रविवार, 1 फ़रवरी 2009

ज़ोया में दम है!

फ़िल्मो की पृष्ठभूमि पर पहले भी फ़िल्में बनी हैं लेकिन न तो कोई कोई इतनी सहज थी और न ही कोई इतनी गूढ़। ज़ोया अख्तर की लक बाई चान्स फ़िल्म के संसार की एक गहरी समझ से बनाई गई फ़िल्म है। ऐसा मालूम होता है जिस दुनिया को वो हमें दिखा रही हैं उसे वो पास से, अन्दर से जानती हैं और समझती हैं। और उसको एक ऐसे शिल्प में गाँठ के दर्शक के सामने प्रस्तुत करती हैं जो न तो भारी है, न भोथरा है और न ही छिछला है।

फ़िल्म मनोरंजक होने के लिए संवेदना का दामन छोड़ नहीं देती। वैसे तो फ़रहा खान भी ओम शांति ओम में फ़िल्मी दुनिया की ही एक कहानी कहती हैं मगर एक सस्ते मखौलिया अन्दाज़ में।

मुझे खुशी है कि ज़ोया में अपनी दुनिया को हमदर्दी से देखने की और उसकी जटिलताओं को एक महीन शिल्प में बाँधने की कला है। ये खुशी और भी ज़्यादा इसलिए है कि वे अपने प्रतिभाशाली भाई फ़रहान अख्तर के उस दृष्टिदोष की शिकार नहीं है जिसके चलते फ़रहान अपनी तीनों फ़िल्मों में अपनी दुनिया की समूची सच्चाईयों को पकड़ने में असफल रहे हैं।

दिल चाहता है ने देश के एक वर्ग-विशेष को ताज़ा हवा के झोंके का स्वाद ज़रूर दिया था। मगर उस देखकर आप को अन्दाज़ा हो जाता है कि फ़रहान कितनी सीमित दुनिया के निवासी है जिसमें कुल जमा तीन दोस्त, उनके महबूब और माँ-बाप भर हैं। शायद इसीलिए उन्हे अपनी तीसरी फ़िल्म बनाने के लिए एक पुरानी फ़िल्म का सहारा लेना पड़ा। वैसे सीखने के लिए कोई उमर कम नहीं होती और फ़रहान की तो उमर ही क्या है। उम्मीद है कि वे अपने हुनर का बेहतर इस्तेमाल करेंगे।

लक बाई चान्स में जाने-पहचाने अभिनेताओं की भरमार है और ज़ोया ने नए—पुराने सब का अच्छा इस्तेमाल किया है। फ़रहान ने फिर साबित किया कि वे सचमुच एक अच्छे एक्टर हैं। रिशी कपूर ने तो कुछ गजब का ही काम किया है। ज़रूर देखें लक बाई चान्स।

2 टिप्‍पणियां:

azdak ने कहा…

लो, अकेले-अकेले ज़ोया खोया मार आये! सटिकफिकेट भी तैयार करके दे दिया! कवनो देशभक्‍त हिटलर से बोलते हैं फिलिम के बारे में फ़ैसला सुनाये?

बेनामी ने कहा…

ऐसे पसन्द करने वालों की राय को तरजीह देनी पड़ती है ।

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...