बुधवार, 2 अक्टूबर 2013

शिव सूत्र

शिव सूत्र बड़ा गूढ़ ज्ञान है। उसकी विविध टीकाएं मामला सुलझाने के बाद अक्सर और उलझा देती हैं।  इसको समझने के फेर में कई टीकाएं पलटीं। जो समझ आया यहाँ छाप रहा हूँ। यह केवल प्रथम विकास- शाम्भव उपाय का सरल अनुवाद है। 

शिव सूत्र: शाम्भवोपाय

आत्मा चैतन्य है। 

ज्ञान बेड़ी है। 

दुई और दुनियादारी भी बेड़ी है। 

ये तीनों उस आदि माँ की शक्ति है जिसे हम नहीं जानते। 

हमारा कदम ही भैरव है। 

इस शक्ति को जान लेने से क़यामत हो जाती है। दुनिया नहीं रहती। 

जागते, सपने में, और गहरी नींद में भी चौथी अवस्था मिल जाती है। 

दुनिया में जागना ज्ञान है। 

सपना कल्पना है। 

अविवेक ही सुषुप्ति है। 

जो तीनों को पचा गया वही महावीर है। 

इससे विस्मय की ज़मीन तैयार होती है। 

और उसकी इच्छा पार्वती की शक्ति बन जाती है। 

सारा शरीर दृश्य हो जाता है। 

चित्त के ह्रदय में पैठ जाने से सारे जगत में अपना ही दर्शन होता है। 

या शुद्ध तत्त्व के सध जाने से शिव की शक्ति मिल जाती है। 

इस युक्ति से आत्मज्ञान हो जाता है। 

वो समाधि के सुख में सारे लोकों का आनन्द लेता है। 

इस शक्ति को पा कर वो जो चाहता है, पैदा हो जाता है। 

हवा पानी हाथ के खिलौने हो जाते हैं। वो हवा पानी से पार हो जाता है। वो सारे संसार में पैठ जाता है। 

पर संयम साधने से शुद्ध विद्या का उदय होता है। और सारे चक्रों पर अधिकार हो जाता है।

***



3 टिप्‍पणियां:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

गहरे व चिन्तनयोग्य। हम तो आजकल संस्कृत व्याकरण के महेश्वर सूत्र पढ़ रहे हैं।

Pratik Pandey ने कहा…

बढ़िया! काफ़ी पहले शिव सूत्र की अंग्रेज़ी टीका पढ़ी थी, लेकिन ज़्यादा पसंद नहीं आयी। कभी कोई हिन्दी टीका मिले, तो मज़ा आए।

विमल कुमार शुक्ल 'विमल' ने कहा…

भौतिक जगत में खोये हुए मनुष्य को इस ज्ञान की महती आवश्यकता है।

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