स्कित्ज़ोफ़्रेनिया के बारे में कुछ तथ्य-
ये क्यों होती है? सायंस नहीं जानती। पारिवारिक स्रोत होना एक प्रबल सम्भावना है।
इलाज करने पर दवाई खाने से लाभ होता है। नशा करने से नुकसान होता है।
इसका मतलब डबल या स्प्लिट पेर्सैनैल्टी नहीं है।
यह मानसिक बीमारी नहीं मस्तिष्क की बीमारी है। एक शारीरिक बीमारी जिसकी अभिव्यक्ति मानस पटल पर होती है। इसका इलाज साइकोथेरेपी से नहीं होता।
इस रोग के मुख्य लक्षण-
बहुत सोना या बिलकुल न सोना। बहुत डर होना या बहुत आक्रामक हो जाना। साफ़ सफ़ाई न रखना, अति संवेदनशील हो जाना, हर चीज़ को करने का एक विशेष तरीका इस्तेमाल करना। सामाजिक सम्बन्धों में गिरावट आना, तंत्र-मंत्र में अनायास रुचि हो जाना, काम और जीवन नाम से हम जिन गतिविधियों को जानते हैं उन से दूर भागना। आलोचना बिलकुल बरदाश्त न कर पाना, शब्दों के अपने कुछ विशेष अर्थ निकालना और उन्हे, उन्ही अर्थों मे प्रयोग करना। घूरना, बाल बढ़ा लेना या सब बाल कटा देना। बहुत ज़्यादा नशा करना, अपना एक अलग मानसिक संसार बना लेना, अतार्किक हो जाना। अपने को बहुत महान मानना या सबको दुश्मन समझना।
अगर आप एक बार सोच के देखें तो ये सारे लक्षण लगभग हर व्यक्ति के जीवन में कभी न कभी तो लागू हो जाएंगे। मगर एक रोगी में ये लक्षण सामान्य से अधिक मात्रा में पाए जाते हैं। सारा खेल इस सामान्य का ही है। सामान्य कहे जाने वाले ६०-७० प्रतिशत के इधर और उधर के लोग असामान्य कहे जाते हैं। विलक्षण.. ऐसे लक्षण वाले जो आम तौर पर नहीं मिलते। वे समाज के लिए विक्षिप्त भी हो सकते हैं और महापुरुष भी।
समाज सिर्फ़ अपने जैसों का ही पुनरुत्पादन करना चाहता है। इसीलिए शादीशुदा लोग बार-बार छ्ड़ों को पकड़ कर शादी के मण्डप की तरफ़ खींचते हैं। योग करने वाला दूसरे से भी योग करवाना चाहता है। लाल झण्डे वाला सबसे इंकलाब ज़िन्दाबाद बुलवाना और खाकी नेकर वाला दूसरे को भी नेकर पहनाना चाहता है। अपनी ही छवि में दुनिया को रंग देना चाहता है आदमी। भगवान को भी उसने अपने जैसा दिखने वाला ही बनाया है। चीन में जाकर बुद्ध की आँखें मिचमिचाई सी ऐसे ही नहीं हो गईं। एक विलक्षण व्यक्ति को समाज कैसे स्वीकार कर लेगा? उसे लगातार नकारा जाता है। कोशिश की जाती है उसे बार बार सामान्य बनाने की..आम आदमी बनाने की..
चित्र: प्रसिद्ध स्कित्ज़ोफ्रेनिक चित्रकार विन्सेन्ट वैन्गॉह का एक चित्र 'स्टारी नाइट'