शनिवार, 12 मई 2007

मत घोंटो कला का गला

९ मई को बड़ौदा की महाराज सयाजी राव यूनिवर्सिटी के फ़ाइनल वर्ष के छात्र चन्द्र मोहन को सेक्शन १५३ए के तहत धार्मिक वैमनस्य को बढ़ावा देने और धार्मिक भावनाओं को चोट पहुँचाने के आरोप में गिरफ़्तार किया गया और १० तारीख को उनकी ज़मानत देने से भी न्यायाधीश ने इंकार कर दिया.. (पूरा विवरण यहाँ देखें..) किया क्या है चन्द्रमोहन ने..? अपने एक आन्तरिक आकलन के हेतु से उसने एक चित्र बनाया जिसमें दुर्गा जीसस और शिवलिंग के प्रतीकों का प्रयोग किया.. ये कितना सही है कितना गलत.. यही सवाल है..

ये कौन तय करेगा कि कला का स्तर क्या हो.. कला की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की मर्यादा क्या हो..उसके अध्यापक करेंगे.. समाज का पढ़ा लिखा कलाकार तबका तय करेगा या संस्कृति के कुछ स्वनामधन्य ठेकेदार..?
कौन तय करेगा कि दवा में कैल्शियम की मात्रा कितनी हो.. ?
कौन तय करेगा कि पानी के नल में दबाव कितना हो..?
कौन तय करेगा कि बिजली के तार में आवरण प्लास्टिक का होगा या लोहे का.. ?

आप कहेंगे कि अगर कला धर्म के मामले में दखल देगी तो वो कला का मामला नहीं.. फिर वो धर्म का मामला है.. मैं माफ़ी चाहूँगा.. नहीं, आप अपने धर्म के अपमान मे लिये मुझे जेल नहीं भेज सकते.. मैं सांस लेता हूँ.. आपका अपमान होता है.. आप मुझे कहते हैं कि मैं अपनी कला को अपनी परिधि के भीतर करूँ.. आप अपने धर्म का पालन अपनी परिधि के भीतर करिये.. मैं क्या करता हूँ.. इस से आप का धर्म क्यों आहत होता है..

मैं भगवान को गोद में लेके पूजा करता हूँ.. आप मुझे मारने लगिये कि तुम ने अपमान किया..आप लोग मीरा को तो मार ही डालते.. वो तो कहती थी कि कृष्ण मेरा पति है.. फिर कुछ पुरुष ऐसे होते हैं जो कहते हैं कि मैं कृष्ण की पत्नी हूँ.. आप कहेंगे वो प्रेम है.. हम स्वीकार कर लेंगे.. पर ये शुद्ध अपमान है.. हमारे भगवान का.. हमारी परम्परा का..उन्हे भगवान से लेना देना नहीं वो सिर्फ़ अपमान करना चाहते हैं.. इस बात को समझिये कि हर पत्थर की मूर्ति भगवान नहीं होती.. हर रंगीन तस्वीर भी भगवान नहीं होती..

और फिर इस तरह की गई हर तुलना से भगवान आहत होते हैं तो राजस्थान के पोस्टरों का क्या जिसमें वसुन्धरा राजे को देवी और बीजेपी के नेताओं को भगवान का रूप दिया गया .. उस से आप को परेशानी क्यों नहीं होती.. जब कहा जाता है कि 'हाथी नहीं गणेश है, ब्रह्मा विष्णु महेश है'.. तो आप उस भीड़ को बंद क्यों नहीं करते जेल में.. क्योंकि वहाँ आपके पास दम नहीं है कि मायावती जैसी शक्ति के साथ पंगा लें.. और इसके लिये जिस प्रकार की राजसत्ता की आवश्यकता है वो आपके पास गुजरात में है.. यू पी में नहीं..

तो आप क्या करते हैं..एक निरीह छात्र को निशाना बनाते हैं.. वी एच पी के एक नेता नीरज जैन जो एक वकील भी है, वि.वि. परिसर में एक भीड़ के साथ घुसते हैं जबकि छात्रों का आन्तरिक आकलन चल रहा है.. श्री जैन अध्यापकों के साथ और छात्रों के साथ गाली गलौज करते हैं और धक्कामुक्की भी करते हैं.. इस मौके पर पुलिस जिन्हे उन्होने पहले ही खबर कर दी थी, वहाँ पहुँचती है और मोहन को गिरफ़्तार कर लेती है.. समाज के धर्म निरपेक्ष चरित्र को भंग करने के आरोप में..

एक मिनट ज़रा समझे यहाँ हुआ क्या.. कौन किसके परिसर में घुसा.. क्या चन्द्र मोहन ने अपना चित्र चर्च और मन्दिर में रख दिया..और ये सुनिश्चित किया कि लोगों की धार्मिक भावनाएं आहत हो जाय.. या नीरज जैन साहब ने अपने साथियों के साथ कला विभाग में घुसकर कला व्यापार को और पुलिस को साथ लाकर सुनिश्चित किया कि कला की अभिव्यक्ति बाधित हो जाय.. वि.वि. में इस प्रकार बिना आधिकारिक अनुमति के आना भी एक प्रकार की उल्लंघन है.. तो कौन किसे आहत कर रहा है.. ये आप नहीं सोचना चाहते..

लेकिन चन्द्रमोहन को आप मार पीट कर जेल में बंद कर देंगे और ज़मानत भी नहीं देंगे क्योंकि आप की सरकार है और उसके पास कोई राजनैतिक ताकत नहीं है.. और इस से आप को अपने घटिया मुद्दे को जिलाये रखने की मौका मिलता है.. अगर आप सचमुच समाज के नैतिक पतन के बारे में चिंतित है तो विज्ञापनों में, टी वी में, अखबारों में.. गंदे अश्लील संदेश बंद कीजिये.. कला और कलाकार को अपना काम करने दीजिये.. नैतिकता की इतनी चिंता है तो व्यापारियों को अपने माल के बारे में उल्टे सीधे झूठ प्रचारित करने से रोकिये.. उस तरह के झूठे संदेश करोड़ो लोगों के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को प्रभावित कर रहा है.. एक झूठे विज्ञापन को करोड़ों लोग देख रहे हैं.. पर एक आपत्तिजनक पेंटिंग को कितने लोग देखते हैं.. किसकी धार्मिक आस्था में बदलाव आ जाने वाला है..

आप मुसलमानों को असहिष्णु कह कर प्रचारित करते हैं.. आप क्या कर रहे हैं.. उन्होने कार्टून मामलो में आन्दोलन किया.. आपने तो कोई जनतांत्रिक विरोध नहीं किया आप ने तो कुछ वीएच पी के कार्यकर्ता और राज्यतंत्र के सहारे का शार्टकट पकड़ लिया.. जबकि इस बार तो आपको ईसाई मत के पादरी इमैन्योल कान्ट का भी सहयोग मिला है.. क्या लोकतांत्रिक विरोध में आपकी आस्था नहीं है.. मुझे ऐसा लगता है कि आपकी आस्था लोक में नहीं है.. सिर्फ़ तंत्र(सिस्टम) में है..पर अगर आप हिन्दू तंत्र में उतर गये तो आप की आँखे फट के हाथ में आ जायेंगी.. क्योंकि वहाँ आपको जो 'अश्लीलता' मिलेगी, जिसकी एक झलक आप यहाँ दी गई परम्परागत तस्वीरों से ले सकते हैं, वो आपको एक पूरी ज्ञान की धारा और और ज्ञानियों को नष्ट करने के लिये प्रेरित करने लगेगी..जिस धारा के एक सिरे पर गोरखनाथ थे.. और दूसरे पर अपने ओशो..

कुछ लोग ये भी कहेंगे कि ये तो सीधा-सीधा का़नून का मामला है.. का़नून के खिलाफ़ कुछ होगा.. कोई रपट लिखायेगा तो उस पर कार्यवाही होगी और न्याय अपना रास्ता लेगा.. इस बात में कितनी निश्छलता है ये हम सब जानते हैं.. गुजरात के दंगो और वनज़ारा मामले के बाद इन सब तर्कों का सहारा न लिया जाय.. ये नीयत का मामला है.. और श्री मोदी साहब आप की नीयत में दोष है..

13 टिप्‍पणियां:

azdak ने कहा…

“कौन तय करेगा कि दवा में कैल्शियम की मात्र कितनी हो.. ?
कौन तय करेगा कि पानी के नल में दबाव कितना हो..?
कौन तय करेगा कि बिजली के तार में आवरण प्लास्टिक का होगा या लोहे का.. ?”

इस क्षेत्र से संबंधित लोग नहीं तय करेंगे. क्‍या मालूम अपने काम से अजाने में धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने लगें. मंदिर के बाहर सड़क पर लोग कैसे और किस दिशा में खड़े हों, किधर देखें और देखते समय चेहरे के भाव क्‍या हों इसकी भी ये लिस्‍ट बना डालें. कालेज व विश्‍वविद्यालयों में भी एक‍ विस्‍तृत लिस्‍ट भिजवा दें कि ऐसे और इस तरह से कला के बारे में राय रखी जाय और लिखा व चित्रित किया जाये. मीरा को बैन कर दें. आपके पास कुछ अनाम बंधुओं का मोहब्‍बतनामा भिजवायें कि कैसे और किस-किस तरह की अश्‍लीलता छाप कर आपने शाम की उनकी चाय का सत्‍यानाश कर दिया! हद है. ये कोई भावना और विमर्श का तंत्र नहीं सिर्फ़ और सिर्फ़ गुंडातंत्र है, बात करने लायक इसके पास विचार हैं न विवेक. कमज़ोर पर लात फेंकना जानती है.

संजय बेंगाणी ने कहा…

आपके विचारो से सहमत हूँ.

साथ ही एक अनुरोध है, अगर आपने इन चित्रो को नहीं देखा है तो देख लें. ये नग्नता व सेक्स से आगे की चीज है. मानसीक विकृति.

संजय बेंगाणी ने कहा…

क्या हुसैन के विरूद्ध फैसला गुजरात में हुआ है?

अभय तिवारी ने कहा…

संजय भाई.. मुझे खुशी है कि इस विरोध में हम साथ-साथ है..
और ये सच है कि मैंने चित्र नहीं देखा है और मुझे इन्हे देखने में कोई रुचि भी नहीं है.. बताइये ऐसे विरोध का क्या फ़ायदा कि जिसे आप देखने लायक ना समझें वो विरोध के बाद और ज़्यादा लोगों द्वारा देखा जाय..और मैं चित्र का समर्थन भी नहीं कर रहा..मैं सिर्फ़ इस अलोकतांत्रिक तरीके का विरोध कर रहा हूँ..
हुसैन वाला फ़ैसला गुजरात में नहीं हुआ.. पर गुजरात जैसी प्रवृत्ति पूरे देश में मौजूद है. कहीं कम कहीं ज़्यादा.. और मेरे इस लेख को कतई भी गुजरात के खिलाफ़ ना समझा जाय.. गुजराती संस्कृति और उद्यमशीलता के लिये मेरे भीतर बहुत सम्मान है..

ढाईआखर ने कहा…

अभय जी, अभी मैं इसकी जानकारी देना ही चाह रहा था कि तब तक आपका पोस्ट दिख गया। अच्छा है। सवाल यह है कि कौन तय करेगा कि सही क्या है और गलत क्या। मेरी जानकारी के मुताबिक चन्द्रमोहन काफी प्रतिभावान कलाकार हैं। आन्ध्र प्रदेश के गरीब मां-बाप की उम्मीद हैं। इस देश के हर गरीब बच्चे की तरह इन्हें भी काफी मुश्किल से इनके मां-बाप ने अपना पेट काट कर पढाया। लेकिन इसी से किसी की प्रतिभा साबित नहीं होती। उसके कला शिक्षक, डीन सब उसकी प्रतिभा के कायल हैं। इसका अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि चन्द्रमोहन के बारे में बताते बताते उनके शिक्षकों की आंखें डबडबाने लगीं, उनकी आवाजें भर्रा गयीं। ...और वो भी उसी समुदाय से आते हैं जिस समुदाय की भावना आहत होने का आरोप चन्द्रमोहन पर लगा है। जिस नीरज जैन का जिक्र आपने किया है, उसके बारे में यह जान लेना भी जरूरी है कि बडौदा में सन् 2006 में दो सौ साल पुरानी दरगाह को ढहाने के बाद हुए दंगे में इसकी सक्रिय भागीदारी थी। फाइन आर्ट्स फैकल्टी के कार्यवाहक डीन ‍शिवाजी पण्ण्किर जब अपने छात्र के पक्ष में खडे हुए तो उन्हें भी देख लेने की धमकी दी गयी है। नीरज जैन के दबाव में वीसी ने उन्हें माफी मांगने के लिए कहा जिससे उन्होंने इनकार कर दिया। अंत में एक और जानकारी 14 मई को एमएस यूनिवर्सिटी, बडौदा के फैक्लटी ऑफ फाइन आर्ट्स के ‍शिक्षक, विद्यार्थी, देश के प्रमुख कलाकार, वकील, बुद्धिजीवी, समाजिक कार्यकर्ता विरोध प्रदर्शन करने जा रहे हैं। फैक्लटी के शिक्षकों ने पूरे देश से अपील की है कि वो कला और संस्कृति पर हो रहे हमलों के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद करें। क्या हम इनकी आवाज में आवाज मिलायेंगे...

बोधिसत्व ने कहा…

भाई गुजरात में यह कुछ नया तो नहीं हुआ है। यह तो हर उग्रपंथी संगठन का निश्चित अभियान है कि जहाँ जैसे बन पड़े अपनी ताकत की आजमाइश करते रहो । मामला अगर आस्था का हो तो सोने में सुहागा। गुजरात में ही नहीं इनका जोर चलेगा तो ये पूरे देश को अपने मन मुताबिक रास्ते पर हाँक कर ले जाएंगे । ये सिर्फ कला ही हर उस विधा का गला घोंटेंगे जिससे ये असहमत होंगे। ये तर्क नहीं ताकत की भाषा के पुजारी हैं। इनका कला या कविता से कोई दूर-दूर तक का कोई नाता नहीं है। और मेरा मानना है कि इनके पल्ले ताकत की भाषा ज्यादा पड़ती है। इन्हे इनकी ही भाषा में समझा कर ही रास्ते पर लाया या चलाया जा सकता है । इनके लिए पेंटिंग और पढ़ाई और परिसर सब एक से हैं । भाई इनसे लोकतंत्र या समझदारी की उम्मीद करना भैंस के आगे बीन बजाना है।
इस पंथ के अनुयाइयों का मेरा अपना अनुभव काफी नजदीक का रहा है। ये धर्म और संस्कृति के ध और स को भी ठीक से नहीं समझते हैं मैं दावे से कह रहा हूँ कि ये उस किसी भी जगह अपना दम नहीं दिखाते जहाँ इनके आका सरकार में न हो। आप चाहें तो मेरी बात की पड़ताल करके देख लें। अगर इन्हे तमाम हिंदू पौराणिक कथाओं के चक्कर दार गलियारे का एक अंश भी पढ़ा दिया जाए तो ये क्या करेंगे। इन्हे कौन बताए कि यम ने अपनी बहन यमी के साथ क्या किया। या ब्रह्मा ने अपनी पुत्रियों और पौत्रियों के साथ कैसा सुव्यवहार किया और इनके ही पुराणकारों ने इन तथ्यों पर कोई लीपा पोती नहीं की। इनका बस चले तो ये सारे भारत को और उसके तमाम उन पहलुओं को राख करके अपना कोई नया पंथ और नई संस्कृति रच कर लोगों के सिर पर बलपूर्वक लाद देंगे। इसलिए जहाँ और जैसे बन पड़े इनसे लोहा लेने के लिए हमेशा तैयार रहिए। यही एक उपाय मुझे दिखता है।

ढाईआखर ने कहा…

अभय जी, शिवजी पणिक्कर को डीन के पद से बर्खास्त कर दिया गया है।

chitranjan agrawal ने कहा…

mera manna he ke dharm ka photo kyou banaya jata hea kya dusre matter nai hea photo banana ke liya

बेनामी ने कहा…

आपकी बात सही है! हम विरोध में आपके साथ हैं!

Reyaz-ul-haque ने कहा…

यह कोई पहली बार नहीं हुआ है. क्या इस देश में कला और साहित्य और फ़िल्मों को डंडे के जोर पर हां का जायेगा? जो लोग इन पेंटिंग्स और हुसैन पर इस तरह का हंगामा मचा रहे हैं वे पुराणों और ऐसी ही दूसरी धार्मिक किताबों में क्यों नहीं देखते जहां बेहद अश्लील(संभोग तक के) वर्णन किये गये हैं. उन पर क्यों नहीं कुछ कहा जाता? हरिमोहन झा ने खट्टर काका में इन सभी का जिक्र किया है. धर्म और नैतिकता (नैतिकता ऐसी है कि कबूतरबाज और घूसखोर सांसद सबसे अधिक इन्हीं के गिरोह में हैं) के ये ठेकेदार उनको क्यों नहीं रामायण देखते जिसमें सीता का बहुत सूक्ष्म (अश्लीलता की हद तक) वर्णन किया गया है? आखिर यह फ़ासीवादी गिरोह कब तक इस तरह की करतूतें करता रहेगा? हम इसका विरोध करते हैं.

बेनामी ने कहा…

right.very logical.

ghughutibasuti ने कहा…

कला के विषय में कोई कलाकार ही बोले तो बेहतर है । आम आदमी तो यही कह सकता है कि अमुक चित्र मुझे अच्छा लगा, अमुक नहीं । हो सकता है कि इस चित्र से किसी को ठेस लगी हो । किन्तु यह चित्र तो अभी प्रदर्शित ही नहीं किया गया था । यह कला विभाग का आन्तरिक मामला था । जिस संस्कृति को हम बचाना चाहते हैं वहाँ गुरु का आदर होता था । कला विभाग के गुरु जनों पर हमला कर उस संस्कृति को आप कैसे बचाएँगे ?
भारत की संस्कृति इतनी विशाल है कि कोई पूरा जीवन भी उसे जानने में बिता दे तो भी कम
है । संस्कृति के रक्षक बनने से पहले उसका कुछ अध्ययन भी आवश्यक है । कुछ गहरे जाएँगे तो पाएँगे कि इसी संस्कृति में तंत्र भी था । ऐसा बहुत कुछ था जो हम विदेशी शासन के दौरान भूल गए । काम व नग्न शरीर गाली नहीं थे । कला के हाथ यहाँ बाँधे नहीं जाते थे । यदि ऐसा होता तो वात्स्यायन( क्या नाम सही लिखा है मैंने ?)को फाँसी लगा दी गई होती । खजुराहों के शिल्पकारों को जीवित गाढ़ दिया गया होता या हाथ तो काट ही दिये गए होते । बहुत से मन्दिरों में ताले लग गए होते ।
हमें पराये विक्टोरियन मूल्यों को कुछ पल ताक पर रख सोचना होगा कि संस्कृति के नाम पर कहीं हम अपनी संस्कृति को ही देश निकाला तो नहीं दे रहे । यह वह देश है जहाँ वाद विवाद होते थे धर्म पर व दर्शन पर । यहाँ तर्क करना मना नहीं था ।
लगभग एक सप्ताह पहले मैं इसी संस्कृति के विषय पर कुछ महिलाओं से पूछ रही थी कि वे किस संस्कृति की बात कर रही हैं ? यदि हम ये नए माप दंड अपनाएँ तो वह दिन दूर नहीं जब राधा का हमारे समाज में कोई स्थान नहीं होगा । हमारी मीराओं के भजन नहीं गाए जाएँगे । हमारी शकुन्तला कटघरे में खड़ी होगी । भरत के नाम से देश को नाम नहीं दिया जाएगा बल्कि शायद उसे किन्हीं और ही शब्दों से विभूषित किया जाएगा ।
हो सकता है कि चित्र में कुछ गलत रहा हो किन्तु उसे प्रदर्शित तो होने देते । या फिर स्वयं कानून के दायरे में रह और विश्व विद्यालय से बाहर रह कानून का सहारा लेते ।
यदि भगवान किसी एक की धरोहर है और यदि हममें या किसी में भी उसका अनादर करने की क्षमता है तो वह अपनी परिभाषा के अनुसार भगवान रह ही नहीं जाता । अतः जब जब मैं अपने भगवान के लिए लड़ने जाऊँगी तब तब मैं उसके अस्तित्व को नकारूँगी । जिस भगवान को तुम पूजते हो उसे क्यों सर्वशक्तिमान के पद से उतार रहे हो ? क्यों स्वयं को उसके स्थान पर रख रहे हो ?
उत्साह व समाज में नव चेतना जगाने की भावना बहुत अच्छी है किन्तु इस उत्साह को किसी सकारात्मक दिशा में लगाओ । जिस धर्म के लिए प्राण हथेली में लिए हो उसे तो कुछ पढ़ो ।
यहाँ मैं यह कहना चाहती हूँ कि मेरा ज्ञान बहुत सीमित है । यदि मैंने कुछ भी गलत कहा हो तो कृपया मुझे बताइये, किन्तु उत्तेजित हुए बिना और यह माने बिना कि मैंने कुछ भी किसी की भावनाओं को चोट लगाने के लिए कहा है ।
घुघूती बासूती

बेनामी ने कहा…

if jainise have guts they should come in the open .what are their fantasies?to become small to tall.obc dream they contoll,like idiot ganghi.modi ,what is his hate object?

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