रविवार, 12 अगस्त 2007

विनीता की एक नई छलाँग

कल एक खास दिन था.. कल एक बहुत पुरानी और मेहरबान मित्र विनीता कोयल्हो की ज़िन्दगी का एक अहम दिन था.. उस अहम दिन के बारे में बताने से पहले मैं आप को विनीता के बारे में बताता हूँ.. विनीता भी टी वी की दुनिया से रोज़गार करने वाली एक शख्स हैं.. पर वो मेरी तरह 'बाज़ार से गुज़रा हूँ मगर खरीदार नहीं हूँ' के फ़लसफ़े में यक़ीन नहीं रखती.. वो जो करती हैं पूरी शिद्दत और जोश से करती हैं.. सच तो यह है कि मैंने पिछले कुछ सालों में जो गिने चुने काम किए हैं उनमें से काफ़ी कुछ विनीता की छत्रछाया में सम्पन्न हुए हैं.. विनीता कई बड़ी-बड़ी टीवी कम्पनी की क्रिएटिव पोज़ीशन्स पर शोभायमान रही हैं.. वे सोनी एन्टरटेनमेन्ट चैनेल यानी सोनी टी वी की वाइस प्रेसीडेन्ट भी रह चुकी हैं.. और आजकल इंटरनेशनल टी वी जायन्ट एण्डेमॉल की क्रिएटिव कन्सल्टेन्ट हैं..

वे मुम्बई में काम करती हैं.. मगर अपनी प्यारी माँ मैरी कोयल्हो और चार कुत्तो और तीन बिल्लियों की गुदगुदी सुरक्षा का आनन्द लेने हर सप्ताहांत अपने गोवा के घर में लौट जाती हैं.. वो नग़मे भी बड़ी सुरीली आवाज़ में गुनगुनाती हैं.. और खाली वक़्त में कैनवास फैला कर पेंटिग करने बैठ जाती हैं.. इस दुनिया की मेरी चन्द पसंदीदा औरतों में विनीता का भी नाम है.. क्योंकि एक सक्षम प्रशासक होने के बावजूद उनके भीतर का कलाकार हमेशा जागा रहता है.. और टीवी की बेदिल संगीन दुनिया में उनकी लेखकों के प्रति ये नर्मदिली मुम्बई में मेरा सहारा है.. सच्चाई ये है कि मेरी जेब की तंगी का राज़ सिर्फ़ मजबूरी की आसन्न बेरोज़गारी नहीं.. चुनी हुई बेरोज़गारी है.. मुझे काम के लिए फोन आते ही रहते हैं..काम हमेशा उपलब्ध रहता है.. लेकिन मैं कतराता रहता हूँ क्योंकि स्वस्थ मानवीय माहौल और मानवीय सम्बन्ध बनाने सकने वाले विनीता जैसे लोग कम ही मिलते हैं.. मेरे जीवन में उनके न होने पर मेरी हालत और शोचनीय हो जाती..

कल विनीता की लिखी हुई पहली किताब का बुक लांच था.. किताब का नाम है डन्जन टेल्स.. जो मूलतः बच्चों के लाभार्थ लिखी गई है.. प्रकाशक हैं स्कॉलस्टिक.. और मूल्य है मात्र २५० रुपये.. मुम्बई की इनफ़िनिटी मॉल स्थित लैण्डमार्क बुक स्टोर्स में यह आयोजन रखा गया.. ज़ाहिर है विनीता ने मुझे इस अवसर पर मौजूद रहने के लिए बुला भेजा था.. मैं नियत समय से पहुँच भी गया.. किताबों की रैक्स को सरका कर बच्चों और बड़ों के बैठने के लिए जगह बनाई गई थी.. किताब का लोकार्पण करने के लिए मशहूर अभिनेता राहुल खन्ना आए थे.. उन्होने विनीता को गोवा की जेके राउलिंग बन जाने की शुभकामना दी.. जो मुझे कुछ जँची नहीं.. असली शुभकामना तो जेके राउलिंग को अपदस्थ करने की होगी.. जो मैं विनीता को देना चाहता हूँ.. दे रहा हूँ..

लोकार्पण के बाद विनीता ने अपनी किताब के बारे में बताना शुरु किया.. डन्जन टेल्स कहानी है एक बदमाश बादशाह की जो अपने एक शाप से बचने के लिए अपने कै़दखाने को हमेशा ठसाठस रखता है.. और कैदखाने में बंद कै़दी एक दूसरे को बताते हैं अपने क़ैद हो जाने की कहानियाँ.. जादुई फ़ंतासी से भरी रूमानी दुनिया की रोमांचकारी कहानियाँ.. ऐसी दुनिया जो बच्चों को विस्मय और अद्भुत की यात्रा पर भेज देती है..

विनीता अपनी बात कर ही रही थीं कि इसी बीच अचानक सबको चौंकाते हुए बदमाश बादशाह सचमुच लैंडमार्क में हो रहे इस समारोह में आ धमका और उसकी ज़िद और धमकी पर विनीता को एक डन्जन टेल पढ़कर सबको सुनानी पड़ी.. एक ऐसे कै़दी की कहानी जिसने अपना नाम खो दिया था.. सोचिये ऐसा खोया उसका नाम कि उसकी माँ तक को याद नहीं रहा..

फिर क्या क्या कैसे कैसे हुआ जानने के लिए पढ़िये डन्जन टेल्स.. अपने लिए न तो अपने बच्चों के लिए ज़रूर खरीदिये यह किताब.. और हिन्दी अंग्रेज़ी के टंटे में मत पड़िये.. हिन्दी में अभी मौलिक लेखन का बाज़ार विकसित नहीं हुआ है.. लिखने वाले आप को मिल भी जायं तो खरीदने वाले नहीं मिलेंगे.. मैंने भी अभी किताब पूरी नहीं पढ़ी है.. पर मुझे विनीता की रचनात्मकता पर इतना भरोसा है कि वह मुझे निराश नहीं करेगी और न ही आप को..

लिखने वाले जानते हैं.. ब्लॉग लिखने की बात तो कर ही नहीं रहा.. टी वी के लिए लिखना, फ़िल्म के लिए लिखना, अखबार और पत्रिका के लिए लिखना भी अपनी जगह.. असली लिखना तो किताब लिखना ही है.. जैसे कि आप तब तक फ़िल्म मेकर नहीं कहे जा सकते जब तक आप ने फ़ीचर फ़िल्म न बनाई हो.. आप तब तक असली लेखक नहीं कहे जा सकते जब तक आप की कोई किताब प्रकाशित ना हुई हो.. तो विनीता के जीवन में कल ११ अगस्त को वह बड़ा दिन आ पहुँचा.. लेखक तो विनीता बहुत पहले से ही थीं.. मगर अब वह गर्व से कह सकेगी कि वह एक लेखक है.. राइटर है.. या ज़्यादा स्टाइल मारना हो तो कहेगी कि वह ऑथर है.. मेरी उसे ढेरों शुभकामनाएं..

9 टिप्‍पणियां:

अनिल रघुराज ने कहा…

अभय बाबू, आपने जिज्ञासा जगा दी तो जरूर पढ़ेंगे ये किताब और अपनी दोनों बेटियों को भी पढ़ाएंगे। अच्छे व्यक्तित्व और अच्छी रचना दोनों से परिचय कराने के लिए शुक्रिया...

अनामदास ने कहा…

विनीता जी को बधाई और शुभकामनाएँ भेज दीजिए, हमारी तरफ़ से भी.

रवि रतलामी ने कहा…

...आप तब तक असली लेखक नहीं कहे जा सकते जब तक आप की कोई किताब प्रकाशित ना हुई हो..

आपने तो हमें भी हूल दे दिया. कोई चवन्नी छाप किताब तो लगता है अब हमें भी प्रकाशित करवानी ही होगी... :)

Pramendra Pratap Singh ने कहा…

हार्दिक बधाई

Sanjeet Tripathi ने कहा…

जानकारी के लिए आभार!!

विनीता जी को बधाई व शुभकामनाएं

Manish Kumar ने कहा…

शुक्रिया इस किताब और उसकी लेखिका का परिचय देने के लिए !

बोधिसत्व ने कहा…

कोशिश करूँगा पढ़ने की। मेरे लिए अच्छा रहेगा कि मुझे किताब खरीदनी नहीं होगी।

Udan Tashtari ने कहा…

विनीता जी को बधाई व शुभकामनाएं.

आपका इस जानकारी हेतु आभार.

प्रयास किया जायेगा कि यह किताब खरीदी जा सके. पता नहीं यहाँ कब तक उपलब्ध हो पायेगी.

azdak ने कहा…

विनीता, आप और किताबें लिखें. बच्‍चों के बाद बूढ़ों और हमारे जैसे जवानों के लिए भी लिखें. और इसी तरह खुश और जवान दिखती रहें. बहुत-बहुत बधाई.

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