पिछले कुछ हफ़्तों से एक शॉर्ट फ़िल्म बनाने में मुब्तिला हूँ। बरसों फ़िल्म-मेकिंग से दूर रहा हूँ.. वापस लौटने में काफ़ी इनर्शिया का सामना करना पड़ रहा है। स्क्रिप्ट तो छै माह पहले ही पूरी हो गई थी, चूँकि आउटडोर की कहानी है तो बरसात ने बिठा दिया.. और आलसी मन ने भुला दिया। बरसात बीतने के बाद याद पड़ी और कसक उठी.. फिर किसी तरह राम-राम करके एक सिनेमेटोग्राफ़र दोस्त का साथ मिला और लोकेशन तै की.. शूटिंग की तारीख भी तै कर दी थी.. मगर एक्टर्स मन-माफ़िक नहीं मिलने से सब कैन्सिल करना पड़ा। अब महीने के आखिर तक के लिए मुल्त्वी है..
इस व्यवधान से खीजकर अपने नाइकॉन कैमरे के वीडियो मोड का इस्तेमाल कर के एक भड़ास निकाल ली। तीन रोज़ पहले रात में शूट किया और सवेरे विन्डोज़ मूवी मेकर पर एडिट कर लिया। कुछ दोस्तों को भेजा तो किसी ने बल भर नहीं गरियाया.. तो.. आज ब्लॉग पर भी डाल रहा हूँ.. बहुत लम्बी नहीं, एक मिनट की है..
अपलोड होने में दिक़्क़्त न करे इसलिए लो क्वालिटी पर रेन्डर किया है.. गुणग्राहक माफ़ करेंगे इस उम्मीद के साथ..
(संगीत: दफ़ेर यूसेफ़ का)
15 टिप्पणियां:
क्रिया सिद्धि सत्वे भवति न महतां उपकरणे
अब आपकी शॉर्ट फिल्म की प्रतीक्षा है
शुभकामनाएं।
Nahi!
Mere ek minute di itti buri maut!
Waise title sahi haiga - mundane.
:) Praji, camere da misuse hai eh to!
एक्टर्स मन-माफ़िक नहीं मिलने से...
अभी तो हर कोई एक्टर बनना चाहता है और आपको एक्टर नहीं मिले? :) शक्ल तो आपकी भी बूरी नहीं....
लगता है आप ने कुछ सार्थक नहीं कर पाने की अपनी विवशता को ही शूट कर दिया है। यह भाव तो बहुत तीव्रता के साथ अभियुक्त हुआ है इस नैनो फिल्म में। बधाई हो।
आप इसकी बात कर रहे थे? प्रमोद जी ने दिखाया था ये. मूवी मेकर के लिहाज से बहुत ही अच्छी है. :)
एक्टिंग तो थोड़ी हम भी कर लेते हैं. ध्यान दिजियेगा. ;)
पोस्ट का टाईटल २-३ दिन पहले पढा था तो सोचा कि भडास वाले भाईयों ने अपना वीडियो चैनल लांच किया होगा । इसीलिये तुरन्त नहीं खोलकर देखा, यहाँ तो मामला ही दूसरा है :-)
बैठे बैठे पैर हिलाने वाला सीन घणा जंच गया । वैसे हीरो की जरूरत हो तो...खैर रहने दीजिये ।
अपनी वेदना और विवशता को बड़े ही सहज अंदाज़ में उकेरा है आपने.. शोर्ट फ़िल्म के लिए शुभकामनायें.
मुझे तो कुछ समझ में नही आया । पहले लोग कहा करते थे कि सादे कागज पर कलम से स्याही छिडक दो ..बस वो मार्डन आर्ट हो गया ...ठिक उसी तरह आपकी फिल्म में पंखा , पैर का हिलना और किसी का उठना बैठना ..अब चाहे तो इससे जो कुछ भी मतलब निकाल लिया जाय ...मेरी समझ से समय का पहिया बीता जा रहा है लेकिन आदमी अभी यह तय नही कर पा रहा है कि क्या करें ...उसके मन के अंदर भारी उथल पुथल है ..भगवान जल्द से जल्द उनकी बैचैनी को शांत करें ...और हां संगीत बडा अच्छा है ।
समझने की कोशिश कर रहा हूँ कि यह है क्या :)
आपके ब्लॉग पर एक दो बार आया हूं लेकिन कुछ खास नही रूक पाया लेकिन आज वजह है आपकी बनाई नैनो फिल्म देखी, विजूअल्स देखकर ही समझा जा सकता है कि आप क्या बना सकते हैं। दफ़ेर यूसेफ़ का सगींत दृश्यों के साथ निभ जाता है। लाइटिंग का बेहतर प्रयोग दिखाया गया है। और हां यदी मूवी मेकर की बजाय ऐडॉब प्रीमियर का इस्तेमाल करे तो ज्यादा बेहतर विकल्प सामने आते है। वर्ष 2008 (फरवरी) में हुए 10 मॉमी फिल्म फेस्टीवल, (जो शार्ट फिल्मों के लिये ही होता है।) के लिये एक फिल्म हमने भी बनाई थी ''वापसी द रिटर्न'' लगभग 45 देशों की फिल्में यहां दिखाई गई थी। इस फिल्म के संवाद लेखन का काम मुझे दिया गया था। सौभाग्य से हमने ही प्रथम पुरस्कार जीता। 1 लाख रूपये व प्रमाण पत्र। एश्वर्या राय ने यह सम्मान दिया था। यह एक बड़ा समारोह था। खैर मुझे आपकी फिल्म अच्छी लगी। अपने बारे में ये जानकारी देना उचित लगा इसलिये कह दिया। कभी आइये अपने ब्लॉग पर भी। अच्छे-बुरे ब्लॉगरों पर समीक्षात्मक लेख लिखते है।
Bahut badhiya..
aapki film aapke jehan ki bechaini ki ek sarthak uplabdhi hai. aaj ke jamne me to logo ko bechaini hi nahi hoti. jise hoti hai wah use turant nashta karne me jut jata hai. aap apni bechaini ko barkarar rakhe.
shubhakamnaye.
ये हाइकु वर्ज़न पसँद आया
अभय भाई
सँगीत भी -
नये साल मेँ ,
inertia दूर हो
यही शुभ सँदेश है ~~
- लावण्या
यहाँ वीडियो अभी चल नही रहा है
कभी और देखेंगे
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