ख़्वाजा मुईनुद्दीन के घर, आज धाती है बसन्त
क्या बन-बना और सज-सजा, मुजरे को आती है बसन्त
फूलों के गुड़वे हाथ ले, गाना बजाना साथ ले
जोबन की मिदह१ में मस्त हो-हो, राग गाती है बसन्त
छतियां उमंग से भर रहीं, नैना से नैना लड़ रहे
किस तर्ज़े माशूक़ाना, जल्वा दिखाती है बसन्त
ले संग सखियां गुल बदन, रंगे बसन्ती का बरन
क्या ही ख़ुश और ऐश का सामान लाती है बसन्त
नाज़ो अदा से झूमना ख़्वाजा की चौखट चूमना
देखो ‘नियाज़’ इस रंग में कैसी सुहाती है बसन्त
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शाह नियाज़ अहमद बरेलवी
१. स्तुति
5 टिप्पणियां:
उसकी चौखट सज जाती है बसंत।
इस नए अंदाज़ में आए बसंत को नमन :)
माँ सरस्वती हम सबके मन में सदा वास करें.वसन्तोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएँ.
संगीत बद्ध इसको यदि सुनने का सुअवसर मिलता...ओह...
आभार !!!
देखो ‘नियाज़’ इस रंग में कैसी सुहाती है बसन्त
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