मंगलवार, 29 मई 2012

अदब के लठैत




"एक विशेष माहौल और परिवेश में मेरा जन्म हुआ और परवरिश हुई। यह लोग मुझसे ऐसी आशा क्यों करते हैं कि मैं उस जीवन का चित्रण करूँ जिससे मैं परिचित नहीं? गाँव की ज़िन्दगी से कुछ हद तो मैं वाक़िफ़ हूँ क्योंकि उसका मुझे अनुभव था लेकिन वह अनुभव एक बड़े फ़ासले का था। तरक़्क़ी पसन्द लोगों ने मुझको बहुत बुरा-भला कहा और इस तरह मज़ाक़ उड़ाया मानो मैं लोक-आन्दोलन की विरोधी हूँ।"

किसी मौक़े पर यह बयान दिया था मरहूम मुसन्निफ़ा क़ुर्रतुल ऐन हैदर उर्फ़ ऐनी आपा ने। हिन्दुस्तानी अदब में ये बड़ी पहचानी प्रवृत्ति है, हमारे कुछ जोशीले वामपंथी लठैत समय-समय पर अदीबों को ढोर की तरह हांका और पीटा करते हैं। चोट खाए साथियों से अपील है कि उनकी आलोचनाओं को मानस से फटकार दें, हौसला बनाए रखें और जिस दुनिया को वे देखते-समझते हैं उसी पर अपनी उंगलियों को चलाते रहें।  


4 टिप्‍पणियां:

भारत भूषण तिवारी ने कहा…

'चोट खाए' साथियों के नाम अगर पब्लिक डोमेन में उपलब्ध हैं या कराये जा सकते हैं,और हम जैसे अफेसबुकी अकिंचनों के लिए यहीं दे दिए जाएँ तो मेहरबानी होगी.

अभय तिवारी ने कहा…

भाई, नाम ज़ाहिर करना उन लठैतों को और मारकाट का निमंत्रण देना है.. इसलिए ऐसे ही अच्छा है..

Smart Indian ने कहा…

good point.

@ऐसे ही अच्छा है
- फिर तो हम भी इस अतिवादी मज़हबी जोश के बारे में कुछ नहीं कहेंगे. no comments.

Pratik Pandey ने कहा…

सही मुद्दा उठाया आपने। अदबी लठैत वाक़ई बेहद ख़तरनाक होते हैं। आज-कल मीडिया में भी ऐसे लोगों की भरमार है।

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