गुरुवार, 31 अक्टूबर 2013

ईश्वरीय मिहर


ईश्वरीय मिहर बहुत मामूली चीज़ है। आप कहीं भी जाइये वो होती है। ईश्वरीय चैनल सर्वत्र सर्वसुलभ है। यह अच्छे बुरे का भेद नहीं करता। 

आंधी, बरसात, हवा, पानी, धूप की तरह सब के लिए समान है। कोई भी ले सकता है। फ्री ऑफ चार्ज। बट नो डिस्काउंट। कोई नहीं लेना चाहेगा तो उसको नहीं मिलेगी मिहर। 

आप पानी मत पीजिए, पानी उठकर आपके मुँह में बरसने नहीं लगेगा। आप धूप में नहीं जाएंगे तो धूप दीवार तोड़कर आप तक नहीं आएगी। 

ईश्वर की मिहर साधु भी ले सकता है और शैतान भी। एक नम्बर का दुष्ट भी ईश्वरीय मिहर पा सकता है। पाते हैं। रावण ने दस बार अपना सीस चढ़ाकर शिव से शक्ति प्राप्त कर ली। इबलीस स्वयं को अल्लाह का सबसे बड़ा भक्त मानता है। शायद है भी। इसीलिए नास्तिकों को दुनिया ईश्वर के न्याय से हीन नज़र आती है। भले लोग दुख पा रहे हैं। हरामी लोग मज़े कर रहे हैं। 

भगवान का प्रसाद सब को मिल सकता है। जो जो चाहता है, उसे वही मिलता है। कोई भला चाहता है, कोई बुरा चाहता है। और कुछ ऐसे भी हैं जो कुछ भी नहीं चाहते। मगर सबसे अनोखे तो वे हैं जो इस मिहर को एक चिकाईबाज़ी मानते हैं। बेपर की उड़ाई समझते हैं। ईश्वर चाह कर भी उनकी कोई मदद नहीं कर सकता। 


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