मगर इसी कविता पर वरिष्ठ मित्र चन्द्रभूषण की प्रतिक्रिया आई वो बाबा की जयजयकारी छवि को थोड़ा ठेस पहुँचा रही थी.. "बाबा से पहली मुलाक़ात पटना में हुई थी । मुझे जनमत के लिये उनका इन्टरव्यू करना था । प्रेमचन्द रंगशाला के पास किसी धरने में शामिल होने आये थे । भीड़ छटने पर नमस्ते करके मैंने कहा,"बाबा आप से बात करनी थी"। छूटते ही बोले,"अब बात करने के लिये भी बात करनी पड़ेगी क्या? इस त्वरित जवाब से मैं इतना डरा कि टाइम लेकर भी बात करने नहीं गया । मेरे साथी इरफ़ान गये और झेलकर लौटे। बात के क्रम में बाबा ने उनसे कहा- "मूर्ख हैं आप, सुगन्धित मूर्ख..दो पैसे का चेहरा है आपका। सुन्दर को एक दिन सुन्दरी मिल जायेगी, फिर किनारे हो जायेंगे"..

बात १९९० की होगी शायद. चंदू भाई जिस वाक़ये की याद कर रहे हैं वो लम्बे समय तक हम लोगों के लिए चर्चा का विषय रहा. हम जिनको बड़ा कवि/शायर मानते हैं उनसे बड़ा आदमी होने की भी उम्मीद करते हैं. नागार्जुन ने इस घटना में जैसा व्यवहार किया उस से तब हमें उनके उसी बेलौस व्यवहार की झलक /पुष्टि मिली थी जिस पर हम जान छिड़कते हैं. अब यहाँ रुकिए, लगता है मैं जो कहने चला था उस से भटक रहा हूँ . अच्छा यही रहेगा कि मैं स्मृतियों की खंगाल करता हुआ आपको "उस" अनुभव का साझीदार बनाऊँ. अस्तु, मुद्दे की बात.
हम जनमत के लिए एक लम्बा इन्टरव्यू करने नागार्जुन के पास गए थे. वो अपने बेटे के साथ कंकरबाग,पटना के घर पर मिले . हम तीन मूर्तियाँ, संजय कुंदन, संजीव और मैं, पलंग के एक तरफ इस तरह बैठी थीं कि आज कुछ यादगार इन्टरव्यू सम्पन्न कर लेना है. सवाल अभी शुरू भी नहीं हुये थे कि बाबा ने बोलना शुरू किया. वो कोई चालीस मिनट तक वीपी सिंह की सरकार के बारे में बोलते रहे, जिसका निचोड़ ये था कि वीपी सरकार अभी बच्ची है इसे देखो, जल्दबाजी में इस सरकार के बारे में राय मत बनाओ और विरोध मत करो. हम इस उधेड़ बुन में कि उस इन्टरव्यू को कैसे संभव बनाया जाये जिसमें एक कवि का निजी जीवन, उसका रचनात्मक संघर्ष, उसकी सौन्दर्यबोधात्मक दुनिया, सुख दुःख, सपने सब आ जाएँ. अब तक जो बातें कही गयीं उनसे एक राजनीतिक पर्यवेक्षक की छवि बनती थी. तो जैसे ही हमें पंक्चुएशन में एंट्री की जगह मिली सबने एक दूसरे को देखा और मैंने सवाल पूछा. अब सवाल मैंने ही क्यों पूछा होगा इस पर अभय भाई कहेंगे 'तेरे को सस्ती लोकप्रियता जो चाहिये होती है'. बहरहाल.

(सूचना:सादतपुर में पार्टी का ऑफिस था और बाबा रोज़ सुबह टहलते हुए चाय पर विपिन भाई के साथ होते अख़बार पढ़ते, हंसी ठट्ठा करते ,दुनिया जहान की चिंताएं शेयर करते. पार्टी ऑफिस उनके सादतपुर के कई घरों जैसा घर था)
