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शुक्रवार, 23 नवंबर 2007

आप तो मुस्कराइये!

रेडियोनामा पर युनुस, सागर और इरफ़ान चित्र पहेली खेल रहे हैं.. देखो और बूझो.. रेडियोनामा पर..? पता नहीं किस दमित इच्छा को पूरा कर रहे हैं जो रेडियो पर पूरी नहीं हो सकी.. :) उन से प्रेरित हो कर मैं भी आप को एक चित्र दिखा रहा हूँ.. बूझने को कुछ भी नहीं है, बस देखिये.. और मुस्कराइये.. अपना हाल तो आप देख ही रहे हैं..

गुरुवार, 13 सितंबर 2007

कुदरती शॉक-एबज़ॉर्बर्स

सेंस ऑफ़ ह्यूमर खुशी के मौके के लिए नहीं होता, उसकी ज़रूरत क्राइसिस के समय आती है, जावेद अख्तर बताते हैं। स्टार वन पर रात दस बजे रनवीर, विनय और कौन के नाम से एक कार्यक्रम आता है। परसों रात को रनवीर शोरी और विनय पाठक के साथ 'कौन' के रूप में जावेद अख्तर मौजूद थे।

रनवीर और विनय इस वक़्त मुल्क के बेहतरीन हँसोड़ हैं। मगर आम तौर पर घटिया शाइरी करने वाले जावेद साब सेंस ऑफ़ ह्यूमर की बेहतरीन परिभाषा देकर उन्हे चित कर गए। जावेद साब ने कहा कि जो काम गाड़ी में शॉक-एबज़ॉर्बर का होता है वही काम सेंस ऑफ़ ह्यूमर आदमी के अन्दर निभाता है। सीधी सपाट चिकनी सड़क पर शॉक-एबज़ॉर्बर्स की क्या ज़रूरत, उसका इस्तेमाल तो ऊबड़-खाबड़ गड्ढों से भरी राह को आसान करने में होता है।

बात में दम है। यह बात और भी ज़्यादा मारक लगने लगती है जब आप उस आदमी की कल्पना कीजिये जो कठिनाइयों और मुश्किलों से भरी ज़िन्दगी में बग़ैर किसी सेंस ऑफ़ ह्यूमर के चला जा रहा है। विडम्बना यह है कि हम में से कुछ विरले ही होते हैं जो इस कुदरती शॉक-एबज़ॉर्बर्स के साथ प्रि-फ़िटेड आते हैं। ज़्यादातर दूसरों के गिरने पर हँसते और अपने दर्द पर रोते पाए जाते हैं।

एक बात और.. बेहद गहरे दुख में रोते हुए लोग अक्सर हँसने क्यों लगते हैं?


और एक बात और.. हँसते हुए चेहरे और रोते हुए चेहरे लगभग एक से क्यों दिखते हैं?

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