रविवार, 17 अप्रैल 2011

मरने के पहले मर जा



















क़यामत

असरार२ को ख़ोजने वाले से बोले मुस्तफ़ा३
देखना चाहते हो मुर्दा आदमी को ज़िन्दा?

चल रहा है जो ज़िन्दो की तरह ख़ाक पर
मुर्दा है वो और रूह उसकी है आसमान पर

इस दम उसकी रूह का मकां है बहुत ऊपर
गर मर जाय तो उस रूह की कोई नहीं बदल

क्योंकि पहले मौत के ही वो कर चुका नक़ल४
ये मरने से समझ आएगा, न समझेगी अक़ल

आम रूहों की तरह है ये नहीं है नक़ल
ये तो बस ऐसे कि जगह भर जाय बदल

देखना चाहे कोई इस तरह का एक मुर्दा
ज़ाहिरी चल रहा है जो ज़मीन पर ज़िन्दा

कह दो कि देख ले वह अबू बकर५ को एक बार
सदाक़त६ से जो बन गए मुहशर७ वालो के सरदार

देख उस सिद्दीक़८ को इन निशानो के अन्दर
ताकि बढ़ जाय यकीं तुम्हारा हश्र९ के ऊपर

तो मुहम्मद सौ क़यामत थे उसी वक़्त वहीं नक़द
क्योंकि घुल चुके थे बंधने व मिटने से वो अहमद१०

इस दुनिया में मुहम्मद की ये थी दूजी पैदाईश११
अन्दर से उनके सौ क़यामत की हुई थी नुमाईश

क़यामत के बारे में लोग उनसे करते थे परवाह
अय क़यामत! दूर कितनी अब क़यामत की राह

फिर बोलते थे वे अक्सर हाल१२ की ज़ुबान में
पूछता है कौन क़यामत की क़यामत के सामने?

तो इस बारे में बोले वो खुश पयाम लाने वाले
मरने के पहले मर जा अय क़यामत चाहने वाले

कि मरने से पहले जैसे मैं मौत पाया हूँ
और वहाँ से शुहरत व आवाज़ ले आया हूँ

तो हो जाओ क़यामत और देखो क़यामत को
शर्त होती है यही देखने की किसी चीज़ को

जानेगा नहीं उसे जब तक तू खुद वो न हो
चाहे वो नूर का उजाला हो या अंधियाला हो


मौलाना जलालुद्दीन 'रूमी' की मसनवी मानवी से, ज़िल्द छठी, ७४२-५७.
. रहस्य
. मुहम्मद साहब की उपाधि
. यहाँ प्रतिलिपि से अर्थ नहीं बल्कि बदलाव से है, तबादले से है।
. मुहम्मद के क़रीबी दोस्त, ससुर और मुहम्मद साहब के बाद पहले ख़लीफ़ा
. सत्यवान
. क़यामत को मानने वाले
. पवित्र
. क़यामत
१०. मुहम्मद का ही दूसरा नाम
११. सूफ़ी मानते हैं कि दुनिया की रचना के सबसे पहले चरण में  ईश्वर ने मुहम्मद की ज्योति को बनाया, यही उनकी पहली पैदाईश है और दूसरी वो जो उन्होने भौतिक रूप से मक्का में बीवी अमीना के गर्भ से जन्म लेकर की।
१२. सूफ़ियों की आनन्दातिरेक की अवस्था। सूफ़ी मत में मानते हैं कि मुहम्मद सिद्ध सूफ़ी थे।


कलामे रूमी, पृष्ठ १०७-९

6 टिप्‍पणियां:

निवेदिता श्रीवास्तव ने कहा…

बेहतरीन एहसास.....

Dr (Miss) Sharad Singh ने कहा…

मौलाना जलालुद्दीन 'रूमी' की रचना को प्रस्तुत करने के लिये.... हार्दिक धन्यवाद एवं आभार।
इस रचना का सूफ़ियाना रंग लाजवाब है।

Patali-The-Village ने कहा…

बेहतरीन एहसास|धन्यवाद|

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत आभार...

मीनाक्षी ने कहा…

इस क़लाम को अपनी आवाज़ भी दें तो सोने पे सुहागा हो जाए...

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

पहली बार पढ़ा, बहुत ही अच्छा लगा।

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