बोधिसत्त्व की एक ताज़ी कविता:
घरे-घरे दौपदी, दुस्सासन घरे-घरे।
हरे राम हरे राम, राम-राम हरे-हरे॥
गली-गली कुरुक्षेत्र, मरघट दरे-दरे।
हरे राम हरे राम, राम-राम हरे-हरे॥
देस भा अंधेर नगर, राजा चौपट का करे।
सीता भई लंकेस्वरी, राम रोवें अरे-अरे।
हरे राम हरे राम, राम-राम हरे-हरे॥
राजा दसरथ भुईं लोटैं, राज करे मंथरे।
हरे राम हरे राम, राम-राम हरे-हरे॥
आम गा महुवा गा, अब त बस बैर फरे।
हरे राम हरे राम, राम-राम हरे-हरे॥
कोयल मोर मूक भए, दादुर टर-टर टरे।
हरे राम हरे राम, राम-राम हरे-हरे॥
ऊपर से कुछ बात, और कुछ बा तरे-तरे।
हरे राम हरे राम, राम-राम हरे-हरे॥
- बोधिसत्त्व