क्या आप इन मर्दों-औरतों के उल्लासपूर्ण चेहरों को देखकर कह सकते हैं कि इनका काम था कैम्प में आए हुए यहूदियों और दूसरे लोगों में से कुछ को तुरंत गैस चैम्बर में दम घोट कर मार डालना, और कुछ को कैम्प में मेहनत मज़दूरी करने के लिए सिर्फ़ तब तक जिलाए रखना जब तक क़ैदियों की दूसरी खेप नहीं आ जाती।
ये कोई बीमार लोग नहीं थे। अनोखे.. विचित्र.. अमानवीय लोग नहीं थे.. पूरी तरह मनुष्य थे। हम ऐसे ही हैं। ईश्वर और शैतान दोनों को अपने ही भीतर लिए घूमते हैं।
जो लोग इन्हे इतिहास के अनोखे हत्यारों के रूप में चित्रित करते हैं वे भूल जाते हैं कि मनुष्य का पूरा इतिहास ऐसी बर्बरताओं से भरा पड़ा है। लेकिन यहूदी और अमरीका लगातार गैस चैम्बर्स को ही बर्बरता का चरम साबित करना चाहते हैं। वे किसी को भूलने नहीं देते यह बात।
अगर बर्बरता का चरम यह है तो हिरोशिमा और नागासाकी में जो हुआ वह क्या था? दुनिया भर में जो अमरीकी फ़ौजे आज भी बम-वर्षा कर रही हैं, वह क्या है? क्या हर अमरीकी सिपाही हर निर्दोष हत्या के बाद दोस्तोव्यस्की का नायक हो जाता है?
सच तो यह है कि अमरीका ही नहीं उसकी जगह अगर इराक़ भी होता तो वो भी इसी क़िस्म की 'मानवीय' हिंसा में लिप्त रहता, रहा है। अलग-अलग इतिहास-खण्डों में चीन, भारत, अरब, ग्रीस सबने ये किया है। अफ़्रीकी देश अपने स्तर पर भी ये करते रहे हैं, कर रहे हैं।
ये व्यवहार मनुष्यता के लिए नियम है, दोस्तोव्यस्की के नायक का अपराध-बोध अपवाद है। मगर हम उसे मानवीय मानते हैं। क्योंकि एक मनुष्य के बतौर हम वैसी करुणा पाना चाहते हैं। हर मसीहा जन्नत का ये संदेश ले कर आता है मगर एक ऐसा धर्म छोड़ जाता है जिसके नाम पर लाखों को जहन्नुम रसीद किया जाता है।
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2 टिप्पणियां:
कॉंसेंट्रेशन कैम्प्स की दिल दहलाने वाली कहानियाँ पढ़ी हैं , ऑसवित्ज़ , बर्गेन बेल्सेन , ट्रेबलिंका सॉबिबोर । इंसान के अंदर इतनी ब्रूटैलिटी भरी है , सोचकर दहशत होती है ।
सही कह रहे हैं, यह बिल्कुल अपवाद नहीं है. कितनी ही किताबों में मानवीय हिंसा के कैसे कैसे रुप देखें हैं.
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