लीजिये पानी बोतल में तो बिक ही रहा था अब आप के घर में आने वाली पानी को भी निजी कम्पनियों के हाथों में सौंपने की योजनाओं पर अमल का काम शुरु हो चुका है। कोचाबाम्बा के अनुभव को दरकिनार कर के आम आदमी को ऐसी जगह ले जा कर मारा जा रहा है जहाँ पानी भी नहीं मिलेगा।
हिन्दुस्तान में इस की चर्चा मुम्बई और दिल्ली में होती रही है पर लागू हो रहा है सब से पहले कुन्दापुर कर्नाटक में। इस मूलभूत अधिकार- पानी- को मुनाफ़े का सौदा बनाने के लिए सबसे पहले नगर के सभी सार्वजनिक नलों का कनेक्शन काट दिया गया और अब हर नए कनेक्शन के लिए चार हजार रुपए का मूल्य रखा गया है। चार हजार!!?? ..सिर्फ़ पानी का कनेक्शन पाने के लिए.. और जो ये रक़म नहीं जुटा पाया उसका क्या होगा?
इस जन-विरोधी क़ीमत से अतनु डे भी खुश नहीं हैं जो खुद इस स्कीम की वकालत करते रहे हैं.. शायद वे निजी कम्पनियों से हमदर्दी की उम्मीद कर रहे थे। वैसे वो चिन्तित भी नहीं हैं; वे अभी भी अपने भोलेपन में इस क़ीमत को कम कर देने को बेहतर आर्थिक नीति बता रहे हैं। पर मैं पूछना चाहता हूँ कि अगर सर्वश्रेष्ठ आर्थिक नीति पानी के कनेक्शन की क़ीमत को लाख रुपये रखने की होगी तो क्या उसे ही लागू किया जाना चाहिये?
7 टिप्पणियां:
यही हैं हमारी समाजवादी सरकारें जो उस संविधान की कसम खाती हैं जो भारतीय नागरिकों के जीवन के अधिकार को मान्यता देता है और उस अधिकार में वे सब चीजें शामिल हैं जो जीवन के लिए आवश्यक हैं. इसका मतलब अब से केवल उन्हीं को जीवन का अधिकार मिलेगा जिनके पास पानी का अनाप-शनाप बिल भरने को पैसे होंगे ?
नये सिरे से कंपनीराज की शुरूआत है यह जो अभी लोगों की समझ में नहीं आ रहा है. जैसे-जैसे मार पड़ेगी समझ में आने लगेगा कि विकास के नाम पर कैसे विनाश के कुचक्र में हमें फंसा दिया गया है. बिजली, पानी, खाना, कपड़ा और आवास सब कंपनियों के हाथ में होगा.
भयंकर बात है यह तो। इसका तो सख्त विरोध हो जाना चाहिए।
Abhay, yehan manisha ji ke lekh ka bhi link de dijye unhone bhi yehi dard apni post me urela hai. Pizza burger kar nukkad me milega lekin paani nahi milega
शुक्रिया तरुण.. मनीषा ने अपने ब्लॉग पर इन्दौर में पानी की समस्याओं पर एक जानकारी पूर्ण विस्तूत लेख लिखा है...यह रहा लिंक..
शुक्रिया अभय, लिंक देने के लिए। लेकिन ये लिंक खुल नहीं रहा है। कुछ एरर आ रहा है।
पानी, बिजली, सड़क, शिक्षा, स्वास्थ्य जैसी बुनियादी आवश्यकताओं और सुविधाओं के विकास के लिए इस देश में कुछ नहीं हो रहा... मैकडोनल्स गली-गली खुले, चौराहे-चौराहे ब्रांडेड जूता बिके की चिंता में सरकार की नींद हराम है. कुछ बोलो, तो लोग कहते हैं, ये तो रोतड़े लोग हैं... विकास नहीं दिखता, सिर्फ रोना जानते हैं।
ठीक कह रही हो मनीषा कुछ तो दिक़्क़त है..इसलिए लेख का पता दे रहा हूँ.. यह रहा: http://bedakhalidiary.blogspot.com/2008/01/blog-post.html
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