सबसे पहले तो ये सफ़ाई देना चाहता हूँ कि लोग आए ज़रूर थे मीट का स्वाद लेने मगर उन के साथ धोखा हुआ.. मीट के बदले केक मिला वो भी एगलेस.. फ़ुरसतिया के जन्मदिन का केक.. फ़ुरसतिया के जन्मदिन की बात बोधिसत्व ने सब को बताई और बोधि को उनकी पत्नी आभा ने घर से निकलने के बाद याद दिलाई.. (वो क्यों नहीं आई यह किसी ने नहीं पूछा).. तो उन्हे कुछ उपहार लेने का समय न मिला तो आनन-फानन नागर जी द्वारा लिखित 'मानस का हंस' की एक प्रति मेरे घर से बोधि भैया ने बरामद की और जबरिया सुकुल जी को सामूहिक तौर पर भेंट करवा दी.. मैं कहता ही रह गया कि मेरा नाम-मेरा नाम.. पर बोधि ने अपनी बलशाली काया के प्रभाव का इस्तेमाल कर के मुझे मेरे भेंट देने का यश पाने के प्राकृतिक अधिकार से वंचित कर दिया..
इस केक खाने के दौरान सबने सुकुल जी से बहुत ज़ोर देकर उनसे उनकी बुज़ुर्गी की पैमाइश जाननी चाही.. मगर फ़ुरसतिया ने बार-बार बात को दूसरी-दूसरी दिशाओं में ले जा कर पटक दिया.. हम समझ गए कि इस हठ-इंकार के पीछे अनूपजी की अपने हसीन होने में आस्था ही है.. लोगों ने इधर उधर की खूब बतकही की..और आखिरकार मेरे द्वारा धकेले जाने पर ही ब्लॉगिंग पर चर्चा करनी शुरु की.. सबसे काम की बात कम शब्दों में बोलने वालों में थे पुने से अनूप जी के साथ आए आशीष श्रीवास्तव, अजय ब्रह्मात्मज,शशि सिंह, विमल वर्मा और युनुस खान, और अनिल रघुराज ने सबसे ज़्यादा सुनकर और कम से कम बोलकर अपने बुद्धिमान होने का मुज़ाहिरा किया.. बोधिसत्व ने लोगों की इस मितभाषिता से उपजे खालीपन को महसूस नहीं होने दिया.. और वे इतना बोले कि फ़ुरसत से बोलने के लिए आए फ़ुरसतिया भी उनसे आतंकित दिखे..
आशीष अपनी ब्लॉगिंग यात्रा में एक पड़ाव पर थमे दिखे.. उन्होने बताया कि हिन्दी लिखने के टूल्स विकसित हो जाने के बाद से अब वे अपनी भूमिका नहीं देख पा रहे.. उन्हे सलाह दी गई कि वे कासे कहूँ-कासे पूछूँ हालत वाले आम ब्लॉगर के तकनीकि सवालों के जवाब देने वाले ई-डॉक्टर बन जायं.. जिसकी सख्त ज़रूरत है.. उन्होने इस पर थोड़ा विचार किया.. थोड़ा बाद में करेंगे.. ऐसा हमें लगा..
(बायें से दायें: युनुस खान, अनिल रघुराज, और आशीष)बोधिसत्व ने ब्लॉग को अपनी आज़ादी का पर्याय बताया..और बहुत सारे नए लोगों तक पहुँचने का साधन..
अजय ब्रह्मात्मज ने बताया कि ब्लॉग उनके लिए वे सारी बातें लिखने का मंच है जिसे परम्परागत मीडिया छापना नहीं चाहता.. वे अपने ब्लॉग के ज़रिये के ऐसी नज़र विकसित करना चाहते हैं जो आमदर्शक की तरह पारदर्शी हो..
युनूस खान के लिए ब्लॉग वो जगह बनी हुई है जहाँ वे लोगों को अपने पसन्द के गाने अपनी तरह से सुना सकते हैं..
विमल जी ने कहा कि वे ब्लॉग के ज़रिये अपने भीतर एक नई लेखकीय प्रतिभा को जन्म लेते हुए देख रहे हैं.. और यह कहते ही वे ठुमकते हुए चले गए गणेश जी का आशीर्वाद लेने..
अनिल रघुराज ने कहा कि वे ब्लॉग-लेखन के सहारे अपने को खोज रहे हैं.. पागुर कर रहे हैं.. पचा रहे हैं पहले के पढ़े हु़ए को ..
खाकसार ने भी अपने इलाहाबादी कामरेडों की बात को ही दोहराया और अपने विचारों को सही-सही पहचानने की कोशिश में ब्लॉग का अर्थ खोजने की बात की..
(बायें से दायें: अजय ब्रह्मात्मज, युनुस खान, बोधिसत्व, अनिल रघुराज, आशीष, अनूप जी, और शशि)अनिल जी ही मेरे असली मित्र साबित हुए और मेरे रक्षार्थ घर तक आए.. फ़ुरसतिया अपने द्वारा बनाए हुए बम गोलों और तोप का भय दिखा कर अनिल जी को भी डराने की कोशिश करते रहे, मगर वे नहीं डरे.. आखिर में फ़ुरसतिया को अपने बदले की चाहत से ज़्यादा पुने में अपने बॉस की डाँट से डर लगा.. और वे जाने के लिए उठ खड़े हुए.. वे अपना इरादा न बदल दें इसलिए मैंने उन्हे स्टेशन तक भिजवा कर ही चैन की साँस ली..
(अनूप जी के उठ खड़े होने पर खाकसार के चेहरे पर आई खुशी.. आशीष और अनिल जी के चेहरे की खुशी मेरे बच जाने की हमदर्दी में है.. )
*चलते चलते फ़ुरसतिया प्रमोद भाई के घर की दिशा भी पूछ रहे थे.. लगता है उनसे भी कोई पुराना हिसाब चुकाना था.. मगर प्रमोद भाई पहले ही उसे भाँप कर दिल्ली भाग खड़े हुए..
*किसने क्या कहा ..ये याद करने में मैंने बोधि की स्मृति का सहारा लिया है.. अगर कुछ ग़लती हुई तो उनको पकड़िये.. अगर सही है तो मेरी पीठ ठोंकिये..
*सभी तस्वीरें आशीष के कैमरे से
26 टिप्पणियां:
यह भी खूब मना जनम दिन उस आदमी का जिसे आदत सी हो गई है हर शहर में मीट पकाने की.
आप तो बाल बाल बचे ही समझो अपने आपको और अनिल भाई को साथ देने का साधुवाद दो वरना तो हम सोचे थे कि प्रमोद भाई बचायेंगे तो वो तो खुद ही नदारत दिखे.
सच में दिल्ली गये हैं क्या या चीन टाईप?? :)
सभी मित्रों की तस्वीर देख मन पुलकित हो गया, बहुत आभार भाई!!
एक बात रह गई। कैफे जावा ग्राइंड वाले ने भी माहौल बनाने में साथ दिया। फुरसतिया जी, जब केक काट रहे थे तो उसने हैप्पी बर्थ डे टू यूं का कोई बेसुरा गाना बजा दिया था।
बोधिजी की आभा पूछ रहीं थीं कि ये स्मृति कौन है? क्या बताऊं उन्हें?
वैसे पीठ तो आप ही की ठोकनी पड़ेगी। आपके जैसे शुद्ध शाकाहारी पंडित को मीट-मुर्गा-अंडा के फेर में पड़ा देखकर कलेजे को जो ठंडक पहुंची उसे बयां करने को शब्द नहीं हैं फिलहाल मेरे पास।
अमूमन अव्यवस्थित से होने वाले ब्लॉगर्स मीट के उलट इस आयोजन की व्यवस्था का श्रेय आपके सिर जाता है।
बधाई.
शाकाहारी मीट को मिलन कहने लगे है, इससे आपको भी राहत रहेगी. :)
अच्छा विवरण और तस्वीरें भी.
इस सफल मिलन की बधाइयां हमारी ओर से भी टिका लें.
कल सच में मजा आया।
आपने यह तो लिखा ही नहीं कि केक खिलाकर फुरसतिया का मुँह मैंने बंद किया।
बेटे के टेस्ट के चलते मैं नहीं आ पाई। मैं फुरसतिया को उनके जन्म दिन पर बधाई दे रही हूँ। वैसे बोधि मेरी तरफ से ही गए थे और वहाँ वे मेरे प्रतिनिधि थे शशि जी । बोधिजी की आभा को पता चल गया है कि ये स्मृति कौन है? बोधि ने बता दिया है कि उनकी स्मृति कौन है उसका राज क्या है।
दिल्ली की छीछीलेदर के बाद बंबई का अनुभव अच्छा रहा ऐसा लगता है.
सबकी फोटो देखकर अच्छा लग रहा है.
अत्यंत रोचक विवरण।
तस्वीरों में पुराने साथी अनिल जी को पहचान कर अच्छा लगा।
बहुत अच्छा भाई।
फुरसतिया की हनक अब मुम्बई मे भी सुनाई देने लगी। अच्छा है।
विवरण के साथ तस्वीरे अच्छी लग रही हैं. रोचक विवरण. हमे लगता है मीट के जगह मिलन लिखना ठीक होगा
बहुत बढ़िया विवरण. मज़ा आ गया. तस्वीरों को देखने से बिल्कुल स्पष्ट है कि बड़े ही आत्मीय माहौल में ये शिखर सम्मेलन हुआ है. विस्तार से लिखने के लिए धन्यवाद!
क्या हैदरबाद में भी पुलाव या बिरयानी पकानी सम्भव है?
घुघूती बासूती
वाह अभयजी, मज़्ज़ेदार था मीट मस्साला. ख़ूब फेरा हुआ, पकाया huaa, कही से भी जलने की बू नहीं.
ये हांडी रोज़ नहीं पक सकती ?
बहुत बढ़िया वि्वरण दिया आपने!!
तस्वीरें देखकर अच्छा लगा!
बहुत बढ़िया.. संयोग रहा कि फुरसतिया का बर्थडे.. सभी वरिष्ठ साथी एक साथ.. अद्भुत संयोग.
रपट प्रकाशन पर बधाई. और शुभकामनाएं कि आगे भी ऐसे आयोजन होते रहेंगे।
हमारा भी दिन आयेगा, जब हम भी ऐसी मीटिंग में जायेंगे।(हल्के में लीजिएगा)
मीट चाहे जैसा भी पका हो, खबर तो अच्छी रही.कानपुर वालों की यही तो खास बात है, कि खबर बनायेंगे भी और लिखवायेंगे भी.
( गुरु !! झाडे रहो कलेक्टर गंज ).
और कोई ना सम्झे तो ना सही, कानपुर वाले समझ गये .
गुरू जन यह आप लोगों ने बहुत ही ग़लत किया..मुम्बई में ब्लाग मीत हूई और मुझे भूल गये.. माफ कीजियेगा लेकिन ग़लत बात हैं
आपका
आशीष
.
सही है। सभी मित्रों का शुभकामनाओं के लिये शुक्रिया। कल बहुत मजे लिये। सब दोस्तों से मिल-मिलाकर मजा आया। हालांकि फोटुओं को छोड़कर अभय जी के तमाम किस्से मनगढ़ंत हैं। सच हम जल्द ही बयान करेंगे। संजय तिवारी जी की टिप्पणी के संबंध में यह अर्ज है कि दिल्ली के अनुभव भी मजेदार रहे। अब लिखने में जो कुछ जिसकी समझ में आया वो उसने लिखा।
अभय जी आप ये बताना तो भूल ही गये कि इस ब्लॉगर मीट में क्रिकेट का छौंक लगा था ।
और भारतीय टीम की घिसट घिसटाऊ आसन्न हार के बावजूद बोधि ये मानकर चल रहे थे
कि कोई चमत्कार हमें जितवा देगा । अंतत: क्रिकेट भले हार गया पर जीत ब्लॉगिंग की
हुई । इत्ते सारे लोग मिले बतियाए मज़ा आया ।
इस ब्लॉगर मीट से एक बात अभी भी पता नही चली है कि वाकई मुम्बई के कितने और ब्लॉगर इस मीट का स्वाद चखने से वंचित रह गये कोई लिस्ट वगैरह है क्या? अफ़सोस ज़रूर रहेगा कि केक कटते समय मै नही था और भाई प्रमोद की गैरमौजूदगी भी खल रही थी... लेकिन इन सब बावजूद सबका उत्साह देखकर मन प्रसन्न था. नये सथियों से मिलकर अच्छा लगा.
विवरण काफी अच्छा लगा और ब्लॉगर मिलन की फोटो अच्छी लगी।
अभय जी
जरा देर से ये लेख मेरी नज़र में आया पर पढ़ कर अच्छा भी लगा और नहीं भी। नहीं इस लिए कि हमें केक नहीं मिला न, जब की हम बम्बई में ही हैं, हाँ ये बात और है कि हम ब्लोगिंग की दुनिया में अभी नये नये हैं , इस लिए शायद लिस्ट में नाम दर्ज नही हुआ। ऐप्लिकेशन दे रहे है इसी टिप्प्णी के माध्यम से, आशा है मजूंर कर ली जाएगी और अगली मीट में हम भी केक खाऐंगे…:)।
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