रविवार, 8 अप्रैल 2007

ऐ लम्बरदार जियादा लन्तरानी ना पेलो..

गाँव कस्बे के सहज बोल बचन हैं.. ऐ ना पेलो के अलावा, यहाँ जो बाकी शब्द हैं उनका मूल अरबी भाषा में हैं.. लम्बरदार बिगड़ा हुआ रूप है अलमबरदार का .. अलम का मायने है झण्डा.. और बरदार फ़ारसी का प्रत्यय है जिसका अर्थ है उठाने वाला.. तो झण्डा लेकर आगे आगे चलने वाले को अलमबरदार कहा जाता है.. और अपनी देशज भाषा में भी इसका लगभग यही अर्थ है.. नेता मुखिया के लिये प्रयुक्त होता है.. जियादा में ज़ियादः फेर बदल नहीं हुई.. मगर लन्तरानी.. लनतरानी का अर्थ है.. 'तू मुझे नहीं देख सकता'.. अयँ? .. ये शब्द है कि वाक्य.. ? .. असल में ये वाक्य ही है.. जो ईश्वर ने मूसा से कहा है .. जब मूसा ने उनको देखने की इच्छा प्रगट की.. ईश्वर का यहाँ पर तौर ये है कि कहाँ मैं सर्व शक्तिमान ईश्वर और कहाँ तू एक अदना मनुष्य.. इसी मूल भावना को ध्यान में रखकर इस वाक्य का प्रयोग एक मुहावरे के बतौर होता है.. बहुत बहुत बड़ी बड़ी बातें पेलने वाली प्रवृत्ति को चिह्नित करने के लिये..
इतनी मासूम सी बात है.. क्या आप को लग रहा है कि मैं लनतरानी पेल रहा हूँ?

2 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

आप लनतरानी पेल भी रहे हों तो इसे अन्‍यथा लेने की आवश्‍यकता नहीं। लनतरानी पेलना निहायत ही सुखद अनुभूति है। दरअसल लनतरानी ही क्‍यों पेलने की विविध वृत्तियों में आप ध्‍यान दें तो सभी का अपना-अपना सुख है। फिलहाल मुझे दंड पेलना है नहीं तो इस विषय पर अभी मैं और प्रकाश डालता।
- लालचंद लम्‍बरदार चौबे

अभय तिवारी ने कहा…

वाह बन्धुवर.. मैं किन किन शब्दों की बात कर रहा था.. और आप ने किस शब्द को पकड़ा.. और उसके एक खास अर्थ की ओर इशारा भी कर दिया.. आप धन्य हों..

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