शनिवार, 10 मार्च 2007

घुघूती जी और मेरी माँ

घुघूती जी मुझे हमेशा अपनी माँ की याद दिलाती हैं.. मेरी माँ जीवित हैं और ७० की उमर की हैं.. मैं नहीं जानता कि घुघूती जी की क्या वय है.. निश्चित ही वे मेरी माँ की उमर के आस पास भी न होंगी लेकिन संवेदनात्मक स्तर पर उनमें काफ़ी समानता है..वो भी कविता करती हैं.. लेकिन भारतीय स्त्री संसार की सीमाओं के चलते उन्हे व्यापक मंच ना मिल सका..अगर ब्लॉगिंग के ये वातायन दसेक बरस पहले खुल गये होते.. तो शायद वो भी अपना ब्लॉग चला रही होतीं.. सीखने के लिये वो हमेशा तैयार रहती हैं..पर अब उन्हे कम्प्यूटर देख के घबराहट होती है.. कभी संभव हुआ तो मैं उनकी कविताओं का एक अलग ब्लॉग खोलूँगा.. फ़िलहाल उनकी एक कविता..



जब मै चाहूँ पंख पसारूं
मुझको तुम उड़ने देना
वापस लौट सकूँ जब चाहूँ
द्वार खुला रहने देना

कैनवस खुला हो मन का
मुझे तूलिका तुम देना
कैसे रंग भरूँ उत्सव का
मुझे बताते तुम रहना

छू लेते हो छप जाती हूँ
क्या कहते हो सुन लेती हूँ


विमला तिवारी "विभोर", 9 अक्तूबर 2001



पिछ्ले दिनों घुघूती जी की एक टिप्पणी पर तमाम तरह की प्रतिकियाएं आई, कुछ इतनी तीखी कि घुघूती जी को अपने को ग़लत कहना पड़ा.. ग्लानि जैसे शब्दों के साथ.. मुझे इस बात का बड़ा दुख है.. जिस तरह का पारिवारिक माहौल नारद में है..उस में एक वरिष्ठ महिला को ऎसे भावों से गुज़रना पड़े..ये खेद का विषय है।

12 टिप्‍पणियां:

Poonam Misra ने कहा…

छू गईं दिल को यह पंक्तियां

"जब मै चाहूँ पंख पसारूं
मुझको तुम उड़ने देना "

आपकी माँ अन्य रचनाओं का इंतज़ार है

Poonam Misra ने कहा…

आपकी माँ की अन्य रचनाओं का इंतज़ार है

अफ़लातून ने कहा…

विमलाजी की रचना अच्छी लगी।आशा है आप उनकी रचनाएं देते रहेंगे। मैं आप से सहमत हूँ कि घूघुति बासुती को बेवजह क्षमा माँगने की स्थिति में आना पड़ा।अच्छे-अच्छे घाघ असुरक्षा का भाव पेश करने लगते हैं,जिसके बाद ऐसी कमजोरियों से सुरक्षित हो जाते हैं ।

ghughutibasuti ने कहा…

Thanks Abhay, i would not call you Abhay ji, not right now.
I am specially thankful to you for comparing me to your mother, and what a wonderful mother she must be! Writing poetry ( i liked her poem )and and bringing up a sensitive soul like you! What better honour can a woman get than a man saying she reminds him of his mother !
I am 51 .
I am sorry about using English.
Thanks once again,
Ghughuti Basuti

Unknown ने कहा…

बहुत ही सुन्दर कविता.....
अभय जी अभी ही सहेज लीजिए उनकी कविताओं को.....कुछ स्पर्श माँ का रह जायेगा उन पर....!!

उन्मुक्त ने कहा…

पंक्तियां मन को छू गयीं

अभय तिवारी ने कहा…

मेरी माँ ने आप सब को अपना धन्यवाद प्रेषित किया है।

बेनामी ने कहा…

मां की भावभरी कविता,आपका सार्थक हस्तक्षेप और घुघुती बासुति जी के साथ हम सबकी 'सॉलिडेरिटी' सब कुछ मन को कहीं गहरे तक छू गया. मां की कविताओं का ब्लॉग बनाना अब आपकी प्राथमिकता में होना चाहिए .

बेनामी ने कहा…

hridaye sparshi kavita hai ye....
aur bhi kavitaayen publish honi chahiye....
Raghuveer sahaye ki kavitaon ki yaad aati hai in kavitaon ko padh kar.

farid khan,mumbai.

बेनामी ने कहा…

अभय जी, बहुत सुन्दर पन्क्तियाँ हैं और आपकी माँ के लिये विचार भी..उनकी और भी कविता पढने को मिलेंगी ऐसी उम्मीद है..

बेनामी ने कहा…

उन्मुक्तजी के ब्लॉग से यहाँ पहुँचा। मुझे दु:ख है उस समय यह पोस्ट कैसे छूट गई।
चलिए अभयजी देर से सही, मैंने भी माँ की कविता का प्रसाद पा ही लिया।
आप भाग्यवान है।

Anita kumar ने कहा…

अभय जी वैसे तो सब कह ही चुके हैं , फ़िर भी कहना चाहूंगी कि आप की माता जी की रचना अती सवेंदनशील है और सराहनीय है कि वो इस उम्र में भी कविताएं लिखती हैं, मेरा उनको प्रणाम्…उनकी दूसरी रचनाओं का इंतजार है।

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