अमेरिका को गरियाने के सवाल पर मेरी पिछली प्रविष्टि का जैसा स्वागत हुआ.. सच पूछें तो मैंने ऐसी कल्पना न की थी.. अब स्थिति ये है कि मैं अपने आप को एक विचित्र दबाव में पा रहा हूँ.. आपकी आशाओं पर खरे उतरने का दबाव.. मैं कोई अर्थशास्त्री नहीं हूँ..मैं कोई समाजशास्त्री भी नहीं हूँ.. ना राजनैतिक विषयों में मेरी कोई महारत है.. मेरी जानकारियां और ज्ञान सामान्य स्तर का और सीमित है.. जो है उसे मैं आपके साथ बाँट रहा हूँ.. पिछले ल्रेख पर आयी प्रतिक्रियाओं मे से विनय जी, अफ़लातून भाई और राग ने मुझे कारपोरेशन नाम की एक डॉक्युमेन्टरी देखने की सलाह दी.. मुझे ये जान के अच्छा लगा कि मैं कितने सचेत साथियों के बीच हूँ.. मैं ने भी ये फ़िल्म देखी है.. और मेरे इस विश्लेषण में इस फ़िल्म का बड़ा योगदान है..
कॉरपोरेट: शीर्ष पर साइकोपैथ
हमारी आम बोल चाल की भाषा में कॉरपोरेशन बहुत पुराना शब्द नहीं है.. मुझे भी इस शब्द को सुनते शायद दस साल हुये होंगे.. कॉरपोरेशन का मोटा मतलब धंधा है.. व्यापार है बिज़नेस है.. अब धंधे व्यापार के कई रूप होते हैं.. कोई अकेले धंधा करता है.. जिसे प्रोप्राइटरशिप कहते हैं.. फिर साझेदारी में होता है धंधा.. इसके अलावा प्राइवेट लिमिटेड.. और पब्लिक लिमिटेड कम्पनी.. अगर मैं सही हूँ तो आज भी कॉरपोरेशन कहने से लोग आम तौर पर नगर निगम समझते हैं.. और ये जो कम्पनी शब्द है.. इसके वो सारे अर्थ समझने चाहिये जो कॉरपोरेशन से समझे जायेंगे.. कम्पनी की बात चली तो सभी लोग अपने सामूहिक स्मृति पर ज़ोर डालकर याद करें कि क्या याद आता है.. जी भाइयों और बहनों.. मेरे और आप के दिमाग में एक ही बात है.. क्यों कि हमारा इतिहास साझा है और स्मृति साझी है.. कम्पनी का मतलब ईस्ट इंडिया कम्पनी.. हमारे औपनिवेशिक भूत का माईबाप..
यूरोप के अधिकतर देशों ने मध्ययुग में दूसरे देशों को उपनिवेश बनाने के लिये कई तरह के कॉरपोरेशन की रचना की.. जैसे कि डच ईस्ट इंडिया कम्पनी जो कि दुनिया की पहली कम्पनी थी जिसके पब्लिक शेयर्स निकाले गये.. और हमारी अपनी ईस्ट इंडिया कम्पनी. .जिसने हमारे ऊपर सौ साल तक हुकूमत की.. बरतानिया की रानी को ये कार्यभार सौंपने के पहले.. १६०० में स्थापित इस कम्पनी के व्यापारिक जीवन में एक क्रांतिकारी मोड़ तब आ गया जब कि १७५७ में कम्पनी के एक मुलाजिम रॉबर्ट क्लाइव ने एक निजी सेना, दलाली, घूसखोरी और धोखाधड़ी के ज़रिये बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला को उसकी गद्दी से अपदस्थ कर दिया..(बहुत सारे लोग ऐसे हैं जो भारतीय लोगों के पतनशील व्यवहार को देख के बाप दादाओं के बातों को याद करके उनके यानी के अंग्रेज़ो के ज़माने को ही बेहतर घोषित कर डालते हैं.. इस मौके पर मैं उन लोगों को ये याद दिलाने का मोह संवरण नहीं कर पा रहा हूँ कि अंग्रेज़ों के इस साम्राज्य की नींव घूसखोरी दलाली और धोखाधड़ी के बुनियाद पर ही रखी गई थी) ..
कम्पनी की सबसे कामयाब बिज़नेस डील के रूप के फल स्वरूप लन्डन में कम्पनी के शेयरों के दाम आसमान छूने लगे.. और फिर शुरु हुआ लूट का एक लम्बा सिलसिला.. जिसमें विशेष उल्लेल्खनीय है १७७० का बंगाल का दुर्भिक्ष.. जिस कम्पनी निर्मित अकाल में आधी आबादी का सफ़ाया हो गया.. मगर जंगल के जानवर बचे रहे.. उसकी इन्ही सफलताओं के बदौलत कम्पनी ने अगले सौ साल और रानी ने उसके बाद के नब्बे साल हिन्दुस्तान पर राज किया.. और यहाँ से होने वाली आय के ज़रिये अपने साम्राज्य को इतना फैलाया कि उनके राज में सूरज कभी डूबता ही नहीं था.. नेहरू जी ने एक बोध की बात लिखी अपनी पुस्तक भारत की खोज में.. ग़ौर तलब है ये बात कि अंग्रेज़ी भाषा में शामिल हो गये हिन्दुस्तानी शब्दों में एक शब्द लूट है.. .
कम्पनी की इस कहानी से एक बात तो ज़ाहिर है कि मल्टीनेशनल कम्पनी, कॉरपोरेशन्स, या मोटे तौर पर बाज़ार.. सिर्फ़ धंधा ही नहीं करना चाहते वे शक्ति का केन्द्र भी बनना चाहते हैं.. आज़ादी के बाद हम नेहरू युग में कम्पनी और बाज़ार से थोड़ा बच बच कर चलते रहे मगर अब वो राज की स्मृतियां मद्धिम पड़ गई हैं.. और अपना देशी पूँजी पति भी इतना तगड़ा हो गया है कि अब इस तरह के विज्ञापन देखते हुये आप हैरान नहीं होंगे कि एक देशी व्यापारी रजनी गंधा खाते हुये ईस्ट इंडिया कम्पनी को खरीदने की बात करे .. २०० साल तक उन्होने राज किया अब हमारी बारी है.. आज हमारे देश में ऐसा माहौल बनाया जा रहा है कि लोग सब कुछ भूल कर इसी बात पर नाज़ करें कि टाटा ने कोरस को खरीद लिया.. जैसे कि टाटा के भारतीय मूल का होने से कोई बहुत क्रांतिकारी अन्तर आ जाने वाला है.. कोई अन्तर नहीं आयेगा.. क्योंकि कॉरपोरेशन का चरित्र ही ऐसा है..
क्या है कॉरपोरेशन.. एक ऐसी वैधिक हस्ती है..जिसे व्यक्ति के रूप में क़ानून मान्यता देता है.. जो ऐसे वैधिक हस्तियों के द्वारा मिल कर बनी होती है जो कुदरतन व्यक्ति हैं.. इनको क़ानून से जो अधिकार हासिल हैं वो इस प्रकार हैं..
१]ये मुकदमा कर सकते हैं और इन पर मुकदमा किया जा सकता है..
२] ये अपने सदस्यों से स्वतंत्र.. सम्पत्ति इकठ्ठा कर स्कते हैं..
३]ये कर्मचारी, वकील और प्रतिनिधि आदि को काम पर रख सकते हैं..
४]ये अनुबंध आदि पर अपनी मोहर लगा के हस्ताक्षर भी कर सकते हैं..
५]और अपने मामलों में खुद मुख्तार होने के लिये नियम क़ानून खुद तय कर सकते हैं..
इनके तीन और वैधिक गुण हैं.. १] शेयर्स को स्थानांतरित किया जा सकता है..२]कोई आये जाये उस से कॉर्पोरेशन के जीवन पर कोई असर नहीं पड़ता.. कॉरपोरेशन शाश्वत रूप से जीवित रह सकता है.. ३]और कॉरपोरेशन के पापो से उसके सदस्य गण यानी कि शेयर होल्डर्स मुक्त रहेंगे.. इन अधिकारों के अलावा कुछ अधिकार अभी ऐसे हैं जो कॉरपोरेशन्स के पास नहीं है जैसे धर्म के पालन का अधिकार.. जो सिर्फ़ उन व्यक्तियों के पास है जो कुदरतन व्यक्ति हैं..और जिनके पास आस्था, विश्वास और अध्यात्म की क्षमतायें हैं..
अब इस कॉरपोरेट के व्यक्ति को समझने के लिये शुरुआत करते हैं इसके सामजिक व्यवहार से.. कोई भी व्यक्ति समाज का हिस्सा होता है.. जिन लोगों के साथ उठता बैठता है उनसे एक रिश्ता क़ायम करता है जब से आदमी ने अपने आपको समझा है तब से ये एक बात अचल है.. आदमी तो छोड़िये..आदमी कुत्ते बिल्लियों पेड़ पौधों खेत मिट्टी तक से रिश्ता बना लेता है.. लेकिन कॉरपोरेट नाम का ये व्यक्ति मानवीय सम्बन्ध बनाने में क़तई नाकामयाब है.. वे लोग जो इस व्यक्ति के सबसे करीबी सम्पर्क में आते हैं जैसे कि मज़दूर आदि.. उनके प्रति इसका रवैया बेहद मशीनी होता है.. उनको रखना निकालना उनकी यूनियन तोड़ना , दुर्घटना आदि में क़तई उनके प्रति कोई सम्वेदना ना रखना और बेहद बेरहमी से पेश आना .. दुनिया भर में स्वीकृत ये इसका ऐसा आम व्यवहार है कि अब कोई इसके बारे में चर्चा भी नहीं करना चाहता..
किसी भी व्यक्ति के सामाजिक दायरे में आस पास के लोगों के बाद वे लोग आते हैं जिनको वो जानता पहचानता नहीं मगर उनके मानव मात्र होने से उनके प्रति सम्वेदना रखता है.. किसी दूसरे मनुष्य को दुख विपदा में देख कर दुखी हो जाना सामान्य मानवीय गुण है.. पर कॉरपोरेट नाम का यह शख्स ना सिर्फ़ ऐसे खतरनाक हथियार आदि माल बनाता बेचता है जो आदमी के जीवन के लिये खतरा हैं बल्कि उनके लिये सचेत रूप से एक बाज़ार तैयार करता है.. विनाशकारी प्रभाव वाले पेट्रोलियम पदार्थों और कृत्रिम खादों कीटनाशकों आदि के उत्पादन को जारी रखता है बावजूद इसके कि ये तमाम स्रोतों से सिद्ध किया जा चुका है वे पदार्थ एक बड़े स्तर पर लोगों के जान और स्वास्थ्य की हानि कर रहे हैं.. और आने वाली नस्लों में भी उस नुकसान के लक्षण मिलते रहेंगे.. वातावरण में विषैला कचरा फेंकता रहता है.. जबकि उसके खिलाफ़ नियम हैं क़ानून हैं.. उन सब की अवहेलना करके भी यह शख्स अपने निजी लाभ के लिये मानवता का और दूसरे मनुष्यों की हानि में अनवरत संलग्न रहता है.. मानव इतिहास में उदाहरण हैं कि क्रूर से क्रूर व्यक्ति के अन्दर प्रायश्चित का भाव जागता है.. अशोक जैसे योद्धा का भी हृदय परिवर्तन होता है.. महामानव की संकल्पना करने वाले नीत्शे जैसे दार्शनिक के जीवन में भी एक ऐसा पल आता है जब उसे एक घोड़े तक को चाबुक मारे जाने से भी पीड़ा होती है.. लेकिन इस कॉरपोरेट नामक व्यक्ति के भीतर ऐसी किसी मानवीय सम्भावना का पता अभी तक नहीं चला है..
जब मनुष्यों के प्रति इस का ये रवैया है तो आपको सोच ही लेना चाहिये कि जानवरों के प्रति ये किस दृष्टि से देखता होगा.. अमेरिका के व्यावसायिक तबेलों में गायों को गाय नहीं प्रॉड्क्शन युनिट कहा जाता है.. दूध की मात्रा को बढ़ाने के लिये उनको ऐसे इन्जेक्शन्स दिये जाते हैं जिनकी वज़ह से गायों में तरह के तरह के रोग और पीड़ायें जन्म लेती हैं.. और गायें तो बोल भी नहीं सकती युनियन बनाने और प्रतिरोध करना तो दूर की बात है.. और पृथ्वी जिसे सनातन धर्मी गाय का ही एक दूसरा रूप मानते हैं..और जो सहनशीलता की अति मानी गई है.. ये शख्स उसके इस गुण का भरपूर शोषण कर रहा है.. नदियां का इस्तेमाल नालों की तरह से.. विषैले बाई प्रॉडक्ट्स को बहाने के लिये .. हवा का इस्तेमाल गैसों का रिसाव करने के लिये.. आशा है हम लोग यूनियन कार्बाईड अभी भूले नहीं होंगे.. .. पहाड़ भी उसके शोषक स्रामाज्य का एक हिस्सा हैं.. खनिज पदार्थ के उत्खनन के लिये वो लगातार उनकी जड़ काट रहा है.. जंगलों की अंधाधुंध कटाई भी हो ही रही है.. आज आपको साफ़ पानी बेचा जा रहा है कल को साफ़ हवा और साफ़ वातावरण भी बेचा जायेगा..
किसी चीज़ के बारे में ये शख्स तब तक विचार नहीं करता जब तक कि उसमें से कोई लाभ ना लिया जा सके.. और थोड़े लाभ से संतुष्ट नहीं होता ये व्यक्ति.. इसके लोभ की सीमा नहीं है.. इसके पेट में आप कितना भी डाल दीजिये ये सदैव असंतुष्ट रहता है.. क्योंकि इसके जीवन का इसके अस्तित्व की एक ही शर्त है.. लाभ.. ये जो करता है लाभ के लिये करता है.. और लाभ का अर्थ इसके लिये सिर्फ़ मुद्रा में होता है.. और किसी रूप में नहीं.. मनुष्यों में अक्सर देखा जाता है कि वो तमाम मामूली चीज़ों के लिये बहुत सारे पैसों की बलि दे देते हैं.. इस शख्स में ऐसी कोई कमज़ोरी नहीं पाई जाती..
यूनिवर्सिटी ऑफ़ ब्रिटिश कोलंबिया के क़ानून के प्रोफ़ेसर जोयल बेकन कहते हैं कि कॉरपोरेशन एक संस्थागत साइकोपैथ है.. उनके अनुसार अगर कॉरपोरेशन सचमुच कोई जीवित व्यक्ति होता तो उसके सारे व्यवहार एक असामाजिक तत्व और साइकोपैथ के होते.. अगर इसके मुख्य गुणों की सूची बनाई जाये तो वह कुछ इस तरह की दिखेगी..
१]दूसरों की भावनाओं और हितों के प्रति सम्पूर्ण बेरुखी
२]दूसरे मनुष्यो के साथ लम्बे और दीर्घकालिक रिश्ते बनाने में पूर्ण असफलता
३]दूसरों के सुरक्षा के प्रति पूरी उपेक्षा और सिर्फ़ अपने हित की चिन्ता
४]किसी भी प्रकार के अपराध भाव को महसूस करने के एकदम परे
५]अपने लाभ के लिये बार बार झूठ बोलने और धोखा देने में महारत
६]क़ानून और सामाजिक नियमों का पालन करने में नितान्त अक्षम
ये सारे लक्षण एक मानसिक और सामाजिक रूप से बीमार साइको पैथ के ही है.. जिसे पहचान लिये जाने के बाद समाज उसे मनुष्यों के बीच स्वतंत्र रूप से घूमने फिरने तक की आज़ादी नहीं देता.. मगर मज़े की बात ये है कि ऊपर बताये गये लक्षण में से ज़्यादातर न सिर्फ़ हम जानते हैं बल्कि ये स्वीकार भी करते हैं कि समाज के प्रगति और विकास के लिये उसके पीछे पीछे चलने में ही मानवता की भलाई है.. और कुछ लोग तो ऐसे भी हैं जो ये भी मानते हैं कि ये रास्ता गड्ढे की तरफ़ जा रहा है फिर भी प्रतिरोध नहीं करते.. एक पिछले कुछ सालों मे हवा पानी और वातावरण जितना दूषित हो चुका है उतना शायद पृथ्वी के इतिहास में कभी नहीं हुआ होगा. फिर भी हमे में ज़्यादातर लोग एक सुनियोजित प्रचार के तहत ये सोचते हैं कि मनुष्य प्रगति की राह पर है.. क्या टीवी, एसी, लैपटॉप, सेलफ़ोन यही प्रगति के सच्चे मानक हैं,, या मन की शांति आपसी सौहार्द प्रेम सामाजिक शांति.. खुशहाली.. वातावरण की शुद्धता प्रकृति के साथ एक तादात्म्य इन मानकों का भी कोई अर्थ है..? पृथ्वी के खिलाफ़ ये सब अपराध हो रहे हैं क्यों कि पृथ्वी सहनशील है.. और वो चुप रहती है.. हम बोल सकते हैं पर वो हमें ना तो बोलने का समय देता है ना अवसर .. अपने मीडिया तंत्र के द्वारा उसने २४ घंटे हमारे विचारों पर छा जाने की एक मुहिम चला रखी है.. हम या तो उनकी नौकरी बजा रहे होते हैं.. या उनका माल खरीद रहे होते हैं.. या उनके माल को खरीदने के बारे में सोच रहे होते हैं.. या उनके माल को खरीदने के लिये आवश्यक मनोभावों को अपने अन्दर चला रहे होते हैं.. लोभ ईर्ष्या स्पृहा आदि.. मानव मस्तिष्क बड़ा विचित्र है और हर चीज़ के परे जा कर उसकी काट सोचने और कार्यान्वित करने में सक्षम हैं.. मगर फ़िलहाल मात खा रहा है.. एक ऐसे साइकोपैथ के हाथों जो ना सिर्फ़ समाज में छुट्टा घूम रहा है बल्कि उसके शीर्ष पर बैठ कर हमारे वर्तमान और भविष्य को तय कर रहा है..
प्रसिद्ध विचारक नोअम चोम्स्की का कहना है कि अगर कॉरपोरेशन की एक राजनैतिक स्वरूप की कल्पना की जाय तो उसके शीर्ष में बेहद तीखे केन्द्रीकरण.. नीचे के हर स्तर पर कठोर आदेश पालन.. आपसी लेन देन की ना के बराबर गुंज़ाइश..के फलस्वरूप जो केन्द्रीकृत सत्ता उभरती है वह इतिहास में तानाशाही फ़ासीवाद के रूप से जानी जाती है.. सोचने की बात सिर्फ़ इसका तानाशाही स्वरूप ही नहीं बल्कि वर्तमान राजनीति पर इसका मजबूत पकड़ है.. अमेरिका इस कॉरपोरेट का सबसे बड़ा राजनैतिक प्रतिनिधि है.. जो दुनिया भर में अपने आक़ा की आर्थिक सत्ता के लिये लगातार कहीं न कहीं युद्धरत है.. और ऐसे साइकोपैथ के पाले हुये गुंडे अमेरिका को क्यों ना गरियायें हम सब मिल के.. जब तक वो हमारा गला नहीं टीप देता..
यूरोप के अधिकतर देशों ने मध्ययुग में दूसरे देशों को उपनिवेश बनाने के लिये कई तरह के कॉरपोरेशन की रचना की.. जैसे कि डच ईस्ट इंडिया कम्पनी जो कि दुनिया की पहली कम्पनी थी जिसके पब्लिक शेयर्स निकाले गये.. और हमारी अपनी ईस्ट इंडिया कम्पनी. .जिसने हमारे ऊपर सौ साल तक हुकूमत की.. बरतानिया की रानी को ये कार्यभार सौंपने के पहले.. १६०० में स्थापित इस कम्पनी के व्यापारिक जीवन में एक क्रांतिकारी मोड़ तब आ गया जब कि १७५७ में कम्पनी के एक मुलाजिम रॉबर्ट क्लाइव ने एक निजी सेना, दलाली, घूसखोरी और धोखाधड़ी के ज़रिये बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला को उसकी गद्दी से अपदस्थ कर दिया..(बहुत सारे लोग ऐसे हैं जो भारतीय लोगों के पतनशील व्यवहार को देख के बाप दादाओं के बातों को याद करके उनके यानी के अंग्रेज़ो के ज़माने को ही बेहतर घोषित कर डालते हैं.. इस मौके पर मैं उन लोगों को ये याद दिलाने का मोह संवरण नहीं कर पा रहा हूँ कि अंग्रेज़ों के इस साम्राज्य की नींव घूसखोरी दलाली और धोखाधड़ी के बुनियाद पर ही रखी गई थी) ..
कम्पनी की सबसे कामयाब बिज़नेस डील के रूप के फल स्वरूप लन्डन में कम्पनी के शेयरों के दाम आसमान छूने लगे.. और फिर शुरु हुआ लूट का एक लम्बा सिलसिला.. जिसमें विशेष उल्लेल्खनीय है १७७० का बंगाल का दुर्भिक्ष.. जिस कम्पनी निर्मित अकाल में आधी आबादी का सफ़ाया हो गया.. मगर जंगल के जानवर बचे रहे.. उसकी इन्ही सफलताओं के बदौलत कम्पनी ने अगले सौ साल और रानी ने उसके बाद के नब्बे साल हिन्दुस्तान पर राज किया.. और यहाँ से होने वाली आय के ज़रिये अपने साम्राज्य को इतना फैलाया कि उनके राज में सूरज कभी डूबता ही नहीं था.. नेहरू जी ने एक बोध की बात लिखी अपनी पुस्तक भारत की खोज में.. ग़ौर तलब है ये बात कि अंग्रेज़ी भाषा में शामिल हो गये हिन्दुस्तानी शब्दों में एक शब्द लूट है.. .
कम्पनी की इस कहानी से एक बात तो ज़ाहिर है कि मल्टीनेशनल कम्पनी, कॉरपोरेशन्स, या मोटे तौर पर बाज़ार.. सिर्फ़ धंधा ही नहीं करना चाहते वे शक्ति का केन्द्र भी बनना चाहते हैं.. आज़ादी के बाद हम नेहरू युग में कम्पनी और बाज़ार से थोड़ा बच बच कर चलते रहे मगर अब वो राज की स्मृतियां मद्धिम पड़ गई हैं.. और अपना देशी पूँजी पति भी इतना तगड़ा हो गया है कि अब इस तरह के विज्ञापन देखते हुये आप हैरान नहीं होंगे कि एक देशी व्यापारी रजनी गंधा खाते हुये ईस्ट इंडिया कम्पनी को खरीदने की बात करे .. २०० साल तक उन्होने राज किया अब हमारी बारी है.. आज हमारे देश में ऐसा माहौल बनाया जा रहा है कि लोग सब कुछ भूल कर इसी बात पर नाज़ करें कि टाटा ने कोरस को खरीद लिया.. जैसे कि टाटा के भारतीय मूल का होने से कोई बहुत क्रांतिकारी अन्तर आ जाने वाला है.. कोई अन्तर नहीं आयेगा.. क्योंकि कॉरपोरेशन का चरित्र ही ऐसा है..
क्या है कॉरपोरेशन.. एक ऐसी वैधिक हस्ती है..जिसे व्यक्ति के रूप में क़ानून मान्यता देता है.. जो ऐसे वैधिक हस्तियों के द्वारा मिल कर बनी होती है जो कुदरतन व्यक्ति हैं.. इनको क़ानून से जो अधिकार हासिल हैं वो इस प्रकार हैं..
१]ये मुकदमा कर सकते हैं और इन पर मुकदमा किया जा सकता है..
२] ये अपने सदस्यों से स्वतंत्र.. सम्पत्ति इकठ्ठा कर स्कते हैं..
३]ये कर्मचारी, वकील और प्रतिनिधि आदि को काम पर रख सकते हैं..
४]ये अनुबंध आदि पर अपनी मोहर लगा के हस्ताक्षर भी कर सकते हैं..
५]और अपने मामलों में खुद मुख्तार होने के लिये नियम क़ानून खुद तय कर सकते हैं..
इनके तीन और वैधिक गुण हैं.. १] शेयर्स को स्थानांतरित किया जा सकता है..२]कोई आये जाये उस से कॉर्पोरेशन के जीवन पर कोई असर नहीं पड़ता.. कॉरपोरेशन शाश्वत रूप से जीवित रह सकता है.. ३]और कॉरपोरेशन के पापो से उसके सदस्य गण यानी कि शेयर होल्डर्स मुक्त रहेंगे.. इन अधिकारों के अलावा कुछ अधिकार अभी ऐसे हैं जो कॉरपोरेशन्स के पास नहीं है जैसे धर्म के पालन का अधिकार.. जो सिर्फ़ उन व्यक्तियों के पास है जो कुदरतन व्यक्ति हैं..और जिनके पास आस्था, विश्वास और अध्यात्म की क्षमतायें हैं..
अब इस कॉरपोरेट के व्यक्ति को समझने के लिये शुरुआत करते हैं इसके सामजिक व्यवहार से.. कोई भी व्यक्ति समाज का हिस्सा होता है.. जिन लोगों के साथ उठता बैठता है उनसे एक रिश्ता क़ायम करता है जब से आदमी ने अपने आपको समझा है तब से ये एक बात अचल है.. आदमी तो छोड़िये..आदमी कुत्ते बिल्लियों पेड़ पौधों खेत मिट्टी तक से रिश्ता बना लेता है.. लेकिन कॉरपोरेट नाम का ये व्यक्ति मानवीय सम्बन्ध बनाने में क़तई नाकामयाब है.. वे लोग जो इस व्यक्ति के सबसे करीबी सम्पर्क में आते हैं जैसे कि मज़दूर आदि.. उनके प्रति इसका रवैया बेहद मशीनी होता है.. उनको रखना निकालना उनकी यूनियन तोड़ना , दुर्घटना आदि में क़तई उनके प्रति कोई सम्वेदना ना रखना और बेहद बेरहमी से पेश आना .. दुनिया भर में स्वीकृत ये इसका ऐसा आम व्यवहार है कि अब कोई इसके बारे में चर्चा भी नहीं करना चाहता..
किसी भी व्यक्ति के सामाजिक दायरे में आस पास के लोगों के बाद वे लोग आते हैं जिनको वो जानता पहचानता नहीं मगर उनके मानव मात्र होने से उनके प्रति सम्वेदना रखता है.. किसी दूसरे मनुष्य को दुख विपदा में देख कर दुखी हो जाना सामान्य मानवीय गुण है.. पर कॉरपोरेट नाम का यह शख्स ना सिर्फ़ ऐसे खतरनाक हथियार आदि माल बनाता बेचता है जो आदमी के जीवन के लिये खतरा हैं बल्कि उनके लिये सचेत रूप से एक बाज़ार तैयार करता है.. विनाशकारी प्रभाव वाले पेट्रोलियम पदार्थों और कृत्रिम खादों कीटनाशकों आदि के उत्पादन को जारी रखता है बावजूद इसके कि ये तमाम स्रोतों से सिद्ध किया जा चुका है वे पदार्थ एक बड़े स्तर पर लोगों के जान और स्वास्थ्य की हानि कर रहे हैं.. और आने वाली नस्लों में भी उस नुकसान के लक्षण मिलते रहेंगे.. वातावरण में विषैला कचरा फेंकता रहता है.. जबकि उसके खिलाफ़ नियम हैं क़ानून हैं.. उन सब की अवहेलना करके भी यह शख्स अपने निजी लाभ के लिये मानवता का और दूसरे मनुष्यों की हानि में अनवरत संलग्न रहता है.. मानव इतिहास में उदाहरण हैं कि क्रूर से क्रूर व्यक्ति के अन्दर प्रायश्चित का भाव जागता है.. अशोक जैसे योद्धा का भी हृदय परिवर्तन होता है.. महामानव की संकल्पना करने वाले नीत्शे जैसे दार्शनिक के जीवन में भी एक ऐसा पल आता है जब उसे एक घोड़े तक को चाबुक मारे जाने से भी पीड़ा होती है.. लेकिन इस कॉरपोरेट नामक व्यक्ति के भीतर ऐसी किसी मानवीय सम्भावना का पता अभी तक नहीं चला है..
जब मनुष्यों के प्रति इस का ये रवैया है तो आपको सोच ही लेना चाहिये कि जानवरों के प्रति ये किस दृष्टि से देखता होगा.. अमेरिका के व्यावसायिक तबेलों में गायों को गाय नहीं प्रॉड्क्शन युनिट कहा जाता है.. दूध की मात्रा को बढ़ाने के लिये उनको ऐसे इन्जेक्शन्स दिये जाते हैं जिनकी वज़ह से गायों में तरह के तरह के रोग और पीड़ायें जन्म लेती हैं.. और गायें तो बोल भी नहीं सकती युनियन बनाने और प्रतिरोध करना तो दूर की बात है.. और पृथ्वी जिसे सनातन धर्मी गाय का ही एक दूसरा रूप मानते हैं..और जो सहनशीलता की अति मानी गई है.. ये शख्स उसके इस गुण का भरपूर शोषण कर रहा है.. नदियां का इस्तेमाल नालों की तरह से.. विषैले बाई प्रॉडक्ट्स को बहाने के लिये .. हवा का इस्तेमाल गैसों का रिसाव करने के लिये.. आशा है हम लोग यूनियन कार्बाईड अभी भूले नहीं होंगे.. .. पहाड़ भी उसके शोषक स्रामाज्य का एक हिस्सा हैं.. खनिज पदार्थ के उत्खनन के लिये वो लगातार उनकी जड़ काट रहा है.. जंगलों की अंधाधुंध कटाई भी हो ही रही है.. आज आपको साफ़ पानी बेचा जा रहा है कल को साफ़ हवा और साफ़ वातावरण भी बेचा जायेगा..
किसी चीज़ के बारे में ये शख्स तब तक विचार नहीं करता जब तक कि उसमें से कोई लाभ ना लिया जा सके.. और थोड़े लाभ से संतुष्ट नहीं होता ये व्यक्ति.. इसके लोभ की सीमा नहीं है.. इसके पेट में आप कितना भी डाल दीजिये ये सदैव असंतुष्ट रहता है.. क्योंकि इसके जीवन का इसके अस्तित्व की एक ही शर्त है.. लाभ.. ये जो करता है लाभ के लिये करता है.. और लाभ का अर्थ इसके लिये सिर्फ़ मुद्रा में होता है.. और किसी रूप में नहीं.. मनुष्यों में अक्सर देखा जाता है कि वो तमाम मामूली चीज़ों के लिये बहुत सारे पैसों की बलि दे देते हैं.. इस शख्स में ऐसी कोई कमज़ोरी नहीं पाई जाती..
यूनिवर्सिटी ऑफ़ ब्रिटिश कोलंबिया के क़ानून के प्रोफ़ेसर जोयल बेकन कहते हैं कि कॉरपोरेशन एक संस्थागत साइकोपैथ है.. उनके अनुसार अगर कॉरपोरेशन सचमुच कोई जीवित व्यक्ति होता तो उसके सारे व्यवहार एक असामाजिक तत्व और साइकोपैथ के होते.. अगर इसके मुख्य गुणों की सूची बनाई जाये तो वह कुछ इस तरह की दिखेगी..
१]दूसरों की भावनाओं और हितों के प्रति सम्पूर्ण बेरुखी
२]दूसरे मनुष्यो के साथ लम्बे और दीर्घकालिक रिश्ते बनाने में पूर्ण असफलता
३]दूसरों के सुरक्षा के प्रति पूरी उपेक्षा और सिर्फ़ अपने हित की चिन्ता
४]किसी भी प्रकार के अपराध भाव को महसूस करने के एकदम परे
५]अपने लाभ के लिये बार बार झूठ बोलने और धोखा देने में महारत
६]क़ानून और सामाजिक नियमों का पालन करने में नितान्त अक्षम
ये सारे लक्षण एक मानसिक और सामाजिक रूप से बीमार साइको पैथ के ही है.. जिसे पहचान लिये जाने के बाद समाज उसे मनुष्यों के बीच स्वतंत्र रूप से घूमने फिरने तक की आज़ादी नहीं देता.. मगर मज़े की बात ये है कि ऊपर बताये गये लक्षण में से ज़्यादातर न सिर्फ़ हम जानते हैं बल्कि ये स्वीकार भी करते हैं कि समाज के प्रगति और विकास के लिये उसके पीछे पीछे चलने में ही मानवता की भलाई है.. और कुछ लोग तो ऐसे भी हैं जो ये भी मानते हैं कि ये रास्ता गड्ढे की तरफ़ जा रहा है फिर भी प्रतिरोध नहीं करते.. एक पिछले कुछ सालों मे हवा पानी और वातावरण जितना दूषित हो चुका है उतना शायद पृथ्वी के इतिहास में कभी नहीं हुआ होगा. फिर भी हमे में ज़्यादातर लोग एक सुनियोजित प्रचार के तहत ये सोचते हैं कि मनुष्य प्रगति की राह पर है.. क्या टीवी, एसी, लैपटॉप, सेलफ़ोन यही प्रगति के सच्चे मानक हैं,, या मन की शांति आपसी सौहार्द प्रेम सामाजिक शांति.. खुशहाली.. वातावरण की शुद्धता प्रकृति के साथ एक तादात्म्य इन मानकों का भी कोई अर्थ है..? पृथ्वी के खिलाफ़ ये सब अपराध हो रहे हैं क्यों कि पृथ्वी सहनशील है.. और वो चुप रहती है.. हम बोल सकते हैं पर वो हमें ना तो बोलने का समय देता है ना अवसर .. अपने मीडिया तंत्र के द्वारा उसने २४ घंटे हमारे विचारों पर छा जाने की एक मुहिम चला रखी है.. हम या तो उनकी नौकरी बजा रहे होते हैं.. या उनका माल खरीद रहे होते हैं.. या उनके माल को खरीदने के बारे में सोच रहे होते हैं.. या उनके माल को खरीदने के लिये आवश्यक मनोभावों को अपने अन्दर चला रहे होते हैं.. लोभ ईर्ष्या स्पृहा आदि.. मानव मस्तिष्क बड़ा विचित्र है और हर चीज़ के परे जा कर उसकी काट सोचने और कार्यान्वित करने में सक्षम हैं.. मगर फ़िलहाल मात खा रहा है.. एक ऐसे साइकोपैथ के हाथों जो ना सिर्फ़ समाज में छुट्टा घूम रहा है बल्कि उसके शीर्ष पर बैठ कर हमारे वर्तमान और भविष्य को तय कर रहा है..
प्रसिद्ध विचारक नोअम चोम्स्की का कहना है कि अगर कॉरपोरेशन की एक राजनैतिक स्वरूप की कल्पना की जाय तो उसके शीर्ष में बेहद तीखे केन्द्रीकरण.. नीचे के हर स्तर पर कठोर आदेश पालन.. आपसी लेन देन की ना के बराबर गुंज़ाइश..के फलस्वरूप जो केन्द्रीकृत सत्ता उभरती है वह इतिहास में तानाशाही फ़ासीवाद के रूप से जानी जाती है.. सोचने की बात सिर्फ़ इसका तानाशाही स्वरूप ही नहीं बल्कि वर्तमान राजनीति पर इसका मजबूत पकड़ है.. अमेरिका इस कॉरपोरेट का सबसे बड़ा राजनैतिक प्रतिनिधि है.. जो दुनिया भर में अपने आक़ा की आर्थिक सत्ता के लिये लगातार कहीं न कहीं युद्धरत है.. और ऐसे साइकोपैथ के पाले हुये गुंडे अमेरिका को क्यों ना गरियायें हम सब मिल के.. जब तक वो हमारा गला नहीं टीप देता..
6 टिप्पणियां:
हार्दिक बधाई । गागर में सागर तो रख दिया अभयजी ने। जोएल बाकन की किताब 'the Corporation',शायद फिल्म से पहली आयी होगी।कॉर्पोरेशन के एक -एक कपड़े उतारते हुए निर्वस्त्र कर देती है ,यह रोचक -गवेषणा-प्रस्तुति।पूरी किताब का अनुवाद अभयजी कर दें,माँग है।
देखिये, आपकी वजह से अपेक्षाओं की आग को किस तरह हवा मिल रही है। अफलातून महाराज ने मांग की है तो किसी वजह से की होगी। लेखमाला का दायरा व्यापक हो रहा है, अच्छी बात है।
Aadaneey,
America ko aapne 'gariyaaya'.Aapka swagat bhi hua.Ab aapke ooper dabaaw bhi hai,'khara utarane ka'.
Lekin ye kya.Aapne samoohik smriti par jor dene ki baat kar di.Ye poochhte huye ki samoh ko kya yaad aata hai, company kahne par.Aapne smriti mein bhi saajhedaari kar li.Samjha ja sakta hai.Log aksar apni durbalta ko aur logon ke matthe daalne ki koshish karte hain.Ya phir'saajhedaari' kar lete hain.
Aapne corporation ke baare mein itna kuchh likh daala.Uski vyakhya ki.(halanki poori vyaakhya dekh ar laga ki Altaf Raza Gulzar Sahab ke gaano ki vyaakhya kar rahe hain)...Itni sadharan baat ke liye aapko badi mehnat karni padi...Aap kisi bhi desh ka Companies' Act parh lete.Ye saari baatein likhi hui hain.
Lekin aapne Noam Chomsky, Vandana Shiva aur Michael Moore ke dwaara kahi gai baaton ko shashwat maan liya....Aap ye kyon nahin sochte ki ye kewal unka tareeka hai, coporations ko dekhne ka..Is baat par bahas ki jaa sakti hai..Lekin unke kahne ko satya maan lena, khan tak theek hai?...Pahchaan banane ke liye kisi bhi cheej ka virodh karna, kya yahi ek sadhan rah gaya hai?...Michael Moore ki pahchan yahi hai ki we hamesha apni sarkar ke khilaaf bolte rahte hain..Aur bahut saari sympathy batorate hain.Lekin ye maan lena ki we jo bhi kahte hain wahi satya hai, kahan tak jaayaj hai.
Aap ka yah kah dena ki corporation "Kanoon aur samajik niyamon ka paalan karne mein aksham hote hain"..kahan tak uchit hain....Kitne corporates ki study hai aapne?...Aap khud sweekar kar rahe hain ki aapko ye shabd sunte kewal dus saal huye hain..Aur aapne itni saari 'badi-badi' baatein likh daali!...
Kisi film ya kitaab ka hindi mein saral roopantaran (Teeka sahit!) karna bada aasaan hai.Aapko hindi aur angrezi bhaasha ki jaankari hai.Aapk kar sakte hain aisa....Lekin ye maankar chalna ki film mein kahi gai saari baatein theek hain, kahan tak jaayaj hai?
Aapke ooper 'khara utarane ka dabaaw' hai..Aap khara utariye lekin is tarah se bina sochi samjhi baatein likh kar aur use hi satya maankar nahin..
भाई शिव कुमार मिश्र जी.. अनेक धन्यवाद..आप आये.. आपने पढ़ा और लेख को इस योग्य समझा कि उस पर टिप्पणी की(ये बात इस तथ्य के प्रकाश में बहुत महत्वपूर्ण हो गई मेरे लिये जब मैंने देखा कि दो दो ब्लॉग के स्वामी होते हुए भी आपने उन्हे कुछ भी लिखने के योग्य ना समझा)
जनाब चोम्स्की आदि की बातों को मैंने शाश्वत सच नहीं माना और ना मानने की सलाह दी है.. मुझे उनकी बातें तार्किक लगीं तो फ़ौरी तौर पर विश्वास किया.. वैसी आपका कहना भी सही है.. इतनी आसाने से किसी की बात पर यक़ीन करना नहीं चाहिये.. मैंने भाईसाब बरसों इसी ऊहापोह में बितायें हैं.. अब एक दो बरस से कुछ पक्ष सही लगने लग पड़े हैं तो वो भी आपकी आँखों में गड़ रहे हैं..वैसे अगर आपको लगता है कि अमेरिका को गरियाने का तर्क नहीं है कोई इन मूर टूर और शिवा टिवा के पास तो आप उस तर्क को रखते तो मेरा ज़्यादा भला होता..
मेरे पास कॉर्पोरेश्न्स के अपराधों की एक सूची है.. लेख पहले ही बहुत विस्तृत हो गया था इसलिये अनावश्यक विस्तार के भय से उस बारे में नहीं लिखा..
आप अमेरिका और कॉरपोरेट के पक्ष में अपने ब्लॉग में क्यों नहीं लिखते.. मेरी और दूसरे लोगों की शिक्षा के लिये.. ?
भैया अभय,
(संदर्भ एस कुमार मिसिर) हिंदी में दो-दो बिलाग चलवैया रोमन में इत्ती लंबी पात लिख मारे.. आपने पढ़ा ही नहीं, उसका मुनासिब जबाब भी दे मारा.. धन्य हैं..
Munasib jabab!
Abhay ji mujhse blog likhwa kar shiksha lena chaahte hain..Kyon bhaiya?Allahabad aur Dilli mein parhaee ke naam par time pass kya islie kiya aapne, ki blog ke jariye shiksha haasil kar lenge....Asal mein meri ichchha thi hindi mein blog likhne ki...Lekin kuchh din hindi blogging ki duniya dekhi aur tauba kar lee...
Mukhaute hi mukhaute...Laal, hare, gulaabi aur na jaane kitne rango mein...
Abhay ji ne corporation ko itni gaaliyaan di...Bhaiya Abhay se main ye poochhna chaahta huun ki woh kya apni khud ki TV company chalaate hain...Agar nahin to kisi corporation mein hi kaam karte honge...Unse kahiye kyon corporation mein kaam karte hain..Aakhir corporation to logon ka khoon choos kar zinda rahta hai..
Aur phir corporation ko kyon dosh dena..Use chalaane waale insaan hi to hain...Jis Union Carbide ki baat ki hai Abhay ji ne, use chalaane ka jimma kisi insaan ka hi tha...Usi 'asahaay' insaan ka jiske liye Abhay ji ke mann mein badi peeda hai...Kyon nahin usne apna kaam theek se kiya?...Gas leak hone ki naubat nahin aati..
Main is baat ko maanta huun ki vaad-vivaad zara vyaktigat ho gaya hai...Lekin jis andaaz mein aapne ye comment likha, main khud ko kuchh likhne se rok nahin paaya...
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