मेरे चरित्र का एक बड़ा दोष ये है कि मैं एक से ज़्यादा काम एक वक़्त पर नहीं कर सकता। एक दौर में मेरे सर पर एक ही चीज़ का भूत सवार हो सकता है। एक संतुलन बना कर सब कुछ थोड़ा-थोड़ा कर लेने का शऊर मुझे कभी नहीं आया। मेरी माँ ने मुझे बचपन में ही असत्ती घोषित कर दिया था। केले खाता था तो दिन भर में दरज़न खा जाता था। नहीं खाता था तो सालों नहीं। आयुर्वेदिक संतुलन बनाने की कोशिश बहुत जारी हैं मगर मूल स्तर पर स्वभाव का आज भी यही हाल है। अगर किसी एक से बात कर रहा हूँ तो दूसरे से मोबाइल पर बात करने में भी खीज होने लगती है। इसी दोष के चलते मैं ब्लॉग से भी कभी-कभी गायब भी हो जाता हूँ।
कुछ लोग होते हैं कि काम करते हुए आराम से संगीत भी सुनते रहते हैं। मुझ से ये हुनर कभी नहीं सधा। हुआ हमेशा यही है कि मैंने उठा के संगीत बन्द कर दिया है। लेकिन जब संगीत के पीछे पड़ा हूँ तो महीनों सिर्फ़ संगीत सुना है। सुबह उठने से लेकर कर रात सोने तक, सब काम छोड़-छाड़ के। ऐसे एक दौर में मुझे आबिदा का बुखार चढ़ा था और उनकी भक्ति में पड़ के मैं सिर्फ़ उन्हे सुनने दिल्ली तक चला गया था।
कल अचानक टीवी पर संस्कार चैनल पर एक गायक को देखने लगा और देखता ही रह गया और सुनता ही रह गया। पहले भी एक दो दफ़े देखा था और उन में एक अजब सी कशिश पाई थी। आप सुनिए विनोद अग्रवाल को.. वे गायक भी हैं और संत भी और सूफ़ी भी। गाते-गाते बीच में प्रवचन करते नहीं पर कभी-कभी कर भी देते हैं। उनके कुछ गीत तो ऐसे हैं जिसमें सम्भवतः उनके पास कोई लिखा हुआ गीत भी नहीं होता.. बस वो अपनी धुन में अपने भावों को शब्द देते चलते हैं।
गुलज़ार ने कहीं आबिदा के बारे में कहा है कि आबिदा गाती हैं तो उनकी आवाज़ अल्लाह तक जाती है। गुलज़ार साहब बड़े शाएर हैं उनकी पहुँच मणिरत्नम और यश चोपड़ा तक ही नहीं अल्लाह मियाँ तक है। शायद अल्लाह मियाँ के बगल में बैठ कर ही वे आबिदा को सुनते हैं J पर सच है उनकी बात, आबिदा की आवाज़ में हैं वो जज़्बा।
विनोद जी की आवाज़ भले आबिदा की तरह बुलन्द न हो मगर जब वे गाते हैं तो सुनने वालों के भीतर तक उतर जाते हैं और आँसुओं की शक़्ल में बाहर बह आते हैं। भाव विभोर हो कर खुद भी रोने लगते हैं और अपने सुनने वालों को भी रुला देते हैं। आँखे बन्द कर गाने वाले इस भक्त के भजन को लोग आँखें बन्द कर के सुनते हैं।
मैं ने पाया है कि सेक्यूलर एथॉस के भद्रलोक ‘अली मौला’ और ‘अल्ला हू’ पर झूमने में तो ज़रा नहीं झिझकते मगर ‘कृष्ण गोविन्द गोविन्द’ की धुन पर संशय में पड़ कर उसमें साम्प्रदायिकता की बू तलाशने लगते हैं। हो सकता है मेरी इस बात से हाफ़पैंटिया लोग उछलने लगें और सेक्यूलर बंधु नाराज़ हो जायं। मगर जो सच है वो सच है। बंधुओ से गुज़ारिश है कि इस कृष्ण-भक्त की भावनदी में एक बार उतरने के पहले सोच लें क्योंकि बह जाने का डर है।
10 टिप्पणियां:
अभयजी, आप यकीन नही करेंगे २-३ साल पहले करीब ६-७ महीने मैंने विनोदजी को लगातार सुना है. आस्था(या साधना)चैनल पर रात ११ बजे उनका कार्यक्रम होता था. एक दिन अचानक ही उस चैनल का बटन दब गया था लेकिन उनको सुनने के बाद हर रोज़ भक्तिभाव के साथ वो चैनल हमारे यहाँ देखा जाने लगा. उनका गाया एक सूफी कलाम तो इस कदर मन में बस गया कि आज भी मुझे याद है. उसके बोल कुछ इस तरह हैं-
तेरी हसरतें है दिल में तेरी आरज़ू है दिल में
न हटे मेरी निगाहे तेरे रुख़ से जिंदगी में
फूलों की ताज़गी में न तारो की रोशनी में
जो बात देखि तुममे देखि नही किसी में
मेरे दिल में चाहतें हैं मैं यही सोचता हूँ
कोई दूसरा न आए अब मेरी जिंदगी में
तुम सामने खड़े हो मैं सजदा कर रहा हूँ
क्या लुत्फ़ आ रहा है बन्दे को बंदगी में
मेरी आखरी तमन्ना तू कुबूल काश करले
मैं जीऊँ तेर गली में मैं मरू तेरी गली में
ये पंक्तिया साधारणसी है मगर विनोदजी ने उन्हें असाधारण बना दिया. परम आनंद और कुछ और नही. आप ज़रूर सुनियेगा.
अपने ब्लॉग पर लगातार आप इस तरह के खतरे मोल लेते रहते है. इसीलिये आपने पहले ही चेता दिया की कृष्ण रस के अपने दुनियावी संकट है.आप 'ब्रांड' हो सकते है.पर निर्मल आनंद के आगे ये खतरे तो उठाने होंगे.
जय गोबिंद...जय निर्मल आनन्द
विनोद जी अग्रवाल के गाये कई भजन यहाँ से डाउनलोड कर सकते हैं
http://www.4shared.com/dir/3396455/890ed70b/sharing.html
http://www.4shared.com/dir/3700464/66cecbe5/sharing.html
Kumar Gandharvaji aur sufi qawwali ka mila jula roop lagta hai. Unconventional style hai.
Jahan tak sufi qawwali sunanaa secular or bhajan sunanaa communal mane jaane ka sawal hai, mera khayal hai kee 'secular' aur 'communal' kee paribhaashaa kafee complex ho chukee hai aur iske maiine samaaj ke alag - alag staron par alag-alag hai.
mai prabhu sey prathna krta hu ki asey devo ko dharti per kabhi koi aanch na aney paye.yeh yu hi sansaar ki sewa kartey rahey.bhagwan karey iney hamari bhi umar lag jaye.
बिल्कुल दुरुस्त अभय,
मैं भी कई सालों से धार्मिक चैनलों पर टहलते हुए अग्रवाल जी पर आकर ठमक जाता हूँ। सूफ़ियाना क़व्वाली और भक्ति का ऐसा घोल कम ही देखा है, संगित के साथ-साथ ज़बान में भी छलकता है।
रविकान्त
abhay ji, apko blog me paker achchha laga. mujhe tabhi lug raha tha ki aap vahi abhay hain jinke saath kabhi maine pso/aisa me alld me kaam kiya tha,tabhi maine apne email id par nirmal anand ko subscribe kiya tha.ho sakta hai aap santosh sahu ko bhool bhi gaye hon.saathi irfan aur asutosh bhi blog par hain,apke link se pata chala.varanasi ke ghato par likhi posts to bahut jaandar thi.
आप ने सही पहचाना सन्तोष.. मुझे मेल करें.. मेरा मेल पता ब्लौग में मेरी तस्वीर के नीचे है.
वास्तव में विनोद अग्रवाल जी को अंतर्मन से सराहा जाना चाहिए. कृष्ण भक्ति की जो मिसाल मीरा के रूप में पढाई जाती है, वर्तमान समय में विनोद जी का नाम कोई अतिश्योक्ति नज़र नहीं आती |
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