-आपके बहस करने से थोड़ी बदलती है दुनिया। दुनिया के बदलने की अपनी चाल है।

अगर कोई समझता है कि सभी मनुष्यों को बराबरी का हक किसी वॉल्तेयर साहिब के सिद्धान्त और कुछ फ़्रांसीसी क्रांतिकारियों के बलिदान के चलते मिला है या भारत से जातिवाद किसी गाँधी बाबा या बाबा साहेब के बदौलत खत्म हो रहा है या स्त्रियों के अधिकार किसी रोज़ा लक्ज़्मबर्ग या मैडम क्यूरी की देन है तो ये उनकी ग़लतफ़हमी है। इन महान लोगों का योगदान को कम नहीं कर रहा बस उन्हे उनके समय में स्थापित कर रहा हूँ। ये सारे परिवर्तन इसलिए हुए और हो रहे हैं और होंगे क्योंकि वे एक ऐतिहासिक प्रगति का हिस्सा हैं। पूँजीवाद ने दुनिया में ऐसे भौतिक परिवर्तन कर दिए हैं कि कोई चाह कर भी आदमी के सांस्कृतिक जगत के इन बदलावों को नहीं रोक नहीं सकता।

गाँव में सबको सबकी जाति मालूम होती है। मगर एक बार जब ट्रेन आ गई, और आप को गाँव छोड़कर धंधे की तलाश में शहर जाना पड़ा तो आप नहीं जान सकते कि ट्रेन में आप के बगल में सटकर बैठने वाले अनजान आदमी की जाति क्या है? जाति की जड़ तो कट गई.. कुछ दिनों में पेड़ भी गिर जाएगा। ऐसे ही स्त्रियों के प्रति व्यवहार है जो वैचारिक बहस से नहीं, ठोस व्यवहार में बदलेगा।

४) ब्लॉग की दुनिया बड़ी हो रही है पर इसमें अभी भी एक पारिवारिक भावना बनी हुई है। वो पूरी तरह कब खत्म हो जाएगी या खत्म हो ही जाएगी ठीक-ठीक नहीं कहा जा सकता। पहले-पहले जब हम एक-दूसरे को नहीं जानते थे तो हमारी उनकी बड़ी रार हुई थी, जो उनकी और मेरी पुरानों पोस्टों में देखी जा सकती है। पर अब ज्ञान जी से एक बड़े भाई जैसा सम्बन्ध बन गया है। और अगर बड़ा भाई कुछ ग़लत बात कर भी रहा हो तो उसको जवाब देने का सब का अलग तरीक़ा होता है- मेरा यह तरीक़ा है।

आखिर ‘क़यामत से क़यामत तक’ के सामंतवादी समाज से ‘दिलवाले दुल्हनियाँ ले जाएंगे’ के पूँजीवादी समाज में कुछ तो अंतर है। आप को उम्मीद है कि पिछली पीढ़ी बदल जाएगी।

५) यह सिर्फ़ मेरी अपनी प्रतिक्रिया का मेरे मित्रों के लिए स्पष्टीकरण हैं मेरे उन मित्रों का विरोध नहीं जिन्होने इस मसले पर कड़ा रुख अपनाया है। बड़े भाई ज्ञान जी अगर ऐसी पोस्ट लिखेंगे तो उन्हे लोगों ऐसे कड़े रुख के लिए तैयार भी रहना चाहिये और छोटे भाई शिव कुमार मिश्र को भी।

13 टिप्‍पणियां:

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` ने कहा…

Abhay bhai,
You are coming across the distance as a thorough "Gentleman " !
&
I'm sure , Gyan ji is also one !
Each one of us have our 'life experiences ' to guide & mould us.
Rgds to you & Tanu bhabhi ji
L

बेनामी ने कहा…

तीसरा पॉइंट फ़्रिज्र की तरह ठंडा है।
समाज में परिवर्तन के लिए हर प्राणी की संपूर्ण भूमिका को नकारा नहीं जा सकता है!

Gyan Dutt Pandey ने कहा…

अभय, मैं सहमत तो नहीं होऊंगा। पर यह अवश्य कहूंगा कि तुम मुझे और प्रिय हो गये हो।
इस कमेण्ट के कारण अपने गोल की मुसीबत झेलो! :-)

Shiv ने कहा…

अभय भाई,

बिलकुल तैयार हैं. ज्ञान भैया की पोस्ट पर की गई टिप्पणियों से मुझे कोई परेशानी नहीं थी. मुझे परेशानी इस बात से थी कि ऐसी कोई बात नहीं हुई जिसके लिए तीन-तीन लोगों को पोस्ट लिखने की जरूरत पड़ी. और रही बात मेरी प्रतिक्रिया की, तो वह एक स्वाभाविक प्रतिक्रिया थी.

आप कह सकते हैं कि मैं ज्ञान भैया के ग्रुप में हूँ, आप कह सकते हैं कि मैं उनका भाई हूँ इसलिए मैंने एक पोस्ट लिखी. लेकिन मुझे इस बात का कोई पछतावा नहीं, खासकर तब जब तीन लोगों को उनके ख़िलाफ़ पोस्ट लिखनी पड़ी.

वैसे भी, आपको मेरी पोस्ट पर कोई टिपण्णी करनी चाहिए थी, अगर आपने वो पोस्ट पढ़ी थी.

बेनामी ने कहा…

aap ka nazariya balanced hae aur agar sab ek balnaced nazariya apnaa lae to role reversal kee problem khatam ho jaaygee
koi kab tak sunega aur kyon sunega
aur kyoki hindi blog aggrgatrs per isliyae itni teeka tippani hae . english mae log blog post likh kar bhul jaatae hae haen padne wale padh kar

Yunus Khan ने कहा…

एक अच्‍छा और संयत पूर्णविराम । इति वार्ता: ।

Sanjeet Tripathi ने कहा…

भाई साहब,आपकी यह पोस्ट पढ़कर दिल खुश हो गया।

azdak ने कहा…

मैं सन्‍न नहीं हूं.. क्‍यों होऊं?

Anita kumar ने कहा…

अभय जी इन पिछले तीन चार दिनों में आप की पोस्ट और टिप्पणी के द्वारा जितना आप को जाना है, आप के लिए आदर और बढ़ गया है।

Batangad ने कहा…

अभयजी एक मुलाकात और फोन पर हुई बात के आधार पर आपके बारे में जो धारणा बनी थी। वो, आपकी पोस्टों के बाद और पुख्ता हुई है। अच्छा है ब्लॉग स्वस्थ संवाद का माध्यम बना हुआ है। वरना तो, इस मोड़ पर पहुंचने के बाद खेमेबंदी की बाड़ और ऊंची होने लगती है।

दिनेशराय द्विवेदी ने कहा…

मुहब्बत बनी रहे तो ही तो झगड़े में आनन्द भी होगा और सीखने की कवायद भी।

Priyankar ने कहा…

बहुत संयत और संतुलित विश्लेषण !

आज-कल क्या खाते हो ? खिचड़ी ?

अनूप शुक्ल ने कहा…

बहुत अच्छी लगी यह पोस्ट! बधाई!

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