जानकी काकी से मिले एक अरसा हो गया। बचपन में हर साल छै महीने पर जानकी काकी और ओम काका से मिलना होता था। और उन सारे मौक़ो पर शांति जानकी काकी के ही साथ लिपट कर सोती। मगर उससे भी ख़ास नींद की गोद में गिरने के ठीक पहले की रस्म होती। एक बार काकी ने उसे कहानी क्या सुनाई शांति तो उनके पीछे ही पड़ गई। जब भी आतीं हर रात सोने से पहले कहानी सुनने की ज़िद। परियों, जादूगरों, देवताओं और राक्षसों की। सुनी-सुनाई कहानी भी काकी की ज़बानी कुछ अलग असर ले कर आती। और इतने हलके सुरूर से भरी होतीं कि शांति की कल्पनाओं को पर से मिल जाते। और उसे लगता कि वो भी उसी जादुई जगत का एक हिस्सा है। इसी जादुई असर में शांति ने जानकी काकी का नाम जादू वाली काकी रख दिया था।
बड़े होने के बढ़ते बोझ से कहानियों का जादू खुलता चला गया। और उसके साथ-साथ जानकी काकी के आकर्षण पर भी परदा गिरता गया। कालेज पहुँचने तक शांति का मन न जाने कितनी दूसरी चीज़ों और बातों की गिरफ़्त में चला गया था। जानकी काकी आतीं भी तो शांति किसी और दुनिया में उड़ती-फिरती। उनसे बात करने, उनसे लिपट कर सोने और सोने से पहले जादुई कहानियां सुनने की तो फ़ुर्सत ही न रहती उसे। और अगर जानकी काकी उसे ऐसा निमंत्रण देतीं भी तो शांति ये कह कर छुटकारा पा लेती कि वो बच्ची नहीं रही, बड़ी हो गई है। अब उन बातों को सोचकर लगता है कि वो उस वक़्त भी नादान ही थी। जो जानकी काकी के स्नेह से दूर भागती रही।
परसों रज्जू भाईसाब का फोन आया कि काकी की तबियत बेहद ख़राब है। डाक्टर ने कह दिया कि अन्तिम समय है। रज्जू भाईसाब ने यह भी कहा कि काकी, शांति को बहुत याद कर रही हैं। शांति के भीतर न जाने क्यों एक अपराध बोध उतर गया। लगा कि उनके स्नेह का कर्ज़ हो जैसे उसके ऊपर। तो दफ़्तर और घर की ज़िम्मेदारियों से दो दिन का समय निकाला और काकी के अन्तिम दर्शन के लिए निकल पड़ी। आसन्न मृत्य वाले घर में अचरज को ले जाने का शांति का कोई मन तो नहीं था मगर वो जिद कर बैठा। तो लाना ही पड़ा। उसे मृत्यु के बारे में कुछ अता-पता नहीं। काकी से मिलने जाना एक दूसरे शहर उसके लिए एक रोमांच भरा नया अनुभव है। वैसा ही जैसा किसी जादुई कहानी में होता है। रास्ते भर शांति उसे जादू वाली काकी और उनकी कहानियों के क़िस्से सुनाती हुए लाई। जादूगरों, मायावी राक्षसों और तिलिस्मी दुनिया की उन टूटी—फूटी कहानियों ने अचरज के मन पर जानकी काकी की कुछ ऐसी छवि गढ़ी कि वो उनसे मिलने को बेताब बना रहा।
काकी के घर को जाने वाली वो पुरानी गलियां शांति की स्मृतियों में किसी भूलभुलैय्या की तरह दर्ज़ हैं। वो गलियां काकी के घर के अब के रस्ते से ज़रा मेल खाती हुई न मिलीं। वक़्त ने जैसे उन पर भी पानी फेर दिया हो। मगर अचरज के लिए सब कुछ नया है और जादू भरे सौन्दर्य से भरा है। नए शहर के नए भूगोल ने उसे एक उत्तेजना से भर दिया है। शाम हो चली थी। काकी का घर एक धुंधले उजाले में था। छोटे से घर में तमाम सारे नाते-रिश्तेदार जमा थे। सुख और दुख के मौक़ों पर ही लोग एक दूसरे से मिलते हैं। सब से मिलने की खुशी, काकी की आसन्न मृत्यु की उदासी से धूमिल बनी रही। सब तरफ़ जाने-पहचाने चेहरे थे। मानो कमरे में घूमती हुई नज़र किसी एलबम के पन्ने पलट रही थी।
काकी अन्दर के कमरे में झूली हुई खाट पर पड़ी हुई थीं। अन्दर धंस गई आँखें अपने आस-पास किसी को भी नहीं देख रही थी। अपने भीतर ही किन्ही स्मृतियों से सुख की सांसे खींचती सी लग रही थीं। शांति काकी का हाथ पकड़ कर वहीं बैठ गई। किसी ने ज़ोर से बोला कि शांति आ गई। काकी ने आवाज़ की तरफ़ नज़र घुमाई मगर उसका कोई असर उनके चेहरे पर नहीं आया। कुछ देर बाद एक अनजानी से दृष्टि से उन्होने शांति को भी देखा। अचरज की जिज्ञासा का ख़्याल करके शांति ने अचरज का उनसे परिचय कराया तो मगर वो अचरज की कल्पना जैसा बिलकुल न हुआ। फिर अचानक पाताल में झांकती उन बेनूर आँखों में कुछ झलका। और बाहर बहने लगा। वो आँसू थे। काकी उसका हाथ पकड़कर लगभग बेआवाज़ रो रही थीं। वो क्या कहना चाहती थीं, किस बात पर उनकी आँखों की नहर ने मेंड़ तोड़ दी थी, शांति को समझ नहीं आया। आस-आस के लोग घबरा कर उनसे तरह-तरह के सवाल करने लगे। तमाम तीमारदार आगे आ गए तो शांति पीछे हट आई।
सारे मेहमानों ने पसीने से भीगी रात, उन्ही दो कमरों में गुड़ी-मुड़ी होकर गुज़ार दी। बड़ी सवेरे शांति की जब नींद खुली तो आसपास बड़ी हलचल थी। सारे लोग काकी के बिस्तर के पास इकट्ठा थे। रज्जू भाईसाब उनके मुँह में गंगाजल टपका रहे थे। काकी की साँस बहुत आवाज़ के साथ चल रही थी। ऐसा लग रहा था कि उन्हे सांस लेने में बहुत मेहनत करनी पड़ रही हो। दो सांसों के बीच अन्तराल भी बहुत अधिक हो गया था। ऐसा लगता था कि अगली साँस पता नहीं आएगी भी नहीं। और फिर ऐसे ही साँस का तार टूट गया। सब लोग रोने लगे। औरतें छाती पीटने लगीं। मर्द कोने में सुबकने लगे। दूर वाले नज़दीक़ वालो को दिलासा देने लगे। शांति से न रोते बना और न किसी को दिलासा देते बना।
अचानक उसे अचरज का ख़्याल आया। उसने देखा कि अचरज दरवाज़े के पास खड़ा सब कुछ दर्शक की तरह देख रहा है। उसके चेहरे पर न दुख है न उदासी। बस एक अजब तरह की उत्सुकता और हैरत है। वो ऐसे सब कुछ देख रहा है जैसे सुबह उसकी आँख काकी के घर में नहीं किसी जादुई कहानी में खुल गई हो। उसने शांति को देखा और धीरे से आकर माँ के बाज़ू में बैठ गया। और हौले से पूछा- जादू वाली काकी सचमुच मर गईं? शांति ने सर हिलाया। अचरज उसे अविश्वास से देखता रहा। जैसे उसे किसी चमत्कार की उम्मीद रही हो जिसके बाद जादू वाली काकी बिस्तर से उठ बैठेंगी और अचरज को कोई ऐसी कहानी सुनाएंगी जो उसकी माँ सुन चुकी है। पर काकी ने ऐसा कोई जादू नहीं दिखाया।
कई दिनों बाद एक सुबह जब शांति जागी तो उसके मन पर रात देखे सपने की अस्फुट छाप उभरने लगी। सपने में वो थी, अचरज था और जानकी काकी थीं। तीनों किसी रोमांचक सफ़र में थे। जिसमें एक परी थी, एक जादूगर था और एक तोता था जिसमें जादूगर की जान बसती थी। अचरज जितनी बार अपनी तलवार से जादूगर का सर क़लम करता, एक और सर जादूगर की गरदन से उग आता। फिर काकी ने बताया कि जादूगर की जान तो तोते में है। जब तक तोता नहीं मरता जादूगर कभी नहीं मरेगा। उसके बाद सपने में क्या हुआ, शांति को कुछ याद नहीं आया।
उसी दिन कुछ घंटे बाद शांति अम्बेडकर नगर के चौराहे पर सिगनल ग्रीन होने का इन्तज़ार कर रही थी। वहाँ खड़े-खड़े अपने सपने के बारे में सोचते हुए शांति को ख़याल आया कि वो काकी जो उसके बचपन में जादुई कहानियां सुनाती थीं वो तो उस झूले हुए बिस्तर पर थी भी नहीं? वो जो मर गईं वो तो कोई और ही काकी थीं जिनका नाम, शकल और इतिहास जादूवाली काकी से मिलता जुलता था। जादूवाली काकी तो उसकी स्मृतियों में अभी भी ज़िन्दा हैं। फिर उसने सोचा कि धंसी हुई आँखों वाली मरणासन्न काकी भी शायद उसी जादूवाली काकी की याद में रो रही थीं जो शांति की स्मृतियों में क़ैद हैं।
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(इसी इतवार को दैनिक भास्कर में छपी)
6 टिप्पणियां:
काकी की हर कहानी सच्ची लगती है।
सही बात है..कि काकी की हर कहानी सच्ची लगती है.
काकी की कहानियो से शान्ति और अचरज जैसी कई कड़िया जुडती जाती है..
बहुत भावुक हो गया मैं।
मर्म को छू गयी कथा....
सच है, काकी स्मृतियों में अमर रहेंगी ।
पर, शाँति से उनका क्या रिश्ता था ?
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