बुधवार, 26 मई 2010

जाति जन गण ना?


मैं इस बारे में उत्सुक हूँ कि भारतीय जनो में विभिन्न जातियों का क्या अनुपात है। लेकिन इस उत्सुकता के आधार पर ही क्या मैं जातिवादी हो जाता हूँ? मेरी उत्सुकता के बीज दूसरे हैं और मुलायमादि यादवों के कारण दूसरे। पर देखा ये जा रहा है कि आम प्रगतिशील व्यक्ति जाति आधारित जनगणना के ख़िलाफ़ मत प्रकट कर रहा है। रिजेक्ट माल पर निखिल आनन्द ने जाति और जनगणना के सम्बन्ध में कुछ मौज़ूं सवाल उठाए हैं और मैं काफ़ी कुछ उनसे सहमत हूँ।

मुम्बई में मेरी गणना हो चुकी है। बी एम सी के विद्यालय के एक शिक्षक जो छुट्टियां मनाने गाँव न जा सके इस कार्य को सम्पन्न करने आए थे। उन्होने बाक़ी सवाल तो किए मगर जाति के बारे में नहीं पूछा। जब मैंने सवाल किया तो उन्होने बताया कि सब कुछ (सारे सरनेम्स) कम्प्यूटर में फ़ीड हैं; यानी तिवारी डालते ही वह मुझे ब्राह्मण की श्रेणी में सरका देगा। वैसे यह प्रणाली ठीक भी है, आम लोग भी ऐसे ही औपरेट करते हैं। रही बात कुमारादि या अन्य 'भ्रामक' सरनेम की तो उन मौक़ो पर उन्हे सवाल पूछने का निर्देश है।

जब धर्म के आधार पर गणना हो सकती है तो जाति के आधार पर क्यों नहीं? ये सही है कि जाति और धर्म के समीकरण में कोई आपसी सम्बन्ध नहीं। इस देश के बहुतायत मुसलमान और ईसाई अधिकतर दलित समाज से धर्म परिवर्तन किए हुए लोग हैं या पूर्व-बौद्ध हैं। बौद्धों के बारे में अम्बेडकर ने स्वयं लिखा है हालांकि लोग उनकी प्रस्थापना को मानने में हिचकते हैं। मुझे उनकी बात तार्किक लगती है। इस नज़रिये से मुसलमान और वे ईसाई जिनके पूर्वज आदिवासी या दलित समाज से थे, आरक्षण के अधिकारी होने चाहिये, मगर राजनीति इस के आड़े आती है।

और ये बात भी सही है कि जाति जान लेने भर से कोई जातिवादी थोड़े हो जाता है। ये तो आँधी के डर से रेत में सर डाले रखने वाली बात है। मैं जाति आधारित जनगणना का समर्थन करता हूँ।

7 टिप्‍पणियां:

माधव( Madhav) ने कहा…

i am totally agaisnt this caste based census and bloddy castesim.

डॉ .अनुराग ने कहा…

सूचना का इस्तेमाल कैसे किया जाए ये महत्वपूर्ण है .....इसके कई सार्थक पहलु भी है ...

L.Goswami ने कहा…

मैं भी...

दिनेशराय द्विवेदी ने कहा…

जाति आधारित गणना में बुराई नहीं है। पर उस का इस्तेमाल फिर अखाड़ों में किया जाएगा।
...... मेरा मुग्दर तेरे मुग्दर से तगड़ा है।

Sanjeet Tripathi ने कहा…

dineshrai jee ki baat hi sahi lagti hai.
vaise mai aapki post padhte padhte kuchh chaunka, kynki kariban yahi matter ek aur blog par padhne ke bad yaha pahucha tha,
aap khud dekhiye
http://jagohindustaniyonotvideshiyo.blogspot.com/2010/05/blog-post_25.html

योगेन्द्र सिंह शेखावत ने कहा…

मैं जातिगत जनगणना का विरोध करता हूँ | कारण यही है की बात सिर्फ जानकारी जुटाने तक ही सीमित नहीं है | आप सोच रहे हैं की बात यही ख़त्म हो जाएगी !!
इन आंकड़ों पर राजनीती की बिसात भी बिछेगी घिनौने दिमाग के राजनेता गंदे खेल खेलेंगे | और फिर जनमानस में अलगाववाद की भावना भी जोर पकड़ेगी | हमें दीवारें तोड़ने की और बढ़ना है | लेकिन राजनेता हर दिन एक नयी दीवार खड़ी करने की कोशिश में लगे हैं |
भले ही आप और मैं विचारधारा, सोच, लेखन-दर्शन की बातें कर लें लेकिन हम जिस देश में रहेंगे उसके कानून का दायरा हमेशा हमारे लिए पाश का काम करेगा | आरक्षण का भूत अभी तक नहीं मरा चाहे अब कितने ही लोग उसके विरोध में क्यों न हों क्योंकि अब ये एक अधिनियम के अंतर्गत है एक नियम है | तो उसका जो नुकसान उठाना पड़ रहा है वह ऐसे ही समर्थनों या मौन स्वीकृतियों का नतीजा हो सकता है |

अजित वडनेरकर ने कहा…

मुझे भी जनगणना में जाति को शामिल करने में कोई बुराई नजर नहीं आती। राजनीतिक पार्टियां इसका दुरुपयोग तो करेंगी ही। हमारे देश में अगर जातियां हैं तो यह तथ्य भी जनगणना में लोग देखना चाहेंगे। जनगणना देश के नागरिकों का व्यापक फलक पर होने वाला सर्वे है। ऐसे दस्तावेज भविष्य में सामाजिक मूल्यांकन और अध्ययन में सहायक होते हैं। हिन्दुस्तानियों ने वैसे भी सुव्यवस्थित ढंग से समाज-संस्कृति-इतिहास संबंधी तथ्यों का सिलसिलेवार दस्तावेजीकरण नहीं किया। जो है, वह धर्मग्रंथों और साहित्य की शक्ल में है।

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