शुक्रवार, 10 अगस्त 2007

उन का अल्ला

कल हैदराबाद में एक औरत को तीन मर्दों ने गालियाँ दी.. गुलदस्ते फेंक कर मारे.. और कुर्सी से मारने की कोशिश की.. औरत इस देश में शरणार्थी है.. या पुरानी नैतिकता के आधार पर मेहमान है.. औरत अपनी एक किताब के तेलुगु अनुवाद के लोकार्पण के मौक़े पर आयोजित पत्रकार सम्मेलन में मौजूद थी.. तीनों आदमी सिर्फ़ उसे अपमानित करने, गालियाँ बकने, धमकाने और मारने के इरादे से आए थे.. मौक़ए वारदात पर एक तेलुगु लेखक और एक फोटोग्राफर ने उस हमलावरों के वारों से बचाया..

हमला करने वाले तीनों मर्द एक राजनीतिक दल के सदस्य हैं.. जिसका दर्शन मज़हबी है.. वे आंध्र प्रदेश की विधान सभा के सदस्य भी हैं.. आज के अखबार में उन्हे लॉमेकर कह कर उल्लिखित किया गया है.. ये विधि को बनाने वाले विधायक, इस देश के क़ानून पर तो पता नहीं.. मगर क़ुरान और अल्ला के पैग़म्बर मुह़म्मद पर आस्था रखते हैं ऐसा उनका कहना है.. अब चूँकि सब की आस्थाओं की कसौटी उन्ही के पास है इसलिए कोई उन पर सवाल नहीं उठा सकता.. और उनका आरोप है कि वह औरत नहीं रखती और अपनी किताबों में इस्लाम और पैग़म्बर के बारे में उल्टी सीधी बातें लिखती हैं..

औरत का कहना है कि वो जिस बात को ग़लत समझती है उसे लिखती है.. और इस बेबाकी के चलते उसे अपना देश भी छोड़ना पड़ा.. क्योंकि वहाँ पर बहुत सारे मर्दों को ऐसा लगता था कि वह जो भी बोलती लिखती है उसका उसे हक़ नहीं हैं.. यहाँ और वहाँ के इस्लाम के रक्षकों का मानना है कि तस्लीमा नसरीन नाम की इस औरत के लिखने से इस्लाम खतरे में पड़ जाता है.. तो इस्लाम और पैग़म्बर मुहम्मद को बचाने के लिए वे तीनों मर्द उसे इरादा करके धमकाने-मारने के लिए आए..

सामान्य नैतिकता क्या कहती है वह आप खुद तय कर सकते हैं.. हो सकता इस्लाम की उनकी परिभाषा में एक अकेली औरत पर इस तरह का हमला करना धर्म संगत हो..मैंने जो इस्लाम के बारे में जाना है वह ऐसा नहीं है.. मुस्तफ़ा मुह्म्मद के जीवन की ऐसी कोई घटना तो मुझे इस वक्त याद नहीं आ रही .. मगर हज़रत ईसा जो इस्लाम में भी पैग़म्बर माने जाते हैं.. उन्होने एक औरत को पत्थर मारती भीड़ से कहा था कि पहला पत्थर वह मारे जिसका अपना दामन पाक-साफ़ हो.. जिसने कोई पाप न किया हो.. शायद ये तीनों अपने को ऐसा ही कोई फ़रिश्ता मानते हों..

तीनों को गिरफ़्तार कर लिया गया था.. आज टीवी में मैंने देखा कि उन में से एक सधी हुई अंग्रेज़ी में आत्मविश्वास के साथ कह रहा था.. ज़ाहिर है वह रिहा हो चुका है.. कि एक औरत पर इस तरह के हमले का उसे कोई अफ़सोस नहीं बल्कि वो अगली बार और भी बढ़-चढ़ कर हमला करने का इरादा रखता है.. यह आदमी इस देश के एक राज्य का का़नून बनाने के लिए जनता द्वारा चुना गया है.. इसने शपथ ली है कि वह इस देश के का़नून का सम्मान करेगा.. जहाँ तक मेरी जानकारी है कुछ ऐसी ही शपथ ली जाती है .. जिसमें विधि द्वारा सम्मत.. जैसा कुछ बोलते हैं.. तो ऐसी कसम खाने के बाद खुले आम यह आदमी ऐसे दावे कर रहा है..?

जो आदमी अपने देश के का़नून की कसम खा कर अपने देश के का़नून का मखौ़ल बनाता हो.. वह अपने अल्ला के प्रति कितना निष्ठावान होगा.. इसमे मुझे बहुत शंका है.. और वैसे भी जिसका अल्ला इन जैसों की सुरक्षा में अपना अस्तित्व बचाये हुए हो.. उस अल्ला के प्रति भी मुझे बहुत संशय है..

8 टिप्‍पणियां:

चंद्रभूषण ने कहा…

इस देश में किसी बंदे को चाहे जिस भी तरह के कमीनेपन की एवज में वोट मिलते हों, उसे वह हर कीमत पर करेगा, लिहाजा अल्लाह, ईश्वर वगैरह के नाम पर इन कमीनों को याद करना, इनसे बहस करना, इनकी नैतिकता जगाने की कोशिश करना परालौकिक शक्तियों को गाली देने और इन ज़लील, कमजर्फ लोगों का विज्ञापन करने जैसा है। इन्हें तो जो करना है वे करेंगे ही, बहाना चाहे ये तस्लीमा नसरीन को बनाएं या किसी और को। सोचने की, चिंता करने की बात अगर कोई है तो वह है उन सामाजिक कार्यकर्ताओं और आम लोगों का जमीर, जो इनके खिलाफ कोई पहलकदमी नहीं ले पाते और किनारे खड़े होकर तमाशा देखते रहते हैं। अगर उसी सभागार से ये तीनों विधायक दो-दो सौ जूते खाकर बाहर आए होते तो दृश्य शायद कुछ और ही होता। धर्म और नैतिकता पर अगर बहस करनी हो तो इन बेगैरत लोगों से नहीं, उस कथित उदार धार्मिक मध्यवर्ग से करनी होगी, जिसमें इस बात को लेकर मौन सहमति बनी हुई है कि धर्म के भीतर औरतों, कमजोर तबकों और अकलियतों के हक की बात करना एक किस्म का धर्मद्रोह है। यह समझ बांग्लादेश और पाकिस्तान में एक तरह से है तो भारत के बहुसंख्यक हिस्सों में कुछ और तरह से है। क्या ही अच्छा होता कि उसी हैदराबाद की कुछ मुस्लिम औरतें तस्लीमा पर हुए हमले की निंदा करतीं और ऐसा करते हुए खुशी-खुशी कठमुल्लों का कोप झेलने को तैयार हो जातीं...

सागर नाहर ने कहा…

महिला पर हमला करने वाले इन कायरों से इससे ज्यादा की उम्मीद थी भी नहीं!
क्या ही अच्छा होता कि उसी हैदराबाद की कुछ मुस्लिम औरतें तस्लीमा पर हुए हमले की निंदा करतीं और ऐसा करते हुए खुशी-खुशी कठमुल्लों का कोप झेलने को तैयार हो जातीं...
चंद्रभूषण साहब की इस बात से बिल्कुल सहमत हूँ।

॥दस्तक॥

Neelima ने कहा…

सही सही खरा खरा लिखा आपने ! ऎसे सभ्य समाज की ऎसी सभ्य अभिव्यक्तियां देखकर लगता है अभी भी बर्बर जाति ही हैं हम !यहां अभिव्यक्ति पर ताले लगाने की रवायतें लगातार प्रेक्टिस में रहती हैं ! बेहद शर्मनाक घटना है यह पर जितनी सुगबुगाहट , विरोध और निंदा इसकी होनी चाहिए उतना भर ध्यान यदि यह पा सके .... ! आमीन !

Pramendra Pratap Singh ने कहा…

सही लिखा है।

साधुवाद

Udan Tashtari ने कहा…

अभय भाई

कल टीवी पर पूरा शर्मनाक घटनाक्रम देख रहा था. बेहद शर्मिंदगी हुई.

आपने जो संशय व्यक्त किये हैं मैं उनसे पूर्णतः सहमत हूँ.

बेनामी ने कहा…

chandrabhusan ji ki bat bilkul shahi hai. ye kameene khud to galat hain hi, islam ko bhi badnam karte hain.inka ilaj ek hi hai aur wo hain jute. hindu bhaion ko bhadkane ke lie bhi darasal yahi jimedar hain.

बोधिसत्व ने कहा…

अभी तस्लीमा अपनी हैं । वे लगभग एक भारतीय की तरह हैं। मैं तो सरकार से यह कहूँगा कि वह तस्लीमा को भारतीय नागरिकता दे दे। वह इसकी हकदार भी हैं।
अभी उनका शरणार्थी होना कभी-कभी बुरा लगता है।

arif ने कहा…

तस्लीमा नसरीन को मारने की वजह क्या थी?
शायद वो शैतान से बदत्तर बनी होगी

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