बुधवार, 12 सितंबर 2007

वांछना की विदाई

जब से सिगरेट छोड़ी है... (क्या बात है.. यह कहने में ही कितना आनन्द है..) एक उपलब्धि का एहसास है। जब से सिगरेट छोड़ी है(अहहा.. हर बार वही आनन्द.. हर कश में वही स्फूर्ति) एक नई बात गौ़र की है: मेरे आस-पास सिगरेट हमेशा बनी रहती है। कुछ दिन तक तो मेरी बीबी ने मुझ पर रहम खा कर सिगरेट को मुझसे दूर रखा, मगर कुछ और दिन बाद लिहाज़ जाता रहा। अब उस की सिगरेट(वही ब्राण्ड जो मैं पीता था) के दो चार पैकेट घर में यहाँ-वहाँ पड़े ही रहते हैं। वह मेरी तरह और शैतान की तरह सीधा सोचने वाली नहीं है कि एक वक़्त में एक ही पैकेट से सिगरेट पिए।

तो जनाब, पहले तो मेरा ब्राण्ड ही मुझे मज़े से मुहैय्या होने लगा। अब ये दौर भी पार हुआ और एक नया दौर आया है। अब दूसरे-दूसरे ब्राण्ड भी खिंचे चले आते हैं। पिछले हफ़्ते मेरे एक अज़ीज़ दोस्त काबुल दा अपना मार्लबोरो रेगुलर का पैकेट और लाइटर छोड़ गए। बाद में मुझसे कहने लगे कि ऐसा कभी होता नहीं कि वो सिगरेट कहीं छोड़ दें। बटुआ वो बाद में सँभालते हैं, पहले सिगरेट और लाइटर। वे कैसे जानेंगे और कैसे समझेंगे कि ये कोई संयोग नहीं मेरे सिगरेट-त्याग का प्रताप है जिसके आकर्षण में सिगरेट यहाँ रह गई। इस की पुष्टि मुझे कल पूरी तौर पर हो गई जब प्रमोद भाई भी अपनी गोल्ड फ़्लेक का पैकेट और लाइटर फिर छोड़ गए(दूसरी बार.. ह हा)।

इसकी सत्यता स्थापित हो जाने के बाद ही मैंने आप तक यह निष्कर्ष प्रेषित करने का निर्णय लिया कि जीवन में जो पाना चाहते हो उसे छोड़ दो; भरभरा कर आप के ऊपर गिर पड़ेगी आपकी वांछना। सिगरेट के बिना मैं मरा जाता था, हमेशा एक दो पैकेट लुका छिपा के रखता। कभी रात-बिरात सिगरेट खतम हो गई तो.. तो क्या करेंगे; शहर में हड़ताल हो गई तो क्या करेंगे, दंगा-फ़साद हो गया तो क्या करेंगे। हमेशा असुरक्षा का भाव मानस में डेरा डाले रहता। अब जब कि लात मार दी है, स्वयं चरणों की दासी बन न्योछावर होने को तैयार रहती है।

आप खुद इस प्रयोग को आजमा कर देखें। लड़कियों की बहुत लालसा हो मन में तो हो जायं ब्रह्मचारी; कूद-कूद कर लड़कियाँ गिरेंगी आप के ऊपर। ऐश्वर्य की कामना हो तो लंगोटी लगा कर सन्यासी हो जायँ; लोग-बाग आप के लिए महल बनवायेंगे और सिंहासन में बिठा कर चंवर डुलाएंगे। दुनिया का एकछत्र राज्य चाहिये तो लात मार दीजिए महत्वाकांक्षा को, कहिये मैं जनता का सेवक हूँ, मुझे कुछ नहीं चाहिए, मैं सिर्फ़ सेवा करना चाहता हूँ। लोग आप को खुद राजगद्दी सौंप देंगे।

यक़ीन मानिये.. आप को सिर्फ़ अपनी वांछना को विदा करना है और फिर वो कभी आप को प्रवंचित नहीं करेगी।

(इस पोस्ट से प्रेरित हो कर आप पैसा-रुपया, गाड़ी आदि त्यागने का मन बनाएं तो मुझे ज़रूर याद कर लें.. मैंने सिर्फ़ सिगरेट त्यागी है, शेष अभीप्साएं शेष हैं)

8 टिप्‍पणियां:

अनिल रघुराज ने कहा…

बात तो एकदम सही है। मैंने इसे नौकरियों में, तनख्वाह बढ़वाने में आजमा के भी देखा है। लेकिन इधर एक लोचा आ गया है। लोग बहुत हो गए हैं। संगठन बड़े हो गए हैं। सो सेल्फ मार्केटिंग जरूरी हो गई है। नहीं तो कुछ नहीं मिलता। लड़कियों के पास भी बहुत से विकल्प होते हैं। वहां भी भागने या ब्रह्मचारी बनने से दाल नहीं गलती।

Arun Arora ने कहा…

अभय जी कृपया पूरे त्यागी बने ..तुरंत त्यागी हुई सामग्री लौटती डाक से यहा आश्रम मे भिजवा दे और पूरा लाभ उठाये इस त्याग का ..साथ मे कुछ और त्याग करने का ख्याल हो तो वो भी..ना हो तो यहा आश्रम मे आकर एक हफ़्ता रहे हम ख्याल बनाने मे (त्याग का) मदद करेगे.. बाबा फ़रीदी
फ़रीदी आश्रम..फ़रीदाबाद हरियाणा

Gyan Dutt Pandey ने कहा…

"इस पोस्ट से प्रेरित हो कर आप पैसा-रुपया, गाड़ी आदि त्यागने का मन बनाएं..."


भैया एक्सेस वजन त्यागना है!

azdak ने कहा…

लड़कियों के मामले में यह शब्‍दश: सही है.. यही वजह है लड़कियां अदबदाकर मुझपर गिरती रहती हैं.. मैं ही हूं कि गिरा हुआ आदमी होने से खुद को रोके हूं! काश जांबाजी का यही खेल मैं पैसों वाले मसले पर खेल पाता.. तुम्‍हारी सलाह क्‍या है, लंगोट धारकर शहर छोड़ दूं? शहर मेरे पीछे-पीछे चला आएगा?

चंद्रभूषण ने कहा…

मुझे भी तीन साल पहले तक जर्दे वाले पान मसाले की लत बहुत बुरी तरह लगी हुई थी लेकिन इसे छोड़ने में मेरी संकल्प शक्ति नाकाफी साबित हुई। इसके लिए मुझे मुझे प्राणायाम का सहारा लेना पड़ा। बहरहाल, यह याद करना आपकी तरह मेरे लिए भी अत्यंत सुखद है कि अंततः एक असाध्य सी लगने वाली लत से पीछा छूट गया।

Pratyaksha ने कहा…

सुबह सुबह आपने इतना भारी ज्ञानदान किया । गुरु दक्षिणा के भागी हुये आप तो ।

Pratik Pandey ने कहा…

सही फ़ॉर्मूला है गुरूजी। वैसे, मेरा ब्लॉग कोई नहीं पढ़ता, हिट कराने के लिए लिखना छोड़ दूँ? :)

Udan Tashtari ने कहा…

आप इतने ज्ञानी है, यह आज मालूम पड़ा. याददाश्त कमजोर है. बीच बीच में ऐसा लिखते रहें तो पता चलता रहे, वरना भूल ही जाता हूँ.

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