आप को यहाँ कुछ विसंगति नहीं दिख रही है..? पूरी मेडिकल साइंस.. और उसका प्रचार तंत्र.. सालों से ये बात हमें ठेल ठेल कर समझा रहा है.. कि घी दूध मक्खन खाने से कोल्स्ट्रॉल बढ़ता है.. जो दिल का दौरा पड़ने में मुख्य खलनायक की भूमिका निभाता है.. तो सभी समझदार भाई बंधुओ ने अपने पूर्वजों को गरियाते हुए.. उन्हे निरे मूढ, ढोर और गँवार के समकक्ष रखते हुए पश्चिम के इस आँखें खोल देने वाले ज्ञान को खुद भी आत्मसात किया और अपने नवजातों को भी पैदा होते ही बाँटना चालू कर दिया.. चार साल की बेटी को आम मध्यमवर्गीय परिवार में घी दूध से परहेज़ करते देख किसी को आश्चर्य नहीं होता.. सब उसकी समझदारी से खुद सीख लेने के लिए प्रेरित हो जाते हैं..
तो भाई साहब हमारी घी खा के सेहत बनाने की पुरानी बुद्धि किसी तरह से अभी इस ज्ञान को नन्हे मुन्नो को देने में सफल हुई ही थी कि हो गया एक नया धमाका..
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मैं दुखी हो गया हूँ.. इस एलोपैथिक चिकित्सा पद्धति से.. ये कोई अपवाद नहीं है.. रोज़ यही होता है.. रोज़ सत्य की एक नई परिभाषा जन्म लेती है.. बच्चे के लिए माँ के दूध के बारे में भी यही गोलमाल हुआ था.. नमक में आयोडीन के बारे में सच क्या है.. इस पर बहुत कुछ कहा जाना शेष है.. एन्टी बायोटिक्स का विषैला प्रभाव कितना गहरा और दूरगामी होता है.. इसके बारे में कितने लोग जानते हैं.. स्टेरॉयड क्या क्या साइड इफ़ेक्ट्स करने की छिपी शक्ति भी रखते हैं.. क्यों नहीं बताया जाता.. क्या इन 'सत्यों' और इनसे जुड़ी दवाइयों तथा अन्य उत्पादों को बाज़ार में उतार देने के पहले वे सचमुच उनके बारे में ठीक ठीक जानते होते हैं..? या जैसे जैसे समस्या होती है.. वे सीखते जाते हैं..?
जब इनके पास कोई निष्कर्ष हैं ही नहीं.. तो ये किस बिना पर पूरी दुनिया पर प्रयोग पर प्रयोग किए चले जा रहे हैं..और अपने अधकचरे ज्ञान को अन्तिम सत्य की तरह हमारे गले में ठेल रहे हैं.. उनकी बात तो एक बारगी फिर भी समझी जा सकती है.. वो व्यापारी है.. उन्हे अपनी दवाएं बेचनी है.. सफ़ोला जैसे दूसरे माल बेचने हैं.. पर हमें आपको किस कुत्ते ने काटा है जो इन नीम हकीमों के हवाले अपनी जान कर देते हैं.. क्या अब यह पूछा जाना ज़रूरी नहीं हो गया कि एलोपैथी किस आधार पर अपने को अन्य चिकित्सा पद्धतियों से श्रेष्ठ सिद्ध कर रही है.. ? और क्यों लोग उसके इस प्रचार पर भरोसा कर रहे हैं.. ?
12 टिप्पणियां:
अच्छा है जी...तो अब खाया जाय खूब घी....
काकेश
apni daadhi pahle badha liye hote
हमने तो कभी घी से परहेज क्या ही नहीं। थोड़ा तो अपना अकल पर भरोसा है ही।
दाल भात में मिलाकर खाइए तब पूरा मज़ा आएगा.
"और अपनी अधकचरे ज्ञान को अन्तिम सत्य की तरह हमारे गले में ठेल रहे हैं"
और हम ठेलवाए जा रहे हैं।
आज ही घर पर पढ़वाता हूँ शायद शुरु हो जाये घी मिलना. :) बहुत आभार.
मेरे लिए तो यह बहुत रोचक जानकारी है। आपका धन्यवाद।
पंडितजी भूल गये दाल-भात पर क्या पिटाई हुई थी। अब घी पर आ गये हो, अभी मोहल्ला को खबर करता हूं।
बेनाम ने बहुत सही चुटकी ली है....दाल भात पर जब इतना बवाल हुआ तो घी पर ना जाने क्या हो..
असल में पूरी दुनिया को अभी " तुम दिन अगर रात कहो,रात कहेंगे" के ढर्रे पर चलाने की कोशिश की जा रही है और हमारी प्रेयसी (प्रभुत्वशाली लोग) चाहती है कि हम आंख मूंद कर उसका पालन करते रहें...
उसने पहले कहा कि घी छोड़ दो , हमने छोड़ दिया.... अब वह घी से भी मुनाफ़ा कमाना चाहते हैं तो कह दिया घी खाओ....
अब अभय जी उन्हें एक्सपोज़ करने पर लगे हुए हैं......दाल भात पर तो ग़नीमत है कि कुछ विचार शील लोगों ने ही बवाल मचाया....जान माल का कोइ नुकसान नहीं हुआ...लेकिन घी ?
ये तो सीधे सीधे मुनाफ़े से जुडी़ बात है....और वे तो मुल्कों पर हमला तक करने से गुरेज़ नही करते....
वैज्ञानिक प्रतिवेदन इस समय कबीर की उलटबांसी वाली शैली में लिखे जाते हैं . उनके आशय समझने के लिए बहुत बड़ा जिगरा चाहिए .
घी से परहेज हम तो नही करते भाई । बस शुद्द होना चाहिए।
भाईघी अगर उधार काहो तो और स्वादिस्ट होता है नोट करे
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