धर्म में मेरी आस्था खोजने पर भी नहीं मिलती, पर जिज्ञासा बराबर बनी रहती है। महापुरुषों की करुणा से अभिभूत होता हूँ। जीवन और एक परा-शक्ति पर विश्वास बना रहता है। किशोरावस्था से अब तक अलग अलग मोड़ों पर आचार्य रजनीश, भगवान श्री रजनीश और ओशो को पढ़ता रहा हूँ, और प्रभावित भी होता रहा हूँ। हाल के कथावाचक संतो में मुरारी बापू को ही आंशिक तौर पर स्वीकार कर पाता हूँ। वे खुद ओशो की बात करते पाए जाते हैं कभी-कभी। अपने श्रोताओं को वे किसी नियम में न बँधने की सलाह भी देते हैं। इन्टरनेट पर विचरते हुए ओशो का यह टुकड़ा मिला.. अच्छा लगा.. अनुवाद करके छाप रहा हूँ.. देखिये, आप के लिए कुछ तत्व है क्या इसमें..?
ओशो से उनके शिष्यों ने उनके दस कमान्डमेन्ट्स माँगे.. तो ओशो का कहना था कि “ये मुश्किल मामला है, क्योंकि मैं किसी भी प्रकार के धर्मादेशों के खिलाफ़ हूँ। मगर फिर भी, सिर्फ़ मौज के लिए, ये लो:”
१. किसी का हुक्म मत बजाओ, जब तक वो तुम्हारे अन्दर की आवाज़ भी न हो।
२. जीवन के अलावा कोई दूसरा ईश्वर नहीं है।
३. सत्य तुम्हारे भीतर है, कहीं और मत खोजो।
४. प्रेम प्रार्थना है।
५. शून्य हो जाना ही सत्य का द्वार है। शून्य ही साधन, साध्य और सिद्धि है।
६. जीवन अभी और यहाँ है।
७. जागते हुए जियो।
८. तैरो मत बहो।
९. हर क्षण मरो ताकि तुम हर क्षण नए हो सको।
१०. खोजो मत। वो जो है, है। रुको और देखो।
प्रामाणिक रूप से धार्मिक व्यक्ति एक (अविभाजित, स्वतंत्र, व्यष्टि) व्यक्ति होता है।
वह एकाकी होता है, और उसके एकाकीपन में एक गजब शान, गजब सौन्दर्य होता है।
मैं तुम्हे वह एकाकीपन सिखाता हूँ।
मैं तुम्हे वह सौन्दर्य, वह भव्यता, एकाकीपन की वह सुगन्ध सिखाता हूँ।
अपने एकाकी पन में तुम गौरीशंकर(एवरेस्ट) की ऊँचाईयाँ चूमोगे।
अपने एकाकीपन में तुम दूरस्थ तारों को छुओगे।
अपने एकाकीपन में तुम अपनी संपूर्ण संभावना में पुष्पित हो जाओगे।
कभी आस्तिक न बनो।
कभी अनुगामी न बनो।
कभी किसी संगठन के सदस्य न बनो।
कभी किसी धर्म के सदस्य न बनो।
कभी किसी देश के सदस्य न बनो।
अपने प्रति प्रामाणिक रूप से निष्ठावान रहो।
अपने प्रति घात न करो।
चित्र: ओशो ज़ेन टैरो का एक कार्ड-'एलोननेस'
9 टिप्पणियां:
वाह् वाह ,बिलकुल सही जी,और मेरे हिसाब से यही सच्चा हिंदू धर्म है...
कभी आस्तिक न बनो।
कभी अनुगामी न बनो।
कभी किसी संगठन के सदस्य न बनो।
बड़े आश्चर्य की बात है. उनके इतना कहने के बावजूद कितने सारे लोगों ने;
१. उनके प्रति अपनी आस्था दिखाई.
२. उनके अनुगामी बने.
३. उनके द्वारा बनाए गए संगठन के सदस्य बने.
अभय जी, ये शायद खोज का विषय है कि उन्होंने ये सारी बातें 'भगवान्' बनने से पहले कहीँ या फिर 'भगवान्' बनने के बाद.
शैतान के चेले बड़े परेशान कि नया व्यक्ति जो ज्ञान बता रहा है, उससे तो शैतानियत समाप्त हो जायेगी.
शैतान हंसा. बोला, जब यह ज्ञानी अपने ज्ञान को प्रसारित करने को सिद्धान्त बनायेगा, धर्म ऑर्गनाइज करेगा, तब अपनी शैतानियल को पूरा मौका मिलेगा. फ़िक्र न करो.
बिल्कुल वही ओशो के साथ भी है!
गीता का अध्ययन तब तक करें जब तक उसमें से नए-नए अर्थ निकलते रहें, जब नए अर्थ निकलने बंद होजाएँ तब पढ़ना छोड़ें। शायद ही आप छोड़ पाएँगे क्योकि कभी भी गीता में से अर्थ औए संदेश निकलने बंद नहीं होंगे।
गीता संपूर्ण चराचर का तत्त्व ज्ञान है। ओशो और बकिया सभी उसी से सीखकर भगवान बने।
हमारा आशय किसी को भी कमतर करने का नहीं बल्कि वस्तुस्थिति बताने का है।
अभय जी, क्या संयोग है। मैंने भी आज इसी मसले पर लिखा है कि अक्सर आध्यात्मिक नहीं होते आस्तिक। और समर्थन में नत्थी कर दिया है कि किन्हीं परमहंस श्री नित्यानंद जी को। वाकई महान लोग (मैं और आप) एक समय में एक जैसा ही सोचते हैं।
कुछ और महान आत्माएँ भी हैं । धीरे धीरे पता चलेगा ।
घुघूती बासूती
ओशो को तो लगभग रोज ही सुन लेता हूँ.
--अनिल भाई कहते हैं महान लोग (मैं और आप) एक समय में एक जैसा ही सोचते हैं।
--अरे, सोचे तो हम भी थे बस लिखे नहीं..तो क्या इस लिस्ट में माने जायेंगे??
शिव कुमार जी.. ओशो ने क्या किया.. ओशो के चेलों ने क्या किया.. इस को सोचने से क्या लाभ..? अगर अपने काम की बात कह रहे हैं तो ले लें नहीं तो फेंके..
ज्ञान भाई.. सही कहा आपने.. बस आप की बात सब पर लागू होती हैं.. अकेले ओशो पर ही नहीं..
बेनाम भाई.. लगता है आप उमर भर पढ़ने वाले हैं.. दूसरी किताबें आप के पठन योग्य न हो सकेंगी.. अफ़सोस..
अनिल भाई.. आप जैसा सोच सका.. मेरा सौभाग्य..
समीर भाई.. आप की इस लिस्ट में जगह कहाँ.. आप तो वहाँ ऊपर.. इसलिए तो लिखा नहीं.. क्योंकि ऊपर उठे हुए हैं..:)
आप के विचारों से अवगत हुई। अच्छा लगा।
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