गुरुवार, 7 नवंबर 2013

मैं वायु स्वरूप हूँ

मैं वायु स्वरूप हूँ। 
सब कुछ छूते हुए चलता हूँ। 

मैं जल स्वरूप हूँ। 
टूटता जाता हूँ, बहता जाता हूँ, जुड़ता जाता हूँ। 

मैं पृथ्वी स्वरूप हूँ। 
सब कुछ वहन करता हूँ, सहन करता हूँ। 

मैं अग्नि स्वरूप हूँ। 
जल सकता हूँ, सब कुछ जला सकता हूँ। 

मैं आकाश स्वरूप हूँ। 
सब कुछ मेरे भीतर घटित होता है, और मेरे ही भीतर लीन हो जाता है। 

मैं ब्रह्म स्वरूप हूँ। 
मेरे चाहने भर से सब कुछ हो जाता है, और चाहने ही से खो भी जाता है। 

मैं आनन्द स्वरूप हूँ।
किसी वस्तु में कोई आनन्द नहीं, सारा आनन्द मुझ से ही आता है। 


मैं सब कुछ हूँ पर कुछ नहीं हूँ। 
वो कुछ नहीं है पर वही सब कुछ है। 

***

4 टिप्‍पणियां:

Ashok Pandey ने कहा…

हां, वो कुछ नहीं है पर वही सब कुछ है। सारा आनन्‍द उससे ही आता है। ...निर्मल आनन्‍द भी :)

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून ने कहा…

अहमब्रह्मास्‍मि‍

विमल कुमार शुक्ल 'विमल' ने कहा…

ऊँ पूर्णमद: पूर्णमिदम् पूर्णात् पूर्णमुदच्यते।
पूर्णात् पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते।

Harihar (विकेश कुमार बडोला) ने कहा…

इस कुछ-कुछ में बहुत कुछ है श्रीमान।

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...