शनिवार, 28 जुलाई 2007

बिकॉज़

बीटल्स दुनिया के अब तक के सबसे लोकप्रिय और सब से बेहतरीन पॉप बैंड माने जाते हैं.. १९६२ से १९७० तक इस दल ने करीब दस बारह एलबम में एक से एक यादगार गाने रिलीज़ किये.. दिल में आग लगाने वाले और ठंडक पहुँचाने वाले भी .. इन्ही में से एक एलबम है १९६९ में रिलीज़्ड एबी रोड.. इसका एक गाना है.. बिकॉज़..

इस गाने के बारे में कहानी यह है कि जॉन लेनन की पत्नी योको ओनो.. बीथहॉवन का मूनलाइट सोनॉटा पियानो पर बजा रहीं थीं.. तो लेनन ने उनसे उस धुन को उल्टा बजाने को कहा.. और उस के आधार पर इस गाने की रचना की..

एक अजीब सा रूमानी उदासी का समा है .. मेरे लिए ये बीटल्स का सर्वश्रेष्ठ गाना है.. वो बात अलग है कि ये बहुत लोकप्रिय नहीं है.. मगर जब इसे अमेरिकन ब्यूटी जैसी फ़िल्म के एंड क्रेडिट्स में सुना.. तो खुशी हुई.. अमेरिकन ब्यूटी बेहतरीन फ़िल्म है.. पर इस गाने से उसका कोई मुक़ाबला नहीं.. इस का उपयोग कर के फ़िल्म का मूड समृद्ध हो गया.. दिस सॉन्ग इज़ अ प्योर जेम.. शीयर डिलाइट.. इसमें कोई दोष नहीं.. कुछ भी अधिक नहीं.. कुछ टेढ़ा मेढ़ा नहीं.. सरल और सम्पूर्ण..

इस गाने में एक साइकेडेलिक रंगत भी है.. मगर मुझे उस से कोई गुरेज़ नहीं.. मेरे लिए ये सवाल कोई मायने नहीं रखता कि.. क्या बीटल्स ने यह गाना चरस या एल एस डी के नशे में हो कर बनाया था..? मेरे लिए सिर्फ़ इतना तथ्य महत्वपूर्ण है कि मैं बिना किसी नशे के इस आनन्द को प्राप्त कर रहा हूँ..

इस गाने के दो वर्ज़न्स पेश कर रहा हूँ.. पहले संगीत के साथ..



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गाने के बोल कुछ इस तरह हैं..

Because
the world is round
it turns me on
Because the world is round...aaaaaahhhhhh

Because
the wind is high
it blows my mind
Because the wind is high......aaaaaaaahhhh

Love is all,
love is new
Love is all,
love is you

Because
the sky is blue,
it makes me cry
Because the sky is blue.......aaaaaaaahhhh Aaaaahhhhhhhhhh....


अब बिना संगीत का वर्ज़न.. इस में शुरुआत के दस सेकेण्ड्स तक सन्नाटा है और फिर गाना शुरु होता है.. धीरज से सुनियेगा..

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अब चाहें तो संगीत वाला वर्ज़न फिर से सुनें.. आनन्द लें.. इस गाने को मैं दिन भर सुन सकता हूँ.. इसको सुन कर एक गहरी भाविक अनुभूति में डूब सकता हूँ.. इसे सुन कर मैं मर सकता हूँ..

9 टिप्‍पणियां:

अफ़लातून ने कहा…

सुनने के लिए मरना मुल्तबी नहीं हो जाएगा ?

Arun Arora ने कहा…

.. इसे सुन कर मैं मर सकता हूँ..
कृपया ना सुने.एसी खतरनाक चीज काहे सुनवा रहे हो भाइ.हम तो नही सुनने वाले,जो अपने को जमी पर भार महसूस कर रहे हो ये उनके लिये है उन्हे भेजो ..:)

azdak ने कहा…

Superb.. damn fuckin great! Danke, mercie, grazie!! मैंने उल्‍टे ऑर्डर में सुना. पहले बिना संगीत वाला वर्ज़न, फिर संगीतमय. और दोनों ही कमाल हैं. ताजुब्‍ब की बात कि इसकी भी अवचेतन में याद नहीं बची थी! स्‍मृति क्‍यों ऐसे कमाल करवाती रहती है?

ख़ैर, इसे सजा-चढ़ाकर तुम फिर स्‍वामीत्‍व प्राप्‍त किये! मगर सुनने के बाद आदमी मरना न चाहे तो और क्‍या करे. टर्न ऑन की मन:स्थिति में जाकर किसका हाथ पकड़ ले? दुनिया को किस नज़र से देखने लगे?

azdak ने कहा…

एक और छोटी-सी बात. संगीत का परिदृश्‍य बहुत बदल गया है. साठ के दशक से ही नाटकीय स्‍तर पर बदलना शुरू हुआ. मगर बीटल्‍स के गानों की एक ख़ास बात है, ख़ास तौर पर उनके शुरुआती, अच्‍छे दिनों में, जैसाकि यहां बिकॉज़ के बिना म्‍यूजिक वाले वर्ज़न में भी नोटिस किया जा सकता है, वह सीधे दिल से निकली निर्मल आनंदीय धारा है, शुद्ध अंतरंग निष्‍पाप प्रार्थना है. लगता है आप अचानक छोटे निर्दोष बच्‍चों की प्रार्थना सभा के गायन से रूबरू हुए खड़े हैं, और भावुकता में आपकी आत्‍मा नहा रही हो! यह एफ़ेक्‍ट पता नहीं बाद के कितने बैंड्स की बूते व सामर्थ्‍य की बात रही..

Pratyaksha ने कहा…

इसे सुनकर पुराने दिनों की याद आई । और भी कई गाने याद आये , जूलिया , यस्टरडे , व्हाईल माई गिटार....इमाजिन , और लेनन की ब्यूटिफ़ुल ब्वाय जो अपने बेटे के लिये लिखी गाई थी ।

Unknown ने कहा…

इसको सुन कर एक गहरी भाविक अनुभूति में डूब सकता हूँ।
सहमत हूँ।

अनामदास ने कहा…

निर्मल है ये आनंद. इन दिनों के पॉप संगीत के बाज़ारू उल्लास के बदले यहाँ उदासी में लिपटी निर्मल आत्मा दिखती है.

Yunus Khan ने कहा…

ओह आनंद की पराकाष्‍ठा । वेस्‍टर्न म्‍यूजिक से मेरा ज्‍यादा नाता नहीं रहा है, पर बीटल्‍स को ज़रूर सुना है, उफ़, मुझे निर्मल वर्मा की कहानियों का सूनापन और ठहराव याद आया,

मुझे कॉलेज के दिनों का अकारण एकांत याद आया,

मुझे भोपाल का सेन्‍ट फ्रांसिस चर्च याद आया, जहां मोमबत्तियों की लौ के तले नीम अंधेरा होता था और बारिश में भीगी शामों को फुटबॉल खेलते हुए हम पानी पीने चर्च के अहाते में जाते थे तो थोड़ी देर मास में भी चले जाते थे । मुझे चर्च के नीमअंधेरे में मन में उठते हज़ारों-हज़ार सवाल याद आए, जिनके जवाब ना फ़ादर दे सके, ना मौलवी और ना पंडिज्‍जी ।

मुझे मुंबई का माउंट मेरी चर्च भी याद आया जब घनघोर निराशा के पलों में बांद्रा में भटकते हुए मैं अचानक सीढियां चढ़के वहां चला गया था ।

मुझे वो सब शामें याद आ गयीं जो मैंने मरीन ड्राईव पर समंदर के किनारे दीवार पर बैठ समंदर की लहरों को देखते बिताईं ।

मुझे तमाम फिल्‍म फेस्टिवल याद आये, जिनमें टाटा थियेटर एन सी पी ए से बाहर निकलकर झटका लगता था—फिल्‍म की दुनिया से मुंबई की कड़ि‍यल हक़ीक़त में लौटकर । अभी अभी चर्चगेट से लौटा हूं, ये गीत हौले हौले ज़ेहन में उतर रहा है । पता नहीं ये सपना है या हक़ीक़त ।

काकेश ने कहा…

सचमुच कमाल है..बिना संगीत वाला वर्जन पहले सुनना चाहिये ..मैने भी यही किया .. सचमुच अद्भुत ... सहमत हूँ कि दिन भर यह सुना जा सकता है...

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