बुरे समय में अच्छी अच्छी बातें भी बुरी लगनी लगती है.. मुस्कुराते हँसते लोगों को देख मन करता है कि उनका मुँह तोड़ दूँ.. उदास दर्द भरे गानों में जीवन की गहराई के दर्शन होते हैं.. एक मायने नज़र आता है.. ठंडक देते हैं.. और हँसी खुशी के गाने सतही और टुच्चे लगते हैं.. किशोर कुमार के बहुतेरे गाने नज़रों से गिर जाते हैं.. मुकेश और रफ़ी के गायन की बारीक़ियां दिखाई देने लगती हैं.. कोई चिन्तित हो कर पूछ्ता है कि चेहरे का रंग उड़ा उड़ा क्यों है.. आवाज़ को क्या हुआ.. अरे बीमार थे क्या.. वज़न कितना गिर गया है.. तो उसके सवालों में अपमान की एक सोद्देश्यता, एक योजित परिहास दिखने लगता है.. मित्रता के सारे ढकोसलों पर से परदा उठ जाता है.. सत्य के दर्शन होने लगते हैं.. संसार की असारता का अंदाज़ा मिलने लगता है.. मन में एक विचित्र वैराग्य हिलोरें मारने लगता है..
शास्त्रों में कहा है कि सच्चा मित्र वही जो बुरे समय में काम आये.. तुलसी बाबा ने भी कहा है...आपदकाल परखिये चारी, सेवक मित्र धर्म अरु नारी.. कुछ मित्र जो झूठे मित्र होते हैं ..हमारा बुरा समय देखते ही हमसे किनारा कर जाते हैं.. (हो सकता हो वो हमारे प्रति उतना ही प्रेमभाव समेटे रहते हों अपने दिल में.. जितना फोन ना लेने पर वो हमारी शिकायत के जवाब में तर्क से सिद्ध करते हैं.. और वो सिर्फ़ बुरे समय की छूत से बच रहे हों.. लेकिन हम उन्हे किसी भी तौर पर सच्चा मानने को तैयार नहीं होते.. शास्त्र की कसौटी पर ही जो खरा नहीं उतरा वो खोटा.. ) और कुछ मित्र ऎसे भी होते हैं.. जिनसे हम स्वयं किनारा कर लेते हैं.. उनकी सम्पन्नता और जीवन का भरा-पूरापन हमारी आँखों में किरिचियों के तरह गड़ता है.. हमसे उनका आनन्दमय होना बरदाश्त नहीं होता.. उनके जीवन के प्रति विध्वंसक विचारों से मन आक्रांत रहता है.. कभी कभी अपनी बुरे की कामना करने की शक्ति पर शर्म भी आती है.. और शर्माकर हम उनसे मिलना छोड़ देते हैं..
और ऎसे बुरे समय में जब साया भी साथ छोड़ देता है.. नए साथी बनते हैं वे लोग... जिनका खुद का बुरा समय चल रहा हो.. जिसका जितना बुरा समय चल रहा हो वो उतना ही सज्जन लगता है.. उनके साथ बैठकर देश दुनिया की चिन्ता और अच्छे समय वालों के जीवन के उथलेपन की चर्चाओं मे मन निर्मल हो जाता है.. मेरे बुरे समय में मन की निर्मलता को सिद्ध करने में काम आने वाले तमाम मित्र ऎसे निकले जो अपना अच्छा समय आने पर मेरा साथ छोड़ गये.. और वो भूतपूर्व मित्र जिनके मल से हमारा मन निर्मल होता था.. वही उनके सच्चे मित्र बन गये.. लेकिन अब मेरे पास नए मित्र हैं..जो पहले भूत पूर्व थे.. बुरे समय की कमी थोड़ी है.. देर सवेर सब को चाँपता है.. दुख सिर्फ़ इतना है कि हमें कुछ ज़्यादा चाँपता है.. और जिनकी सफलता देख देख हमारा जी जलता है उन्हे चाँप ही नहीं रहा है...
तस्वीर: डाली की पेन्टिंग "पिघलती घड़ियां"
2 टिप्पणियां:
भारी शब्दों व भारी देह के मालिक रवीश कुमार की सेवायें लेकर इन सभी मित्रों को तोडा क्यों न जाये? रकु वैसे भी चिंतित हो रहे थे कि हाथ-पैर चलाये उन्हें अर्सा हो गया, रिवाइटलाइजेशन चाहते हैं. तुम तैयारी करो, मैं उनको तैयार करता हूं.
और ऐसे बुरे समय में जब साया भी साथ छोड़ देता है.. नए साथी बनते हैं वे लोग... जिनका खुद का बुरा समय चल रहा हो..
गुलज़ार ने इसे यूँ कहा है,
दिल बहल तो जाएगा इस ख़याल से
हाल मिल गया तुम्हारा अपने हाल से
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