मंगलवार, 22 मई 2007

घी खाओ सेहत बनाओ

१२ जून के नवभारत टाइम्स के मुम्बई संस्करण में सेहत सम्बन्धी एक खबर छपी थी.. "स्टॉकहोम स्थित कैरोलिंस्का इंस्टीट्यूट के रिसर्च ग्रूप की मुखिया रिसर्चर डॉ. मैग्देलिना रॉसेल के मुताबिक वेट कन्ट्रोल करने में डेयरी प्रॉड्क्ट्स की अहम भूमिका है। इस स्टडी के अनुसार दूध और दूध से बने उत्पाद शरीर में चरबी को रेगुलेट करने में मददगार साबित होते हैं.. "

आप को यहाँ कुछ विसंगति नहीं दिख रही है..? पूरी मेडिकल साइंस.. और उसका प्रचार तंत्र.. सालों से ये बात हमें ठेल ठेल कर समझा रहा है.. कि घी दूध मक्खन खाने से कोल्स्ट्रॉल बढ़ता है.. जो दिल का दौरा पड़ने में मुख्य खलनायक की भूमिका निभाता है.. तो सभी समझदार भाई बंधुओ ने अपने पूर्वजों को गरियाते हुए.. उन्हे निरे मूढ, ढोर और गँवार के समकक्ष रखते हुए पश्चिम के इस आँखें खोल देने वाले ज्ञान को खुद भी आत्मसात किया और अपने नवजातों को भी पैदा होते ही बाँटना चालू कर दिया.. चार साल की बेटी को आम मध्यमवर्गीय परिवार में घी दूध से परहेज़ करते देख किसी को आश्चर्य नहीं होता.. सब उसकी समझदारी से खुद सीख लेने के लिए प्रेरित हो जाते हैं..

तो भाई साहब हमारी घी खा के सेहत बनाने की पुरानी बुद्धि किसी तरह से अभी इस ज्ञान को नन्हे मुन्नो को देने में सफल हुई ही थी कि हो गया एक नया धमाका..

(खबर पढ़ने के लिये चित्र पर क्लिक करें)

मैं दुखी हो गया हूँ.. इस एलोपैथिक चिकित्सा पद्धति से.. ये कोई अपवाद नहीं है.. रोज़ यही होता है.. रोज़ सत्य की एक नई परिभाषा जन्म लेती है.. बच्चे के लिए माँ के दूध के बारे में भी यही गोलमाल हुआ था.. नमक में आयोडीन के बारे में सच क्या है.. इस पर बहुत कुछ कहा जाना शेष है.. एन्टी बायोटिक्स का विषैला प्रभाव कितना गहरा और दूरगामी होता है.. इसके बारे में कितने लोग जानते हैं.. स्टेरॉयड क्या क्या साइड इफ़ेक्ट्स करने की छिपी शक्ति भी रखते हैं.. क्यों नहीं बताया जाता.. क्या इन 'सत्यों' और इनसे जुड़ी दवाइयों तथा अन्य उत्पादों को बाज़ार में उतार देने के पहले वे सचमुच उनके बारे में ठीक ठीक जानते होते हैं..? या जैसे जैसे समस्या होती है.. वे सीखते जाते हैं..?

जब इनके पास कोई निष्कर्ष हैं ही नहीं.. तो ये किस बिना पर पूरी दुनिया पर प्रयोग पर प्रयोग किए चले जा रहे हैं..और अपने अधकचरे ज्ञान को अन्तिम सत्य की तरह हमारे गले में ठेल रहे हैं.. उनकी बात तो एक बारगी फिर भी समझी जा सकती है.. वो व्यापारी है.. उन्हे अपनी दवाएं बेचनी है.. सफ़ोला जैसे दूसरे माल बेचने हैं.. पर हमें आपको किस कुत्ते ने काटा है जो इन नीम हकीमों के हवाले अपनी जान कर देते हैं.. क्या अब यह पूछा जाना ज़रूरी नहीं हो गया कि एलोपैथी किस आधार पर अपने को अन्य चिकित्सा पद्धतियों से श्रेष्ठ सिद्ध कर रही है.. ? और क्यों लोग उसके इस प्रचार पर भरोसा कर रहे हैं.. ?

12 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

अच्छा है जी...तो अब खाया जाय खूब घी....

काकेश

Rising Rahul ने कहा…

apni daadhi pahle badha liye hote

Raag ने कहा…

हमने तो कभी घी से परहेज क्या ही नहीं। थोड़ा तो अपना अकल पर भरोसा है ही।

बेनामी ने कहा…

दाल भात में मिलाकर खाइए तब पूरा मज़ा आएगा.

संतोष कुमार पांडेय "प्रयागराजी" ने कहा…

"और अपनी अधकचरे ज्ञान को अन्तिम सत्य की तरह हमारे गले में ठेल रहे हैं"
और हम ठेलवाए जा रहे हैं।

Udan Tashtari ने कहा…

आज ही घर पर पढ़वाता हूँ शायद शुरु हो जाये घी मिलना. :) बहुत आभार.

अभिनव ने कहा…

मेरे लिए तो यह बहुत रोचक जानकारी है। आपका धन्यवाद।

बेनामी ने कहा…

पंडितजी भूल गये दाल-भात पर क्या पिटाई हुई थी। अब घी पर आ गये हो, अभी मोहल्ला को खबर करता हूं।

Farid Khan ने कहा…

बेनाम ने बहुत सही चुटकी ली है....दाल भात पर जब इतना बवाल हुआ तो घी पर ना जाने क्या हो..

असल में पूरी दुनिया को अभी " तुम दिन अगर रात कहो,रात कहेंगे" के ढर्रे पर चलाने की कोशिश की जा रही है और हमारी प्रेयसी (प्रभुत्वशाली लोग) चाहती है कि हम आंख मूंद कर उसका पालन करते रहें...

उसने पहले कहा कि घी छोड़ दो , हमने छोड़ दिया.... अब वह घी से भी मुनाफ़ा कमाना चाहते हैं तो कह दिया घी खाओ....

अब अभय जी उन्हें एक्सपोज़ करने पर लगे हुए हैं......दाल भात पर तो ग़नीमत है कि कुछ विचार शील लोगों ने ही बवाल मचाया....जान माल का कोइ नुकसान नहीं हुआ...लेकिन घी ?

ये तो सीधे सीधे मुनाफ़े से जुडी़ बात है....और वे तो मुल्कों पर हमला तक करने से गुरेज़ नही करते....

बेनामी ने कहा…

वैज्ञानिक प्रतिवेदन इस समय कबीर की उलटबांसी वाली शैली में लिखे जाते हैं . उनके आशय समझने के लिए बहुत बड़ा जिगरा चाहिए .

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

घी से परहेज हम तो नही करते भाई । बस शुद्द होना चाहिए।

Arun Arora ने कहा…

भाईघी अगर उधार काहो तो और स्वादिस्ट होता है नोट करे

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