आइरिश लेखक ब्रायन ओ'नोलन की फ़्लैन ओ’ब्रायन छद्म नाम से लिखी पुस्तक दि थर्ड पुलिसमैन एक ऐसे फँसे हुए आदमी की कहानी है जिसकी जीवन की साध तो अपने पूज्य दार्शनिक पर किए गए शोधकार्य को प्रकाशित कराना है मगर हालात ऐसे बनते हैं कि वह इस काम को अंजाम देने के लिए पैसा जुटाने की जुगत में अपने गाँव के एक बूढ़े की हत्या में सहभागी हो जाता है। और जब लूट के माल को हासिल करने का वक़्त आता है तो एक अजीब सी दूसरी दुनिया में फ़िसल जाता है जो लगती तो सामान्य ही है मगर जहाँ सामान्य दुनिया के कोई नियम काम नहीं करते। जिसमें इमारतें दो-आयामी हैं, सूरज जहाँ से उगता है वहीं से वापस लौट कर डूब भी सकता है, आदमी के परमाणु साइकिल में जा सकते हैं और साइकिल के आदमी में। साइकिल और आदमी प्रेम और विवाह करने के लिए भाग भी सकते हैं।
उपन्यास में एक अनोखी तरलता है जिस पर आप सहजता से विश्वास भी कर सकते हैं और साथ-साथ चकित भी होते चलते हैं। मेरी नज़र में यह एक सफल सर्रियल संसार है बनाम उस असफल सर्रियल संसार के जिसे अनुराग नो स्मोकिंग में रचते पाए गए। खैर! उपन्यास अभी पढ़ ही रहा हूँ इसलिए किसी अन्तिम निष्कर्ष की घोषणा नहीं कर सकता।
एक और खास बात है उपन्यास में – फ़्लैन ओ’ब्रायन लगातार नायक के पूज्य दार्शनिक के विचारों की चर्चा करते चलते हैं जिनका नाम हैं डि सेल्बी। ये पूरी तरह से काल्पनिक चरित्र हैं मगर जिस तरह से इनका ज़िक्र आता है, आप को उनके अस्तित्व पर वैसे ही यक़ीन हो जाता है जैसे किसी भौतिकी की पाठ्य पुस्तक पढ़ते हुए आप को न्यूटन या हाइज़नबर्ग पर। आप उन महानुभावों से मिलते नहीं मगर पूरी किताब में उनका ज़िक्र यहाँ वहाँ और नीचे फ़ुटनोट्स में पढ़ते रहते हैं। उसी तरह डि सेल्बी जनाब के फ़ुटनोट्स भरे पड़े हैं। लेकिन वे दिमाग़ पच्ची नहीं करते, आप को हैरत से भरते हैं। जैसे कि यह विचार कि अगर दर्पणों के एक संजाल का समीचीनता से संरेखण किया जाय तो सतत परावर्तन के ज़रिये भूतकाल में देखा जा सकता है। या यह टुकड़ा..मनुष्य का अस्तित्व एक विभ्रम है जिसके भीतर दिन व रात का अनुषंगी विभ्रम है, जो श्याम वायु के अभिवर्धन से उत्पन्न वातावरण की एक अशौच स्थिति है। किसी भी सचेत व्यक्ति के लिए उचित है कि वह उस महाविभ्रम के मायावी स्वरूप के प्रति जाग्रत हो जाय जिसे मृत्यु कहते हैं।
6 टिप्पणियां:
बाबा रे बड़े पढ़ाकू हैं आप । हम तो सकडिया गए हैं ।
पिछले जन्म में न पढ़ने का पाप भोग रहे हैं....पढ़े और मेरी खून जलाएँ।
भाई युनुस, भाई बोधि.. इतना भी नहीं पढ़ रहा हूँ कि आप लोग नज़र लगा दें... अपनी अलमारी-मेज़ों पर जो अनपढ़ी किताबों को देखता हूँ.. असली खून तो तब जलता है..
जान तो हमारी जल ही गई है अभय भाई...क्योंकि हम तो खूब पढ़ते हैं....जबर्दस्त किताब लग रही है, ऐन वैसी ही जिन पर हम मर मिटने को तैयार हो जाते हैं। और वो फुटनोट वाले दार्शनिक का किरदार ? अद्भुद फार्मेट होगा नॉवेल का।
मजबूरी ये है भाई कि हम मूल अंग्रेजी में इसका आनंद नहीं ले सकते। इतनी गति नहीं है अंग्रेजी में और हिन्दी अनुवाद तो न जाने कब आएगा। आप ही उठा लीजिए न ये बीड़ा ?
इन भाई कमल स्वरूप को क्या हम ओम दर ब दर वाले कमल मानें? हां या ना.
ऐलानिया..
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