शनिवार, 9 जून 2007

लौटना जुनून का

पिछले दिनों एक लम्बे अन्तराल के लिये चिट्ठे की दुनिया से गायब रहा.. न निर्मल न आनन्द के बाद मेरी इस चुप्पी से कई मित्र संशकित हो गये.. उन्हे लगा कि मेरी इस मौन के पीछे कोई और कारण तो नहीं..प्रमोद भाई और बोधिसत्व से तो बराबर बात होती रहती है.. मगर मैथिली जी, आलोक पुराणिक जी, भाई प्रियंकर, अनामदास और इरफ़ान सभी ने चिट्ठी लिखकर चिट्ठा न लिखने पर चिंता ज़ाहिर की.. उन्हे भी मैंने संक्षिप्त जवाब दे कर अपना हाल बयान कर दिया.. पर और भी कई मित्र होंगे जो चिंतित होंगे और जिनके प्रति मेरी जवाबदेही बनती है..

हुआ दरअसल यह था कि एक लम्बी बेरोज़गारी के बाद कुछ एक ऐसे काम में मुब्तिला हो गया जो कुछ खरचा पानी दे कर जाएगा.. लगभग छ महीने बाद.. प्रमोद भाई की ही तरह मैं भी इस स्थितियों में पहुँच रहा था कि मुसीबत में किधर देखें?.. पर उसके पहले ही भगवान ने कुछ इनायत की और एक फ़रिश्ते को भेज दिया.. आप लोगों को थोड़ी हैरानी हो रही होगी..कि इतने दिनों तक कोई कैसे बेरोज़गार रह सकता है.. अच्छी बात यह है कि मेरी बीबी भी काम करती है और काफ़ी रहमदिल है.. तो कुछ उसके सहारे.. कुछ पुरानी बचत के सहारे ये कठिन दिन कटे.. और समय काटने के लिये आप लोगों का सहारा रहा..

मैं पिछले चौदह साल से पैसे कमाने की जुगत में लगा हूँ.. पर आज तक कभी नौकरी नहीं मिली.. काम मिलता है.. कुछ दिन चलता है.. फिर अगला काम तलाशना पड़ता है.. हम टेलेविज़न की जिस असंगठित दुनिया के हिस्से हैं.. वहाँ एक अपने क़िस्म की अराजकता है.. कोई बना बनाया तंत्र नहीं है.. कोई बने बनाये रास्ते नहीं है.. सम्बन्ध बनते हैं पर अनुबन्ध नहीं.. अगर बना भी तो सम्बन्ध बिगड़ जाने के भय से उनके सन्दर्भ से कोई दावेदारी नहीं करना चाहता..

नौकरी नहीं होती.. उसके साथ आने वाले निम्नतम मज़दूर सुरक्षाएं कार्य घण्टे, जीवन और स्वास्थ्य सम्बन्धी दायित्व आदि जो जो मज़दूर अधिकार दूसरे क्षेत्रों में होते हैं, वे भी नहीं होते.. उन्हे मैं ठीक से जानता भी नहीं.. हम एक खास प्रकार की दासवृत्ति से काम से करते हैं.. हर वक़्त हाज़िर.. मालिक कभी भी नींद से जगा सकता है.. फोन करके हमें हड़का सकता है.. गाली दे सकता है..

आप बीमार हो जाय तो निहायत बेरहमी के साथ आपको निकाल बाहर किया जायेगा.. आप का किया हुआ काम गोल हो जायेगा.. बाज़ार में आप बदनाम हो जायेंगे.. अजी वो तो बीमार पड़ जाता है.. भरोसे के लायक नहीं.. और पैसे की तो कतई कोई उम्मीद मत ही कीजिये आप.. आप से अपेक्षित होता यह है कि आप एक स्वामी भक्त कुत्ते की भाँति अपनी बीमारी का नहीं.. मालिक के काम का सोचिये.. और जान दाँव पर लगा कर काम समय के पहले पूरा कीजिये .. तो इस प्रकार की कठिन नैतिकता वाली दुनिया में जब आपको एक लम्बी बेरोज़गारी के बाद काम मिलता है.. तो आप उसे पेशेगत प्रतिबद्धता या मज़दू्रगत नैतिकता.. जो कहिये.. आप सब कुछ ले दे के उसे निभाने में लग जाते हैं..

ये मेरे बचाव की दलील का एक पहलू है.. दूसरा पहलू यह है कि मैं भी उसी जुनूनी मानसिकता शिकार ज़िन्दगी भर रहा हूँ.. जिसका ज़िक्र बड़े भाई ज्ञानदत्त पाण्डेय जी ने अपनी हाल की एक पोस्ट में किया.. दो ढाई साल पहले की एक बेरोज़गारी के दौरान मैंने फ़ारसी सीखी थी.. फिर उसी बेरोज़गारी के बाद जब कुछ काम मिला तो उसमें ऐसा फँसा कि फ़ारसी का सारा जुनून उतर गया और फिर कभी फ़ारसी में लौटना न हो सका..

इस बार की छह सात माह की बेरोज़गारी में ब्लॉग लिखने का शौक पाला और शास्त्रीय संगीत सीखना शुरु किया.. पिछ्ल डेढ़ दो महीने में वह जुनून थक कर आराम कर रहा है.. और पिछले दस दिन से चिट्ठेकारिता भी उपेक्षित पड़ी रही.. अब देखिये इन में से कौन सा जुनून इन शुरुआती बाधाओं को पार कर मेरे साथ बना रहता है.. ज्ञान जी के उछाले हुए शब्द का इस्तेमाल करते हुए चिठेरी के जीवित होने प्रमाण तो यह पोस्ट है.. और एक दो अन्य पोस्ट का मसाला दिमाग में घुमड़ रहा है.. और दूसरी तरफ़ मेरी संगीत की गुरु का बुलावा आया है.. सोमवार को शायद मेरे कान कुछ लम्बे होने वाले हैं..

उम्मीद करता हूँ.. कि मेरे ये जुनून बने रहें.. और फ़ारसी वाला भी लौट आये..

18 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

खैरम कदम । क्या दुनिया है , आपके टेवि की । चिट्ठे देख तो रहे होंगे इस अन्तराल में ?

Sanjeet Tripathi ने कहा…

चलिए आप वापस तो लौटे हम सबके बीच। स्वागत है।
भगवान आपके जुनुन बनाएं रखे।

Yunus Khan ने कहा…

चलिये अच्‍छा है आप लौट आए । ऊपर वाला करे आपका ये जुनून बना रहे । सोमवार को जानने को उत्‍सुक रहेंगे कि कान कितने लंबे हुए आपके ।

ढाईआखर ने कहा…

हर रोज उम्मीद से आता पर 'न निर्मल, न आनन्द' ही पाता। खैर, आप आये सुकून आया। जहां तक जुनून की बात है, बिना इसके कुछ मुमकिन नहीं।

मैथिली गुप्त ने कहा…

स्वागतम.
जुनून के बिना तो जिन्दगी जिन्दगी ही नहीं है.
हम भी सोमवार का इन्तजार कर रहे हैं.

बेनामी ने कहा…

जुनून जैसा यूनुस ने लिखा है, वैसा ही लिखना चाहिए...

चंद्रभूषण ने कहा…

अभय बाबू खुशआमदीद। अभी एक टीप आपके यहां भेजने की कोशिश की लेकिन शायद गई नहीं। बहरहाल, हर गुलामी बाकी गुलामियों से बुरी होती है, हर गुलामी बाकी गुलामियों से अच्छी होती है- सिर्फ झेलने वाले के मन-मिजाज की बात है। आपकी स्थितियों के बारे में जानकर कभी दुखी होता हूं तो कभी-कभी उनसे ईर्ष्या भी करता हूं। लेकिन आपके जुनून से हर हाल में प्यार करता हूं और उम्मीद करता हूं कि जीवन में किसी शक्ल में कभी दुबारा यह मुझपर भी तारी होगा। आगे समाचार यह है कि आपकी एक और चीज बीच में हमारे यहां शाया हुई। दोनों का देय दो-तीन महीने बाद आपके यहां पहुंचेगा। हफ्ते भर की छुट्टी पर निकल रहा हूं, लौटकर आपके यहां कटिंग भेजने का कुछ जुगाड़ करूंगा।

काकेश ने कहा…

स्वागत है ..आशा करता हूँ अब ये जुनून बना रहेगा..

ALOK PURANIK ने कहा…

अब अभयजी आपने गमे-रोजगार छेड़ दिया, तो इसके आगे कुछ भी नहीं कहा जा सकता यह तक नहीं कि तेरी दो टकिया की नौकरी में तेरा लाखों का चिट्ठा जाये। हाय हाय ये मजदूरी।

36solutions ने कहा…

अभय भाई धन्‍यवाद साफगोई से चिटठी चिटठा लिखने के लिये सरस्‍वती के दासो का धनपुत्रों की दासता में कछुक कानफिलिग तो होईबे करी चलो ठीक बा । जुनून को अपने उपर छाये रखें

Arun Arora ने कहा…

लगे रहे यार ये व्क्त है,सब गुजर जायेगा,जब अच्छा नही रहा तो बुरा भी नही रहेगा,
बस हिम्मत बनये रखो

अनूप शुक्ल ने कहा…

आपकी कमी खलती रही। कामना है कि आपको नियमित काम मिलता रहा और अच्छी तरह निपटता रहे!

Udan Tashtari ने कहा…

स्वागत है वापसी पर-अब जुनुन बना रहे यही कामना है.

Unknown ने कहा…

आपकी यह पोस्ट पढ़ कर यह लाईन याद आ गई...

"Those who love life do not read. Nor do they go to the movies, actually. No matter what might be said, access to the artistic universe is more or less entirely the preserve of those who are a little fed up with the world."
(Michel Houellebecq)

ePandit ने कहा…

वापस स्वागत है आपका। उम्मीद है अब फिर से सक्रिय होंगे।

AK ने कहा…

aapko padhna ab hamara joonoon ho gaya hai. jab bhi joonoon khatm hone ko ho hamare comments jaroor padhe.

v9y ने कहा…

"फ़िक्र-ए-मआश, इश्क़-ए-बुताँ, याद-ए-रफ़्तगाँ
इस ज़िंदगी में अब कोई क्या क्या किया करे"

Unknown ने कहा…

आप अच्छा लिखते हैं.....उससे भी ज़्यादा आपके लेखन से आपकी जिन्दगी महसूस की जा सकती है.....आप जीवन, दोस्त और कर्म सभी का पारखी नज़र से अवलोकन करते हैं....आपको पढ़ना हमेशा अच्छा लगा....आशा है यह अवसर मिलता रहेगा।

शुभकामनायें!!

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