खबर है कि हमारे रितेश के पापा परेशान हैं । आप रितेश के पापा को नहीं जानते? अरे भई वो सी एम भी तो हैं। छुट्टियाँ मनाने यूरोप जा रहे थे.. साथ में प्रदेश का कुछ काम भी निबटा देते एक दो मीटिंग कर के। मगर लोगों को उनसे न जाने का जलन है, उन्हे एक अच्छा खासा सरदर्द दे दिया। कह रहे हैं कि हिसाब दो? काहे का? अरे भाई कुछ ३७५० रुपये दिया था उसी का। हाँ वो कुछ किसान अपना गला आपे टीप कर मर-मुरा रहे थे तो लोगो ने कुछ हो हल्ला किया होगा। उसी के लिए मनमोहन साहब ने कुछ पैसा भेजा था। अब आप बताइये ३७५० भी कोई रकम होती है। एक दो करोड़ तो कब कैसे जेब से गिर जाता है पता ही नहीं चलता। ३७५० करोड़ का हिसाब हम कहाँ से दे। हम क्या सी एम इसलिए बने हैं कि आप बार-बार हम से हिसाब माँगेंगे? हद है।
मगर मनमोहन और उनके लोग पीछे ही पड़ गए हैं। कह रहे हैं कि ३० अगस्त का आ रहा हूँ, तब तक हिसाब तैयार होना चाहिये। दस दिन में कैसे होगा सब? कुछ समझ ही नहीं आ रहा। कल उनके २० बेचारे अफ़सर बिना ड्रिंक्स ब्रेक लिए दिन भर बहसियाते रहे कि कैसे बतायें हिसाब? किसी को मीटिंग छोड़ के जाने को नहीं मिला.. सूसू ब्रेक भी नहीं। बताइये ये भी कोई बात हुई बेकार हलकान कर रखा है मासूम अफ़सरों को । उनका क्या कसूर? साले खुद लटक के मरें किसनवे और सूसू दबा के बैठे रहें सी एम साब के फ़ेवेरिट अफ़सर? हद है। और ऊपर से पी एम ओ ने ये खर्रा अलग से भेज दिया है कि इस की व्याखा कीजिये...
--पिछले साल १४४८ किसान अपनी जान खुद मारे.. इस साल अभी तक ६०० हो गये हैं..(अरे तो ये तो खुश होने की बात है।१४४८ का आधा हुआ ७२४। और साल भर का आधा हुआ जुलाई तो अगस्त चलते -चलते अभी परसाल के आधे भी नहीं हुए। तो १२४ तो वैसे ही कम हैं। चलिए इसका जवाब तो है।)
--विदर्भ के किसानों का कुल बकाया १६०० से १७०० करोड़ रुपये है जो अभी भी नीचे नहीं आया है तो इस लिहाज़ से पिछला कर्ज़ न चुकाने की सूरत में वे नये लोन के लिए योग्य नहीं होंगे.. (इस पर तो हम भी सोच में पड़ गए हैं.. पूरी फ़ाइनेंस इकानमी का कचरा हो रहा है)
--इसका कारण वे कह रहे हैं कि पी एम के पैकेज से कोऑपरेटिव बैंक को फ़ैदा हुआ है किसान को नहीं.. (अरे कोऑपरेटिव वाले इंसान नहीं क्या? कल को जलन के मारे कि 'किसान को सीधे पैसा दे दिया हमारे बारे में सोचा तक नहीं', इस बात पर उसके अफ़सर ने अपना गला टीप लिया तो कौन जिम्मेवार होगा?)
--विदर्भ के किसानों के अपना-गला-टीप रवैये पर कोई एक करमजला पी आइ एल डाले रहा.. तो उसके जवाब में राज्य सरकार न बोल दिया कि 'किसानों को पैसा बाँटने में देरी केंद्र के कारण हुई है'.. एक ठो एफ़ीडेविट बना के डाल दिया..इस बात पर पी एम ओ नाराज़ है..! (अब इसको इतनी सीरियसली लेने का का जरूरत है भाई? उस बखत कुछ तो बोलना था। आप से पूछेंगे आप अमेरिका का नाम बोल देना। फिर अमरीका से पूछें कौन जाएगा। बात खतम हो जाएगी।)
--फिर कहते हैं कि यवतमल के किसी किसान की बेवा को वहाँ के कलक्टर साब ने चेक दिया था तो वो बैंक में जमा करने पर बाउन्स कर गया..क्योंकि सरकारी एकाउन्ट में पैसा नहीं था.. इस पर भी पी एम ओ खफ़ा है..! (अब इसका भी जवाब माँगेंगे? एक तो हमारा देश वैसे ही गरीब है। और फिर यवतमल जैसी जगह। आप ने नाम सुना है यवतमल का? नहीं ना। बताइये जिस जगह को 'आम शहरी' जानता तक नहीं उस जगह के सरकारी एकाउन्ट में पैसा रखके क्या होगा? किसी 'शहरी' का भला होगा? )
--फिर कहते हैं कि इस साल किसान को मदद देने के लिए जो २७७१ रुपये.. मतलब २७७१ करोड़ रुपये.. (करोड़ लगाना हमेशा भूल जाता हूँ.. आजकल रुपये की कीमत ही कहाँ रह गई) रखे गए थे, उसमें से १७२७ करोड़ अभी तक खर्च हो गए हैं.. (ये तो अच्छी बात है। टारगेट पूरा हो रहा है। आप बाकी भी भेज दीजिये हम खरच कर देंगे) मगर किसानों की मौत नहीं रुक रही.. (ये हम कैसे रोक दें भाई। लोकतंत्र है देश में। कोई ज़ोर-ज़बरदस्ती नहीं। वो जमाना गया जब आप किसानों से उठक-बैठक करा लेते थे। आजकल तो बात ही नहीं सुनते। हम ने, सी एम साब ने, और लोगों ने भी, सब ने कितना समझाया किसानों को "अरे यार मत करो इ खुद्कुशी। साला सारी इमेज का कचरा हो रहा है। मरना ही है तो जा के नक्सल हो जाओ। सल्वा जुडुम मार देगा। नहीं तो सल्वा जुडुम हो जाओ। नक्सल मार देगा। अबे चूतिये ज़हर खाके, पेड़ से लटक के क्यों मरते हो?" सुनते ही नहीं।)
अब आ रहे हैं ३० अगस्त को। भगवान जाने क्या बतायेंगे उन्हे। हम तो कहते हैं कि सी एम साब बोल दीजिये कि नहीं है हिसाब। अरे सूखी-प्यासी धरती पर आप एक दो बाल्टी पानी डाल कर उम्मीद कर रहे हैं कि जड़ों तक पहुँच जाय पानी? अरे हम लोग कितना गरीब हैं हम से पूछिये। यूरोप-अमरीका जाते हैं तो शर्म से आँख नीचा हो जाता है। किसी से बात करने में सकुचाते हैं। अर्मानी का बस दस ठो सूट लेके कैसे कोई इज्ज्त का जिनगी बसर कर सकता है? कैल्विन क्लाइन का चार चड्ढी भी नहीं है हमारे अफ़सरों के पास। देश का, आम शहरी का तरक्की चाहते हैं, तो ऐसा हिसाब मत माँगिये। वो बात मत पूछिये जो बताने के काबिल नहीं है।
5 टिप्पणियां:
कोई उम्मीद बर नहीं आती
कोई सूरत नजर नहीं आती
ऊपर वाले और बीच वाले सभी एक ही थैली के चट्टे-बट्टे हैं। मज़ा तो तब आएगा जब नीचे वाले हिसाब मांगेंगे।
चमड़ी बहुत मोटी हो गई है। हया नहीं रह गई है तो किसी की हाय भी नहीं लगती। ऐसे मामले अब अपराध रह भी तो नहीं गये हैं। यह नमक के दारोगाओं का देश है। जहाँ बाप बेटे को सिखाता आया है कि ऊपरी आमदनी पर ध्यान दो।
आपका दर्शनशास्त्र का ज्ञान देख मन प्रफुल्लित हुआ जाता है कि मैं आपको जानता हूँ. :)
अर्मानी का बस दस ठो सूट लेके कैसे कोई इज्ज्त का जिनगी बसर कर सकता है?
--कितना गहरा दर्शन है.
धन्य हैं आप. नमन करता हूँ. बाकि सी एम साहब की छोडिये, कुछ न कुछ रास्ता हमेशा की तरह ही निकल आयेगा. आप नाहक परेशान हैं उनके डैडी के लिये.
कहां रुपये पैसे जोड़ रहे हो. वो जो बाथरूम ठीक कराने में पुलीस केस था, वो शांति से सलटा लिया क्या?
भांग किस कुयें में कहां नहीं मिली है?
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