पहले बोलते थे- जै सिया राम! बोलते थे राम-राम! नाम भी होते थे राम सजीवन, राम पदारथ, राम खिलावन, राम कृपाल, राम गोपाल। जन-जन राम से ओत-प्रोत था, सराबोर था। लोग चुहुल में माँ को माताराम भी कहते। अल्पसंज्ञा और संज्ञाशून्य हस्तियों को भी नाम प्रत्यय से पुकारते थे, जैसे कुत्तेराम, और पेड़राम। अवसरवादी भी आयाराम-गयाराम की उपाधि ले कर राम का प्रसाद पा जाते। पिंजड़े में क़ैद मिट्ठू भी पहले सीताराम का पाठ ही सीखता।
लेकिन आडवाणी जी ने अपनी राजनीति खेलकर सब नरक कर दिया। अब लोग राम का नाम लेने में शर्माने लगे हैं। क्योंकि ‘जै श्री राम’ कहते ही एक साम्प्रदायिक फ़िज़ा तैयार हो जाती। क्रूर और हिंसक स्मृतियां कुलबुलाने लगती हैं। राम के नाम के साथ किए इस अपराध के लिए मैं निजी तौर पर आडवाणी जी को कभी माफ़ नहीं कर सकता।
पहले लोग ‘जै श्री राम’ नहीं ‘जै सिया राम’ बोलते थे। पहले पद में ‘सिया’ को निकाल कर बाहर कर के राम के मर्यादा पुरुषोत्तम छवि पर जो धब्बा है वह और गहरा गया है। जबकि ‘जै सिया राम’ में राम के अपराध के प्रति एक विद्रोह है कि राम जी भले आप ने सीता मैया को निकाल दिया हो, हम तो उन्हे हमेशा याद करेंगे और आप के पहले याद करेंगे।
जै सिया राम!
यह कहते हुए सीता को हम राम से वापस मिला देते हैं और राम की छवि को निर्मल बना देते हैं।
15 टिप्पणियां:
अब लोग राम का नाम लेने में शर्माने लगे हैं।
मान्यवर आप शर्माते होंगे. वैसे ही जैसे सेक्युलर कहलवाने के लिए "हिन्दु" बनने से शर्म आती है.
दोष खुद की मानसीकता का है, दोष आड़वाणी को दे रहे हो. यह किसने कहा राम का नाम लिया तो भाजपाई हो गये. यह असर है सेक्युलरों के प्रचार तंत्र का जिन्होने भय फैला रखा है कि राम यानी भगवा ब्रिगेड. राम किसी की बपौती नहीं.
जै रामजी की.
आप ने मेरे मन की बात कह दी। पर राम का नाम ले कर तो संकोच नहीं। राम केवल दशरथ का पुत्र ही नहीं था। एक राम कबीर का भी था।
पर राम का संबंध शबरी से भी था और जटायु से भी, विभीषण और निषाद से भी, अहिल्या और अंगद से भी।
सियाराम.....नाम सुनकर मुझे सियाराम सूटिंग एंड शर्टिंग की रिसेप्शनिस्ट याद आ गई। हम लोग इंटरव्यू देने के लिये रिसेप्शनिस्ट के पास बैठे थे और वहां से कोई फोन आ गया.....रिसेप्शनिस्ट ने कहा -
सियाराम
....
सियाराम....
इसके बाद वह रिसेप्शनिस्ट हंसते हुए बोली....
यस इट्स सियाराम सर What can I do for You.
दरअसल, जैसे ही रिसेप्शनिस्ट ने सियाराम कहा सामने वाले बंदे ने जय सियाराम कहा....और इसीमें गफलत हो गई....एक नाम बताये दूसरा उसे प्रणाम समझे।
एक वेल रिप्यूटेड कंपनी की रिसेप्शनिस्ट सियाराम कहे तो गफलत तो होनी ही थी :)
एक अलग दृष्टिकोण से आज इस पहलू को देखा ..नहीं कहूं कि आपने दिखाया ..अब सोचता हूं फ़िर आऊंगा बताने कि क्या सोचा समझा
अजय कुमार झा
बड़े महान टिपैया हैं ऊपर वाले !
सोझ - सोझ बात मा भी रगड़-घस्स किहे बिना नाय मनते !
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बहुत सही लिखा गवा की जबसे राजनीति का राम के साथ मिलाय दीन गा
तबसे ऊ संस्कार वाली दृष्टियई बिलाय गै , '' सियाराम मय सब जग जानी '' के कहत
है अब !
सिया के साथ राम कै लोक-तुक और राम सबद कै व्यापकता कै निरखैया बहुत थोर रहि
गए हैं !
बड़ा नीक लाग पढि के ! तेवारी भाय , आभार !
"....राम का संबंध शबरी से भी था और जटायु से भी, विभीषण और निषाद से भी, अहिल्या और अंगद से भी।"
शंबूक का नाम कोई नही ले रहा ..आश्चर्य!
चिंता न करें...तिवारी जी ये तो प्रारंभ है....4m(मार्क्स,मुल्ला,माईनो,मिशनरी)को भारत माता की जय ,वंदेमातरम् वो हर चीज से प्राब्लम है जो इस देश की धरती से जुङी है.....आप ब्राह्मण हो सकते हो,जाट हो सकते हैं,मुसलमान हो सकते हैं...अपने आप को सिक्ख या जैन कह सकते है...पर हिंदु कहने मैं आपकी नानी मरती है...यही तो कमाल है सैक्यूलर मीडिया का....जय हो
जय सियाराम.
हमारे घरों में तो आज भी राम-राम कहकर दुआ सलाम होती है
जै सिया राम !
जय-जै सिया राम!
हमारे मथुरा में तो राधे राधे ही व्याप्त है, राधे श्याम पर अभी तक नजर नहीं पडी है, खैर मनाईये।
जै श्री राम.. बात सही है..लेकिन इसके लिये जितनी भगवा ब्रिगेड दोषी है, उतने ये सो- काल्ड नान सेकुलर्स...
jai siyaram!
bahut hi badhiya aur satik nazar dali aapne.
sehmat hu
आज दिनांक 25 मार्च 2010 को दैनिक नवभारत टाइम्स में संपादकीय पेज 10 पर आपकी यह पोस्ट हिंदी विमर्श स्तंभ में प्रकाशित हुई है, बधाई।
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