सफल आदमी के चेहरे पर एक चमक होती है। दिल में एक गुदगुदी होती है। अपनी जीत का एहसास होता है। जब वह नज़र उठा के देखता है तो उसे हारे हुए लोगों की भीड़ दिखती है। उनके लटके हुए उदास चेहरों को देख वह थोड़ा और अकड़ जाता है। वो जो कुछ भी सोच रहा होता है उसे अपनी जीत का मूलमंत्र मानकर उस में और जकड़ जाता है। जब वह मुँह खोलता है तो अपने बारे में बोलता है। वह सामने वाले को नहीं देखता उस के सन्दर्भ में सिर्फ़ अपने को ही देखता है। वह बताता है कि उसके आस-पास दुनिया कितनी प्रतिभाहीन है। ऐसा कहकर वह जतलाता है कि सारी गुणवत्ता उसी में आसीन है।
उसकी जगह हम होते तो हम कुछ अलग बरताव करते इसमें संदेह है। माना गया है कि जीवन में सफलता बड़ा मूल्य है। मगर कई पाठ ऐसे भी हैं जो पराजय के गुणगान करते हैं। जैसे हराल्ड हेट्ज़ेल की किताब ‘बुद्धाज़ लास्ट सरमन – इन हेल’ .. देखिये उसका एक अंश:
हर सच्ची साधक एक बेलौस और बाशौक़ जंगजू है। उसे जंग से कोई खौफ़ नहीं। वह जीत की प्यास से बेचैन है और लगातार तलाशती है अपनी मुक्ति को – अपनी आखिरी शिकस्त।
इस आखिरी शिकस्त- उसकी गुरु- में ही वह शक्ति है जो इस दुनिया में सीखी हुई हुशियारी और दुनियादारी के उस बेहद मजबूती से जकड़े हुए बख्तरबंद को छिन्न-भिन्न कर सकती है, जो पहले ही पुराना हो चला है। यह आखिरी शिकस्त सब कुछ मांगती है, पूरी और समूची ताक़त, साहस, इरादा, हुशियारी, दर्द, तमन्ना, शौक़, समर्पण, इल्म और उम्मीद। इस आखिरी शिकस्त से हासिल होता है अन्तहीन शून्य- सम्पूर्ण पराजय, मगर सिर्फ़ फ़ौरी तौर पर।
इस आखिरी और समूची शिकस्त से ही सुधर कर और पूरी तरह बदल कर उपजती है सच्ची (रूमानी नहीं) साधक और जंगजू, जैसे एक नया जन्म लेकर। यह नई शख्सियत बुज़ुर्ग है, शालीन है; यह गहराई से करती है सवाल और समझती है, यह शख्सियत ज़्यादा गम्भीर है और ज़्यादा शांत है। ज़िन्दगी और लोगों से पहचान की आदत को त्याग दिया गया है या कहें कि बदल लिया गया है। और क्योंकि यह शख्सियत आनन्दरहित नहीं है- बिलकुल भी नहीं- यह एक अलग जीवन जीती है एक नई मासूमियत के साथ।
6 टिप्पणियां:
ज्ञान गंगा में नहा लिये और समझ गये सब कोई वैसे ही हैं जैसे सब लोग होते हैं.हम भी वही हैं जो सब हैं.अपने अपने दोस्त हैं,अपने अपने नजरिये,अपनी अपनी तलाश है अपनी अपनी मंजिल.सिर्फ उसी तलाश में तो दौड़ रहे हैं हम.जो आज काम का वही अपना है ...वही दोस्त है.जयी के चेहरे की पीछे ही पराजय की चिंता की रेखा भी होती है.वो किसी को नहीं दिखती..कभी कभी जयी को भी नहीं...
आप इसलिए सफल नहीं हैं क्योंकि आप बेहतरीन हैं, और आप सिर्फ़ इसलिए बेहतरीन नहीं हो सकते क्योंकि आप सफल हैं.
मैंने जीवन में उन लोगों को कहीं अधिक मूल्यवान, सहज और सीखने लायक़ पाया है जिन्हें सांसारिक पैमानों पर नाकाम व्यक्ति समझा जाता है. नाकाम व्यक्ति आपको नाकामी नहीं सिखाते, आपको सिखाते हैं कि योग्य, कुशल, सक्षम व्यक्ति भी नाकाम हो सकते हैं इसलिए कामयाबी को सिर्फ़ गुणों से नहीं बल्कि अवसरों, संयोगों, वक़्त की ज़रूरतों से भी जोड़कर देखा जाना चाहिए.
भाई सफलता और कामयाबी तो एक मौसमी मर्ज है... यह एक खेल है जिसमें बड़े-बड़े अपना मन नहीं रमा पाते। मस्त रहिए.....निर्मल आनन्द लिजिए और दीजिए...।
क्या कहें, खालिस महासागर का स्वभाव देखकर पूर्णरुप से सहमत नहीं हुआ जा रहा.
अभय भाई , लगता है आप बिलकुल ही निर्मलाय गए हैं । जो चिन्तन आपने किया है , वो ज़माने की रीत है। सफल होते और वैसा करते जैसा ज़माना करता तो भी ग़लत नहीं था। और न करते , कुछ निर्मल करते , कुछ आनंदम् करते तो भी हम पंच तो थे ही उसे सराहने वाले । सच्ची बात तो यह है कि जैसा आपने लिखा कि सफल आदमी अकड़कर देखता है ( इसे ही तो कहते हैं कि कामयाबी सर चढ़कर बोलती है-ये कामयाबी की भाषा है और वह सर को अकड़ना सिखा देती है। )
बहरहाल, मैं इसे मूर्खता मानता हूं और बहुत सालों से एक इच्छा पाले बैठा हूं कि किसी ऐसे ही अकड़ू सफल व्यक्ति को सरेआम कह दूं कि भाई , तू नहीं जानता कि तू मूर्ख है ।
आज ये टिप्पणी का प्रसाद आपको इसलिए मिल रहा है क्योंकि हम अपना ब्लाग देख पा रहे हैं यानी ब्लागस्पाट के सारे ब्लाग। एक गलती हमने दुरुस्त कर ली है। हमारे ब्लागरोल में आपके लिंक की जगह ठहाका का लिंक खुल रहा था। ( क्या इसीलिए इतने दिनों से टिपिया नहीं रहे थे श्रीमान ?)
Abhay,
Read your comments and was suprised how strange they seemed.In this modern era where life seems to have no meaning but to run after success it was heartening to note that people with such ideas exist.
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