
शुक्रवार, 23 नवंबर 2007
आप तो मुस्कराइये!

गुरुवार, 13 सितंबर 2007
कुदरती शॉक-एबज़ॉर्बर्स

रनवीर और विनय इस वक़्त मुल्क के बेहतरीन हँसोड़ हैं। मगर आम तौर पर घटिया शाइरी करने वाले जावेद साब सेंस ऑफ़ ह्यूमर की बेहतरीन परिभाषा देकर उन्हे चित कर गए। जावेद साब ने कहा कि जो काम गाड़ी में शॉक-एबज़ॉर्बर का होता है वही काम सेंस ऑफ़ ह्यूमर आदमी के अन्दर निभाता है। सीधी सपाट चिकनी सड़क पर शॉक-एबज़ॉर्बर्स की क्या ज़रूरत, उसका इस्तेमाल तो ऊबड़-खाबड़ गड्ढों से भरी राह को आसान करने में होता है।
बात में दम है। यह बात और भी ज़्यादा मारक लगने लगती है जब आप उस आदमी की कल्पना कीजिये जो कठिनाइयों और मुश्किलों से भरी ज़िन्दगी में बग़ैर किसी सेंस ऑफ़ ह्यूमर के चला जा रहा है। विडम्बना यह है कि हम में से कुछ विरले ही होते हैं जो इस कुदरती शॉक-एबज़ॉर्बर्स के साथ प्रि-फ़िटेड आते हैं। ज़्यादातर दूसरों के गिरने पर हँसते और अपने दर्द पर रोते पाए जाते हैं।
एक बात और.. बेहद गहरे दुख में रोते हुए लोग अक्सर हँसने क्यों लगते हैं?
और एक बात और.. हँसते हुए चेहरे और रोते हुए चेहरे लगभग एक से क्यों दिखते हैं?