tag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post2307712119475752512..comments2023-10-27T15:06:34.550+05:30Comments on निर्मल-आनन्द: बिकॉज़अभय तिवारीhttp://www.blogger.com/profile/05954884020242766837noreply@blogger.comBlogger9125tag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-8140760316103827452007-08-05T15:40:00.000+05:302007-08-05T15:40:00.000+05:30सचमुच कमाल है..बिना संगीत वाला वर्जन पहले सुनना चा...सचमुच कमाल है..बिना संगीत वाला वर्जन पहले सुनना चाहिये ..मैने भी यही किया .. सचमुच अद्भुत ... सहमत हूँ कि दिन भर यह सुना जा सकता है...काकेशhttps://www.blogger.com/profile/12211852020131151179noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-33982766473713077362007-07-28T21:12:00.000+05:302007-07-28T21:12:00.000+05:30ओह आनंद की पराकाष्ठा । वेस्टर्न म्यूजिक से मेरा...ओह आनंद की पराकाष्ठा । वेस्टर्न म्यूजिक से मेरा ज्यादा नाता नहीं रहा है, पर बीटल्स को ज़रूर सुना है, उफ़, मुझे निर्मल वर्मा की कहानियों का सूनापन और ठहराव याद आया, <BR/><BR/>मुझे कॉलेज के दिनों का अकारण एकांत याद आया, <BR/><BR/>मुझे भोपाल का सेन्ट फ्रांसिस चर्च याद आया, जहां मोमबत्तियों की लौ के तले नीम अंधेरा होता था और बारिश में भीगी शामों को फुटबॉल खेलते हुए हम पानी पीने चर्च के अहाते में जाते थे तो थोड़ी देर मास में भी चले जाते थे । मुझे चर्च के नीमअंधेरे में मन में उठते हज़ारों-हज़ार सवाल याद आए, जिनके जवाब ना फ़ादर दे सके, ना मौलवी और ना पंडिज्जी । <BR/><BR/>मुझे मुंबई का माउंट मेरी चर्च भी याद आया जब घनघोर निराशा के पलों में बांद्रा में भटकते हुए मैं अचानक सीढियां चढ़के वहां चला गया था । <BR/><BR/>मुझे वो सब शामें याद आ गयीं जो मैंने मरीन ड्राईव पर समंदर के किनारे दीवार पर बैठ समंदर की लहरों को देखते बिताईं । <BR/><BR/>मुझे तमाम फिल्म फेस्टिवल याद आये, जिनमें टाटा थियेटर एन सी पी ए से बाहर निकलकर झटका लगता था—फिल्म की दुनिया से मुंबई की कड़ियल हक़ीक़त में लौटकर । अभी अभी चर्चगेट से लौटा हूं, ये गीत हौले हौले ज़ेहन में उतर रहा है । पता नहीं ये सपना है या हक़ीक़त ।Yunus Khanhttps://www.blogger.com/profile/12193351231431541587noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-64420646182543035332007-07-28T15:56:00.000+05:302007-07-28T15:56:00.000+05:30निर्मल है ये आनंद. इन दिनों के पॉप संगीत के बाज़ार...निर्मल है ये आनंद. इन दिनों के पॉप संगीत के बाज़ारू उल्लास के बदले यहाँ उदासी में लिपटी निर्मल आत्मा दिखती है.अनामदासhttps://www.blogger.com/profile/06852915599562928728noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-55466236248528478392007-07-28T15:44:00.000+05:302007-07-28T15:44:00.000+05:30इसको सुन कर एक गहरी भाविक अनुभूति में डूब सकता हूँ...इसको सुन कर एक गहरी भाविक अनुभूति में डूब सकता हूँ।<BR/>सहमत हूँ।Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/16964389992273176028noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-51323437545084265092007-07-28T14:14:00.000+05:302007-07-28T14:14:00.000+05:30इसे सुनकर पुराने दिनों की याद आई । और भी कई गाने य...इसे सुनकर पुराने दिनों की याद आई । और भी कई गाने याद आये , जूलिया , यस्टरडे , व्हाईल माई गिटार....इमाजिन , और लेनन की ब्यूटिफ़ुल ब्वाय जो अपने बेटे के लिये लिखी गाई थी ।Pratyakshahttps://www.blogger.com/profile/10828701891865287201noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-25602018737606216062007-07-28T13:13:00.000+05:302007-07-28T13:13:00.000+05:30एक और छोटी-सी बात. संगीत का परिदृश्य बहुत बदल गया...एक और छोटी-सी बात. संगीत का परिदृश्य बहुत बदल गया है. साठ के दशक से ही नाटकीय स्तर पर बदलना शुरू हुआ. मगर <B>बीटल्स के गानों की एक ख़ास बात है</B>, ख़ास तौर पर उनके शुरुआती, अच्छे दिनों में, जैसाकि यहां <B>बिकॉज़</B> के बिना म्यूजिक वाले वर्ज़न में भी नोटिस किया जा सकता है, वह <B>सीधे दिल से निकली निर्मल आनंदीय धारा है, शुद्ध अंतरंग निष्पाप प्रार्थना है</B>. लगता है आप अचानक छोटे निर्दोष बच्चों की प्रार्थना सभा के गायन से रूबरू हुए खड़े हैं, और भावुकता में आपकी आत्मा नहा रही हो! यह एफ़ेक्ट पता नहीं बाद के कितने बैंड्स की बूते व सामर्थ्य की बात रही..azdakhttps://www.blogger.com/profile/11952815871710931417noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-35484954356469374272007-07-28T12:55:00.000+05:302007-07-28T12:55:00.000+05:30Superb.. damn fuckin great! Danke, mercie, grazie!...Superb.. damn fuckin great! Danke, mercie, grazie!! मैंने उल्टे ऑर्डर में सुना. पहले बिना संगीत वाला वर्ज़न, फिर संगीतमय. और दोनों ही कमाल हैं. ताजुब्ब की बात कि इसकी भी अवचेतन में याद नहीं बची थी! स्मृति क्यों ऐसे कमाल करवाती रहती है? <BR/><BR/>ख़ैर, इसे सजा-चढ़ाकर तुम फिर स्वामीत्व प्राप्त किये! मगर सुनने के बाद आदमी मरना न चाहे तो और क्या करे. टर्न ऑन की मन:स्थिति में जाकर किसका हाथ पकड़ ले? दुनिया को किस नज़र से देखने लगे?azdakhttps://www.blogger.com/profile/11952815871710931417noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-68322445317131970022007-07-28T12:45:00.000+05:302007-07-28T12:45:00.000+05:30.. इसे सुन कर मैं मर सकता हूँ..कृपया ना सुने.एसी ख..... इसे सुन कर मैं मर सकता हूँ..<BR/>कृपया ना सुने.एसी खतरनाक चीज काहे सुनवा रहे हो भाइ.हम तो नही सुनने वाले,जो अपने को जमी पर भार महसूस कर रहे हो ये उनके लिये है उन्हे भेजो ..:)Arun Arorahttps://www.blogger.com/profile/14008981410776905608noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3447425639729337005.post-53137850359558199752007-07-28T12:39:00.000+05:302007-07-28T12:39:00.000+05:30सुनने के लिए मरना मुल्तबी नहीं हो जाएगा ?सुनने के लिए मरना मुल्तबी नहीं हो जाएगा ?अफ़लातूनhttps://www.blogger.com/profile/08027328950261133052noreply@blogger.com