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सोमवार, 20 दिसंबर 2010

राम-राम हरे-हरे



बोधिसत्त्व की एक ताज़ी कविता:




घरे-घरे दौपदी, दुस्सासन घरे-घरे।
हरे राम हरे राम, राम-राम हरे-हरे॥

गली-गली कुरुक्षेत्र, मरघट दरे-दरे।
हरे राम हरे राम, राम-राम हरे-हरे॥

देस भा अंधेर नगर, राजा चौपट का करे।
हरे राम हरे राम, राम-राम हरे-हरे॥

सीता भई लंकेस्वरी, राम रोवें अरे-अरे।
हरे राम हरे राम, राम-राम हरे-हरे॥

राजा दसरथ भुईं लोटैं, राज करे मंथरे।
हरे राम हरे राम, राम-राम हरे-हरे॥

आम गा महुवा गा, अब त बस बैर फरे।
हरे राम हरे राम, राम-राम हरे-हरे॥

कोयल मोर मूक भए, दादुर टर-टर टरे।
हरे राम हरे राम, राम-राम हरे-हरे॥

ऊपर से कुछ बात, और कुछ बा तरे-तरे।
हरे राम हरे राम, राम-राम हरे-हरे॥

- बोधिसत्त्व

मंगलवार, 27 जुलाई 2010

छोटा आदमी

पिछले दिनों बोधिसत्व का नया संग्रह 'ख़त्म नहीं होती बात' प्रकाशित हुआ, उस में से एक कविता छोटा आदमी-

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