इन के बीच और दूसरे पैग़म्बर आते रहे, जिनकी इन यहूदियों ने वैसे ही स्मृति बनाए रखी जैसी कि भारतभूमि में ब्राह्मणों ने अवतारों व ऋषियों की। उनकी परम्परा में ये बातें थीं कि आगे और रसूल आएंगे जो ईश्वर का संदेस लाएंगे। उनके चिह्न व स्थितियों आदि की भी भविष्यवाणी की गई थी। ईसा भी यहूदी थे, एक दिन उन्होने घोषणा कि वे ईश्वर के पुत्र हैं और ईश्वर का राज्य बस आने ही वाला है। जिसे लोगों ने नये मसीहा का उद्घोष समझा लेकिन ज़्यादातर यहूदियों ने उन्हे अपना रसूल नहीं माना। उनके अनुयायी उन्हे यहूदियों में नहीं दूसरी प्रजातियों में मिले। हालांकि वे इब्राहिम और यहूदियों के धर्मग्रंथ को प्राचीन विधान के नाम से उतनी ही श्रद्धा देते हैं जितने कि नए विधान यानी बाईबिल को। मगर ईसा को ईश्वरपुत्र मानते हैं।
तक़रीबन छै सौ साल बाद अरब में, क़बीलाई अरबों के बीच से एक आदमी उठ खड़ा होता है जो आदम, नूह, इब्राहिम, मूसा और ईसा की परम्परा में ही अपने को अगला रसूल बताता है। वह वही सब कहानियां सुनाता है जो यहूदियों के प्राचीन विधान में दी हुई है, जिसे ईसाई भी मानते हैं। वो कहता है कि यहूदी और ईसाई दोनों इब्राहिम के असली धर्म से भटक गए हैं, उन के ज़रिये ईश्वर उन्हे सच्चे मार्ग पर लौट चलने की ताक़ीद कर रहा है। यहूदी और ईसाई उन की बात नहीं मानते। मगर इस व्यक्ति-मुहम्मद के द्वारा बताया गया 'असली प्राचीन धर्म' इस्लाम के नए नाम से विख्यात होता है और दूर-दूर तक फैल जाता है। मुहम्मद ये भी बताते हैं कि अरब जन असल में इब्राहिम की उस दासी से उत्पन्न पुत्र इश्माईल की संताने है, जिसे निर्जन रेगिस्तान में छोड़ दिया गया था।
इब्राहिम के द्वारा बताई गई बहुत सारी बातें तीनों धर्म मानते हैं लेकिन यहूदी और इस्लाम धर्म में अधिक साम्य है। ईसाईयों में बहुत सारे ऐसे नए तत्व हैं जो यहूदियों में नहीं थे, और न ईसा ने उनकी चर्चा की है। जबकि इस्लाम में एकेश्वरवाद, खाने-पीने की पाबन्दी, एक आत्मश्रेष्ठता का भाव, परसेक्यूशन कौम्पलेक्स, ख़तना आदि बहुत सी चीज़े हैं जो यहूदियों सी हैं; और ये टोपी भी।
दुनिया के तीन प्रमुख धर्मों से सम्बन्धित यह पोस्ट, असल में बज़ पर मुनीश शर्मा के इसरार पर टिप्पणी के रूप में लिखी गई थी जो अब सतीश पंचम के इसरार पर यहाँ डाल दी गई है।