सोमवार, 24 दिसंबर 2007

चश्मा प्रगतिशील है!

पिछले कई दिनों से ब्लॉगिंग से दूर रहा। पूरे एक हफ़्ते.. शुरु के दो चार दिन तो कम से कम देख रहा था कि क्या लिखा जा रहा है.. एक दो टिप्पणियाँ भी करता रहा.. पर तीन चार रोज़ से तो वो भी बंद हो गया। धंधे में लगा हुआ था.. अब अपना धंधा ऐसा है जो ब्लॉगिंग के साथ टकराता है। दोनों में सोचने और लिखने की ज़रूरत पड़ती है.. दस-बारह घंटे लैपटॉप लेकर बैठने के बाद ताज़ादम होने के लिए कुछ ऐसा करने को जी चाहता है जिसमें सोचना और लिखने के विभाग काम न करते हों। इसलिए हफ़्ते भर न कुछ लिख पाया और न ही मित्रों का लिखा पढ़ पाया।

हाँ इस बीच मूँछे बढ़ गईं और चश्मा बदल गया.. ये नया चश्मा फ़्लैशबैक जैसा है.. पर इसमें कुछ एकदम नया है.. पिछले चार-छै महीनों से दूर और पास के चश्मे बदलते-बदलते थक रहा था। तो बाइ-फ़ोकल ले लिया गया.. जी, ये चश्मा बाइ-फ़ोकल है.. पर बिना किसी विभाजन के.. मुझे बताया गया कि इसे प्रोग्रेसिव कहते हैं। थोड़ा मँहगा ज़रूर है.. पर सुविधा जनक है। और सबसे बड़ी बात प्रगतिशील है.. मोदी जी गुजरात में फिर से भारी बहुमत से जीत गए हैं इसका मतलब ये थोड़ी है कि प्रगतिशीलता की दुकान बंद हो गई.. :) चालू है जी.. हम खुद माल खरीद कर प्रसन्न-मन हैं।

आज सुबह एक ज्ञानवर्धक साइट से परिचय हुआ। यहाँ पर मानव शरीर की विभिन्न प्रणालियों के बारे में विस्तृत जानकारी पा सकते हैं। दो चार पन्नों के बाद रजिस्टर करने के लिए कहते हैं.. रुचि बने तो हों जायँ.. मुफ़्त है। पर जानकारिय़ाँ काम की हैं..

रजिस्ट्रेशन फ़ॉर्म में देखा प्रोफ़ेशन के खाने में सिर्फ़ डॉक्टर्स के विकल्प थे.. सिर्फ़ एक अदर था जिस में मैंने अपनी गिनती करवा दी.. बोधि भाई को थोड़ा पढ़ना पड़ेगा कि कौन सा विकल्प चुनें! :)

9 टिप्‍पणियां:

Ashish Maharishi ने कहा…

जरा मैं भी घूमकर आता हूं आपकी बताई साइट पर

ghughutibasuti ने कहा…

आश्चर्य है कि आप इतने समय तक बिना प्रोग्रेसिव ग्लासेज के रहे । वैसे ये ग्लासेज हैं ही नहीं , इन्हें प्लास्टिक्स कहा जा सकता है । मैंने तो कम से कम ५ साल पहले लगवा लिए थे । क्योंकि विभाजन वाले बाइफोकल का उपयोग बहुत सी परिस्थियों में कठिन हो जाता है । आप विभाजन वाले बाइफोकल पहनकर दीवार पर लगे नोटिस नहीं पढ़ सकते हैं ।
नये चश्मे व मूँछों के लिए बधाई ।
घुघूती बासूती

Sanjeet Tripathi ने कहा…

बधाई नए प्रगतिशील चश्मे की।

मोदी जी जीत गए, प्रगतिशीलता की दुकान बंद तो नही हुई पर हां उसकी परिभाषा में हल्का सा खम जरुर आ गया है जो बदलाव की सूचक है।
देखते हैं इस नई साईट को, शुक्रिया।

Yunus Khan ने कहा…

भई हम तो गुमशुदा की तलाश में सूचना देने वाले थे कि अचानक आप प्रकट हो गये । प्रोग्रेसिव चश्‍मे की बधाई हो । इसका मतलब चालीस पार पहुंच जाना भी होता है भाईसाहब । चालीस पार पहुंचकर आंखें प्रोग्रेसिव हो जाती हैं ।

Gyan Dutt Pandey ने कहा…

चश्मा तो ठीक है - पर कैलोरी इनटेक कम है। थोड़ा वजन बढ़ाओ।

अफ़लातून ने कहा…

प्रकृति के अलावा चश्मे की आकृति में सकारात्मक बदलाव है। इसके पहले वाले चश्मवा पर बोली नही सुन रहे थे ?

अनिल रघुराज ने कहा…

ऐसा क्यों होता है कि महान लोगों के साथ एक ही समय में एक तरह की वारदातें होती हैं। मैंने भी तीन दिन पहले ही प्रोगेसिव चश्मा लगवाया है।

अजित वडनेरकर ने कहा…

बंधुप्रवर अनिलजी की बात में दम है । मैं खुद कुछ दिनों से प्रोग्रेसिव होने का सोच रहा था। आज चश्मेवाले का फोन आया कि सादे लैंस लग गए हैं गलती से। गलती भुगतवाएंगे या माफ करेंगे। हमने सोचा ,चलो फिर कभी हो जाएंगे प्रगतिशील। फिलहाल इससे ही काम चलाया जाए। वैसे भी अपने राम के पास डेढ़ दर्जन नज़र के चश्मे हैं पर प्रगतिशील होने का सुख अभी तक नही मिला।

अनूप शुक्ल ने कहा…

चश्मा धांसू है। लेकिन फोटो नेचुरल आयी है।

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