मंगलवार, 14 अप्रैल 2009

जो खग हौं..

मित्रो, आजकल मेरे मन-मानस पर पेड़ छाए हुए हैं। उन्हे देखना, उन्हे पहचानने के लिए किताबों में पढ़ना, अपने भाई से और नेट के नए पेड़-प्रेमी मित्रों से उनके बारे में चर्चा करना, ज़्यादा समय इसी में जाता है। इस शग़ल में दो सुख हैं – पैदल विचरने का सुख और कुछ नया जानने का सुख!

इसलिए आजकल फिर निर्मल आनन्द आ रहा है। यह कब तक चलेगा, कह नहीं सकता? शहर में पेड़ों की सीमित प्रजातियाँ हैं। एक रोज़ सारे पेड़ पहचानने जायेंगे और फिर जानने के लिए कुछ भी नया नहीं रह जायेगा, अगर मैं अपनी जिज्ञासा के दायरे में बेलों, झाड़ियों और तितलियों, कीट-पतंगो को शामिल न कर लूँ! या अपने विचरने का सीमाएं न तोड़ दूँ!


















आप के आनन्द के लिए नीचे के एक फूल की तस्वीर चिपका रहा हूँ। यह कैम नाम के पेड़ का फूल है। टेबल टेलिस के गेंद के आकार का यह फूल एक नाज़ुक खुशबू का स्वामी है। कहीं-कहीं इसे कदम्ब भी कहा जाता है।

वैसे कदम्ब नाम का एक और भी पेड़ होता है। वो कानपुर में मेरे घर की बाहर की सड़क पर क़तार से लगा हुआ है। मगर प्रदीप क्रिशन का कहना है कि भगवान श्री कृष्ण जिस कदम्ब के नीचे अपनी लीला रचते थे, वह यही कदम्ब है जिसकी तस्वीर आप देख रहे हैं।

रसखान इसी पेड़ की डार पर बसेरा करना चाहते थे..

मानुष हौं तो वही रसखानि बसौं गोकुल गाँव के ग्वालन।
जो पसु हौं तो कहा बसु मेरो चरौं नित नन्द की धेनु मंझारन।
पाहन हौं तो वही गिरि को जो धरयौ कर छत्र पुरन्दर धारन।
जो खग हौं बसेरो करौं मिल कालिन्दी-कूल-कदम्ब की डारन।।

13 टिप्‍पणियां:

अनूप शुक्ल ने कहा…

सुन्दर! अब तक कित्ते पेड़ पहचान गये?

दिनेशराय द्विवेदी ने कहा…

अभय जी,
कानपुर पर आप के घर की सड़क वाला ही सही कदम्ब है, हम तो उसे ही कदम्ब के रूप में जानते हैं।

Arvind Mishra ने कहा…

इस समय कदम्ब के डारन में मन रम्यो हैं -बढियां है !

ravindra vyas ने कहा…

सरपत कैसे हासिल की जा सकती है?

सुशील छौक्कर ने कहा…

ऐसा सुख जल्दी से नही मिलता। लगे रहो अभय भाई।

Ashok Pandey ने कहा…

आपके ब्‍लॉग-मानस पर हरे-भरे बांस की बंसवाड़ी तो मैं शुरू से ही देख रहा हूं, इसलिए मन-मानस पर पेड़ का छाना स्‍वाभाविक ही है :)

Anita kumar ने कहा…

बड़िया जानकारी, बम्बई में ये पेड़ कहां मिला?

बोधिसत्व ने कहा…

मुंबई में ऐसे कितनों को यह सौभाग्य मिल रहा होगा। जहाँ प्रतिपल प्रति क्षण पैसे की हाय तौबा है वहां यह मन चाहा जीवन जीना एक सपना है।

अभय तिवारी ने कहा…

अनूप भाई॒, पहले गिनती रख रहा था, अब छोड़ दी!

दिनेश जी,
मैं तो अभी नौसिखिया हूँ, पर विद्वान प्रदीप क्रिशन की राय निम्न है-

"This is the true 'Kadamba' tree associated with Brindavan and Krishna's Gopis... Many tree books will tell you that the kadamba associated with Lord Krishna in Brindavan is Neolamarckia cadamba. This is a case of mistaken identity. Neolamarcika cadamba is native to moist forest in NE India and would not survive in the hot, dry Brindavan area. Kaim is not only native to the (remnant) Brindavan forest but is their dominant tree. Clinchingly, everyone in Brindavan calls Kaim 'Kadamba'. Time to revise some of those old books."

from Tree of Delhi, page 148-149

अनिता जी,
कैम का यह पेड़ आरे के भीतर छो्टा कश्मीर की उसी वाटिका में है जहाँ एक दफ़े हमने ब्लागर मीट की थी।

रवीन्द्र भाई,
उसका कुछ जुगाड़ अभी तक बैठा नहीं.. वितरण की कुछ प्रणाली बनते ही आप को भी सूचित किया जाएगा।

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद ने कहा…

प्रकृति के करीब रहने का यह लाभ है कि अच्छे पेड-पौधों से दोस्ती भी हो जाएगी और जैसा कि अभी मिश्र जी ने बताया है कि टिप्पणी रूपी भंवरे भी आपके ब्लाग पर मंडराएंगे:)

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` ने कहा…

प्रकृति से जुडी ये पोस्ट अच्छी लगी अभय भाई --

ghughutibasuti ने कहा…

आपके पेड़ प्रेम के बारे में जानकर अच्छा लगा। मैं तो लगभग पेड़ों के बीच ही रहती हूँ। जहाँ भी नजर जाए पेड़ ही पेड़ दिखते हैं, भांति भांति के पेड़।
इतनी तरह के पेड़ हैं कि उनसे नाम पूछे बिना ही दोस्ती कर लेती हूँ। कभी शहर जाकर रहना होगा और इनके लिए तरसना होगा सोचकर ही घबरा जाती हूँ।
घुघूती बासूती

बेनामी ने कहा…

Abhay ji, bahut dino ke baat aapke blog par aayee tou kaphi kuch naya padane ko mila. "Momin" ka link dene ke liy dhanywad. Jahan tak aapke iss naye "Ped poudhon" ke souk ka sawal hai, mujhe lagata hai hum sab ke aander hi ek jangal hai jo kabhi - kabhi bahar jhankane lagata hai. maine aapke ghar par unn paodhon ko dekha, bahot khoshi hui. Aapke zariye unki khushbo hum tak bhi pahuch rahi hai.
Seema azmi.

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