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मुद्रा नम्बर एक..
गम्भीर विषयों पर गहन चिंता से पड़ी माथे पर त्योरियाँ..
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मुद्रा नम्बर दो...
लगता है गहन समस्या का कुछ सरल हल मिला है..
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मुद्रा नम्बर तीन...
उबासी..!!?? ह्म्म्म...
कुछ भी कहिये.. समस्या कितनी ही गहन क्यों न हो.. हल तो सरल है..
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अब ऐसे उबाऊ विषय पर और ऐसी उबाऊ जगह पर लेक्चर हो तो क्यों न आए किसी को उबासी! और राहुल भी तो हमारी आप की तरह आम आदमी ही हैं। उन्होने क्या ठेका लिया है समाज-सुधार का?
स्रोत: डी एन ए, मुम्बई, ७ सितम्बर २००७
8 टिप्पणियां:
आज के अमर उजाला मे भी ऐसी ही अच्छी अच्छी गहन विचार मुद्रा मे (अब अगर आपको सोते लगे तो आप गलत है)दि्खाइ दे रहे है..हमारा देश तभी ज्यादा तरक्की करेगा..अगर ये सब सोते रहे..तो भी देश का ही भला है...
यह तो पत्रकारिता हो गयी. वो भी उम्दा किस्म की.
वाह!!
बढ़िया ढूंढ लाए आप भी यह!!
इससे ज्यादा क्या उम्मीद कर रहे थे आप?? कम से कम बैठे हैं-बिस्तर टाईप कुछ होता तो लेट लिये होते. :)
-बच्चा है थक जाता है.
बच्चा है, राजनीतिक अकल का कच्चा है।
इसके राजनेता बनने में काफी देर है,
गोया एक्सप्रेशंस में ये अब भी सच्चा है ;)
सन्जय से सहमत। उम्दा किस्म की पत्रकारिता।यह भी देबशीष की बात भी सही है कि एक्सप्रेशन्स मे अभी सच्चा और कच्चा है ।
देबूदा ने बिल्कुल सही कहा। अभी पक्का राजनेता नहीं बना है। वरना बाक़ी सभी नेताओं की तरह आँखें खोलकर सोता, बन्द करके नहीं।
वाह अभयजी, मजा़ ला दिया आपने । दूसरा मज़ा सभी टिप्पणियों के पढ़ कर आया।
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