बुधवार, 26 सितंबर 2007

एक दिन दिल्ली में दोस्तों के साथ

आजकल दिल्ली में हूँ। प्रमोद भाई पहले से ही दिल्ली में हैं। दिल्ली सालों मेरा घर रहा है-१९८४ से १९९६ तक। जिस बीच मैं इलाहाबाद और मुम्बई रहते हुए भी बार-बार दिल्ली लौटता रहा। मेरे बड़े भाई का घर आज भी यहीं है। इसलिए कानपुर- जहाँ अब मेरा दूसरा भाई और माँ रहतीं हैं- जाने का रास्ता दिल्ली हो कर ही बना हुआ है। इस बार लगभग दो बरस बाद मुम्बई से निकला है। बोधि तो मुझे हमेशा ही कहते रहते हैं कि तुम तो कभी भी आश्रम बना लो क्योंकि तुम ने तो क्षेत्र-सन्यास लिया ही हुआ है। तो इस सन्यासाश्रम से घबरा कर मैं भागा हुआ हूँ। इस पलायित अवस्था में अचानक ढेर सारे दोस्तों के साथ एक पूरा दिन बिताना एक सुखद अनुभव रहा। वैसे तो हम जिस दौर में हैं जहाँ साये भी साथ छोड़ जाते हैं दोस्तों का तो कहना क्या! बावजूद उसके मुझे दोस्तों की कमी कभी खली नहीं। मेरे पुराने दोस्त मेजर संजय और प्रमोद जी से मिलने की बात थी, जगह तय हुई श्रीराम सेंटर का पुस्तक बिक्री केंद्र की, जिसे लोग दिल्ली की एकमात्र हिन्दी किताबों की दुकान मानते हैं(बाकी प्रकाशन घर हैं या वितरण के अड्डे)। इरफ़ान मियाँ, प्रमोद भाई और अविनाश को वहाँ छोड़ अपनी नौकरी बजाने चल दिये। भूपेन अलग दिशा से आए। मैं पहुँचा। मेजर संजय चतुर्वेदी पधारे। रवीश कुमार किसी कहानी की पीछा करते हुए कुछ देर यहाँ भी उसकी बू लेते रहे।


मसिजीवी सुबह की पारी की अध्यापकी करने के बाद घर लौटने के बजाय पुरानी अड्डेबाजी का लुत्फ़ लेने यहाँ ऐसा रुके कि शाम तक रुके रहे। जब सुजाता आईं। उनके आने के पहले जमशेदपुर की रश्मि आईं, कार्टूनिस्ट पवन आए, हिन्दुस्तान के पत्रकार धर्मेन्द्र आए। और सबसे आखिर में सैय्यद मुहम्मद इरफ़ान आए।
कुछ दोस्तों से तो सचमुच पहली ही बार मिला। लेकिन अधिकतर से तो आभासी दुनिया का अंतरंग नाता बना ही हुआ है। लगा ही नहीं कि नए दोस्तों से मिल रहा था। बात करते रहे बैठे हुए, चलते हुए, घूमते हुए। श्रीराम सेंटर की कैंटीन में बतकही, बाहर पेड़ के नीचे चाय के अड्डे की चाय। वापस किताबों की दुकान से किताबों की खरीद और कैंटीन की कॉफ़ी। फिर बंगाली मार्केट की ओर टहलते हुए फ़्रूट मार्ट से केले और बंगाली से मिठाई और दोसा और लौटते में वापस पेड़ के नीचे बैठकी। और आखिर में साहित्य अकादमी की हरी घास पर क्षण भर से ज़्यादा।
देश-दुनिया, टीवी-अखबार, साहित्य-समाज और एक दूसरे के निजी प्रसंगो पर बातों का सिलसिला अबाध चलता ही रहा। शाम ढल गई। अँधेरा हो गया। मेरी भाभी ने फोन पर घर लौटने की बात उठाई और मुझे अपने आजकल के अनुशासित जीवन की याद दिलाई। लोभ तो था कि रमा रहता इस दोस्ताने में देर रात तक पर दोस्ती से भरे दिल में थोड़ी जगह संतोष को भी दी। और अपने भाई के साथ लिफ़्ट ले कर वापस लौट आया।

17 टिप्‍पणियां:

VIMAL VERMA ने कहा…

अभयजी कमाल है आप लोग राजधानी में बैठ कर "मिलन दोस्ती" कर रहे हैं..... अरे आपको ब्लॉगर मीट लिखना अब अटपटा लगने लगा क्या? मेजर संजय को बोलिये कि वो भी शुरू करें..अच्छा लगेगा.. पर आपके शीर्षक पर मुझे एतराज है उसे बदल कर आपको लिखना चाहिये.. दिल्ली में फिर से ब्लॉगर मीट हुआ.. जो वाकई सफल रहा.

बेनामी ने कहा…

समझ आ गया कि कौन कौन दोस्त है ;-)

Sanjay Tiwari ने कहा…

ब्लागर होने पर यात्रा को नये बहाने मिल जाते हैं. चरैवेति.....चरैवेति....

बेनामी ने कहा…

अभयजी और दोस्तों,गुजराती में एक शब्द है 'अदेखाई'।रपट पढ़ कर अदेखाई हो रही है ।

मसिजीवी ने कहा…

मतलब आप माने नहीं, रपट ठेल ही दी :)

बतकही और ठिठोली को मीट बना दिया खैर
सब लोगों से मिलना खूब अच्‍छा रहा।

अनामदास ने कहा…

लोग प्यार से मिले, बातें की, कॉफ़ी पी लेकिन मीट नहीं??? अच्छा लगा कि आपने ब्लागर मीट के क्लिशे से छुटकारा दिलाया. मैं कल्पना कर सकता हूँ, कितना आनंद उठाया होगा आप लोगों ने.

Udan Tashtari ने कहा…

चलिये, यह बढ़िया हो गया कि सब मित्रों से भेंट लिये और फोटो वोटो भी खींच लाये. अच्छी रपट. बधाई.

azdak ने कहा…

अरे, ओ यायावर.. मगर टिप्‍पणीकार्स कहां हैं?.. कम स कम अविनाश को तो अपने दांतों के क्‍लोज़-अप का शुक्रिया अदा करना चाहिए था?..

ePandit ने कहा…

हम्म, तो आप भी ब्लॉगर मीट के महातीर्थ दिल्ली में मीटिया ही लिए। रुचिकर रहा विवरण, बाकी चर्चा के बारे में थोड़ा और विस्तार से बताते न।

बोधिसत्व ने कहा…

यह आज करल कब तक का है। यानी कब तक मुंबई वासी नहीं हो। इस मुलाकत में और क्या हुआ। कुछ समझ में नहीं आ रहा है।

VIMAL VERMA ने कहा…

अच्छा है आप दिल्ली चले गये.. वहां सबसे मिलकर आईयेगा. और मेरा उन सभी को स्नेह भी जतला दीजियेगा

बेनामी ने कहा…

धांसू है फोटो। बातचीत का विवरण कहां है?

चंद्रभूषण ने कहा…

भाई, एक एसएमएस कर देने में कितना खर्चा आता है?

अभय तिवारी ने कहा…

सभी मित्रो का शुक्रिया..

अनूप जी, श्रीश और बोधि भैया..बातें इतनी हुई थीं कि विवरण लिखने बैठता तो फ़ुरसतिया की पोस्ट हो जाती और निर्मल आनन्द न रहता.. प्लीज़ एड्जस्ट..

प्रिय काकेश, चन्दू भाई.. जैसा कि लिखा.. कुछ भी आयोजित नहीं था.. मैं तो यही सोच के निकला था कि दो पुराने दोस्तों से मिलने जा रहा हूँ.. पर कितने सारे नए दोस्त मिल गए.. ये अचानक मिल गई खुशी थी.. आप लोगों और तमाम दूसरे दोस्तों से अभी तक नहीं मिल सका हूँ, उसका दुख है..

इरफ़ान ने कहा…

कुछ भी आयोजित नहीं था.. मैं तो यही सोच के निकला था कि दो पुराने दोस्तों से मिलने जा रहा हूँ.. पर कितने सारे नए दोस्त मिल गए.. ये अचानक मिल गई खुशी थी..
bhaai agar ye panktiyan sahee hain to us aarop kaa kyaa karein jo aapne mujh par yah kahte hue lagaayaa ki main(Irfan) naukaree bajaane chalaa gayaa.Aisaa kah kar aapne mitron ke beech yah ghalatfahmee paidaa kee hai ki mere liye ab ye line sahee hai--"wo din gaye jo kahate the naukar naheen hoon mai"
Safaai isliye de rahaa hoon ki agar aapkee hee tarah mujhe bhee maaloom hota ki ye MEET hone walee hai to main apnaa swarozgaar idhar udhar khiska leta.Please do necessary corrections because I always prefer this kind of meet instead of NAUKAREE BAJAANE.Only the God(if he knows anything)knows ki mujhe Bajaai jaa sakanewaalee naukaree kab milegee.

बेनामी ने कहा…

ई का है.....बहुतै नाइंसाफी है....विजय शर्मऊ कै लेते आपके दीदार....इत्ते दिन बाद तो मौका पाए रहेन....कौनो सही कहिस....एसएमएस के रेट बढ़ि गवा का ?

बेनामी ने कहा…

ई काव है.....अरे भईया बतिइबे नहीं किये....विजय शर्मऊ कै लेते दीदार....तोहैं बड़ी मुश्किल से तो हेर पायन ब्लॉग पे ....ए भइया......काहे नाहीं बतायो.....बताओ !!!!

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