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बुधवार, 14 जुलाई 2010

तव सर कंदुक सम नाना

माना जाता है कि तमाम खेलों की तरह फ़ुटबौल भी इंगलैण्ड में जनमा, पूरी तरह निराधार नहीं है यह बात। आज के तमाम लोकप्रिय खेलों के स्वरूप के निर्धारित करने में १९वीं सदी के उत्तरार्ध के सालों में इंगलैण्ड की भूमिका रही है। यह सही है कि इन परम्परागत खेलों को नियमावली को संगठित करने और उनके मानकीकरण का श्रेय उन्हे ही है लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि गेंद को पैर और छड़ी से खेले जाने वाले खेल पहले अस्तित्व में ही नहीं थे।

क्या आप को याद नहीं है कि द्रोणाचार्य कौरवों के यहाँ आचार्य का पद कैसे पा गए? कौरव-पाण्डव  राजकुमारों की कन्दुक एक सूखे कुँए में गिर गई थी, और उसे निकालने का कोई साधन उनके पास नहीं था। तभी द्रोण वहाँ से निकले (सम्भवत: अश्वत्थामा के लिए दूध खोजने निकले होंगे ताकि उसे बार-बार आटे का घोल न पीना पड़े)। राजकुमारों की सहायता करने के लिए उन्होने गहरे कुँए में एक तीर मारा, फिर तीर के ऊपर और उसके ऊपर तीर तब तक मारते रहे जब तक आख़िरी तीर कुँए के जगत तक नहीं आ गया। और उन्होने कन्दुक बाहर निकाल ली। तो गेंद उस काल में भी खेली जाती थी।

एक क़यास यह भी लगाया जाता है कि असल में पूर्वकाल में लोग दुश्मन के कटे हुए सर को पैरों से मार-मार कर आपस में खेलते थे और दुश्मन के प्रति अपने मन में भरे सारे आवेशों को मार्ग देते थे। ये ठीक बात है। जिन लोगों ने इस्मत चुग़ताई का उपन्यास 'एक क़तराए ख़ून' पढ़ा है उन्हे याद होगा कि जब हज़रत हुसैन का सर काट कर दमिश्क में ख़लीफ़ा के दरबार में पेश किया गया तो यज़ीद ने उसे लातों से मार कर इधर-उधर उछालना शुरु कर दिया। ये दृश्य एक ज़ईफ़ दरबारी की बरदाश्त के बाहर हो गया और उसने यज़ीद को ताक़ीद की, "बाज़ आ, इन्ही सूखे लबों वाले सर को मैंने देखा है पैग़म्बर को  चूमते हुए.."


और तो तुलसी बाबा ने भी ऐसी एक रवायत को याद करते हुए अपने काव्य में उसे जगह दी है। लंका काण्ड में अंगद दशानन रावण को धमकाते हुए कहते हैं-

ते तव सर कंदुक सम नाना।
खेलहहिं भालु कीस चौगाना॥

दोस्तों आप जानते ही होंगे चौगान, पोलो नामक खेल का मूल फ़ारसी का नाम है। इसी चौगान का एक रूप अफ़ग़ानिस्तान का लोकप्रिय खेल बुज़कशी भी है। यह भी ध्यान दिया जाय कि मानस में जो गिने-चुने फ़ारसी के शब्द हैं उन में चौगान भी एक है।
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