सोमवार, 14 मई 2007

बिल्लू का बचपन २

उस दिन भी बिल्लू के साथ ऐसा ही हुआ था कि जब वह स्कूल पहुँचा तो स्कूल अपने गेट के उस तरफ़ और बिल्लू गेट के इस तरफ़ बंद हो गये थे.. तभी स्कूल के अंदर बंद एक बच्चे को बिल्लू ने दीवार पर से स्कूल के बाहर की पथरीली ज़मीन पर फाँदते हुए देखा.. वह बच्चा जिसका नाम राजू था बिल्लू का दोस्त नहीं था.. राजू के इस दुस्साहस में उसे एक विचित्र आकर्षण अनुभव हुआ..जो उसे राजू की दोस्ताना नज़दीकी पाने के लिए प्रेरित करने लगा..

राजू बरमा से आया था .. और उसकी ही कक्षा में पढ़ता था.. पर वह कक्षा के अन्य विद्यार्थियों से उम्र में बड़ा और क़द में ऊँचा था..बिल्लू ने राजू से पहले किसी बरमा के निवासी को नहीं देखा था पर नक्शे में बरमा की स्थिति को देखा था... बरमा भारत वर्ष के पूर्वी किनारे पर होता है.. और उसका एक बड़ा भाग दक्षिण में बंगाल की खाड़ी में लटका होता है.. कई सारे नक्शो में जो पोस्टरो और सांस्कृतिक कार्यक्रमों में बनाये जाते हैं.. बरमा वाला वह ज़मीनी हिस्सा भारत के नक्शे के भीतर ही दिखाया जाता है.. यह भी बिल्लू ने देखा था.. और इसी वज़ह से वह बरमा और भारत के एक नज़दीकी सम्बंध की एक कल्पित छाप भी मन में रखता था..

बिल्लू के मन में बरमा के निवासी की जो छवि थी उसमें उनकी नाक चपटी, आँखे छोटी और भिंची हुई होती थी लेकिन उसे समझ नहीं आता था कि राजू जो कि बरमा से आया है उसकी नाम आम हिन्दुस्तानियों से भी ज़्यादा ऊँची कैसे है.. सच में राजू की नाक उसके चेहरे का सबसे अनोखा पहलू थी जो माथे से निकलते ही अचानक उठ गई थी और फिर लगभग ९०अंश के कोण पर सीधे होठों की तरफ़ गिरती थी.. बड़ी सुडौल नुकीली और गठी हुई राजू की वह नाक बिल्लू को बहुत हैरान करती वह जब भे राजू को देखता तो उसकी नाक के विषय में सोचने लगता.. मगर उस दिन बिल्लू ने राजू की नाक के विषय में नहीं सोचा था.. क्योंकि उस दिन उसे राजू में कुछ और दिखा था जो उसकी नाक से भी ज़्यादा आकर्षक था..

राजू कूदते समय अपना संतुलन खो बैठा था और उसको अपने आपको पूरी तरह गिरने से बचाने के लिए हाथों का सहारा लेना पड़ा था.. सड़क के किनारे का एक नुकीला पत्थर उसकी हथेली में धँस गया था और हाथ के उस हिस्से में एक लाल रक्त की रेखा बन गई थी.. बिल्लू उसे मंत्रमुग्ध देख रहा था.. राजू ने रक्त की कोई परवाह ना की, अपने हाथों को झाड़ा, फिर हाथों से अपनी पैंट को झाड़ा और सबसे आखिर में अपने बस्ते को झाड़ा और चल पड़ा.. बिल्लू स्कूल की दुनिया की चिंताओं से बंधा वहीं खड़ा रहा.. मगर बिल्लू का मन उसको छोड़ राजू के साथ जाने लगा.. तो बिल्लू ने मुड़कर स्कूल के गेट की तरफ़ एक और बार देखा, स्कूल की चिंताओ की धूल को राजू की तरह अपने दिमाग के बस्ते से झाड़ा और वह भी चल पड़ा..

राजू धीरे धीरे बड़ी बेफ़िक्री से कदम रखता हुआ चल रहा था.. और बिल्लू उस तक पहुँचने की हड़बड़ाहट में जल्दी जल्दी.. दो चार कदम में ही बिल्लू राजू तक पहुँच गया.. राजू ने बिल्लू की ओर नहीं देखा जब बिल्लू ने राजू के ओर देखा.. वह दूर आकाश में देख रहा था.. 'कहाँ जा रहे हो?', बिल्लू ने पूछा.. 'कहीं नहीं' राजू ने लापरवाही के साथ कुछ समय के बाद बोला.. उतने समय बिल्लू उस अन्तराल के सन्नाटे को सहता रहा.. जवाब मिल जाने पर बिल्लू को ऐसी खुशी हुई जैसे कोई खोई हुई किताब मिल गई हो.. बिल्लू ने सोचा कि राजू तुमसे मतलब कहके उसे अपनी दुनिया से बाहर भी कर सकता था पर उसने सच्चा जवाब देकर दोस्ती का हाथ बढ़ाया है.. इसी बात को उसने खोई हुई किताब के बराबर मूल्यवान पाया.. और उसका सारा बदन हलका हो कर एक ऐसी लापरवाही से भर गया जो उसकी अपनी ना थी .. किसी को देख कर उसने जल्दी से सीख ली थी..

राजू जाकर नहर के किनारे पसर गया था और बिल्लू भी बस्ता कंधों से उतार कर उसकी बगल में बैठ गया था.. ये नहर स्कूल से सौ एक कदम की दूरी पर थी.. और धूप में चमकते पानी से लबालब भरी थी.. नहर के पार जाने के लिए सड़क पर एक पुल बना था जिस पर इक्का दुक्का सायकिल और स्कूटर आती जाती रहती थी.. नहर के पार एक विशाल कॉलोनी थी जो अभी पूरी तरह बनकर तैयार नहीं हुई थी.. कुछ मकान बन कर पूरी तरह तैयार थे पर उसमें लोग रहने के लिए अभी नहीं आये थे.. और कुछ बन रहे थे जबकि लोग उसमें आकर बस चुके थे.. बिल्लू कभी भी नहर के उस पार नहीं गया था लेकिन कई बार स्कूल जाने के पहले और कई बात स्कूल छूटने के बाद इसी नहर के किनारे खड़े होकर उसने नहर के पार की उस विशाल कॉलोनी को देर तक ताका था और उसके भीतर होने के अनुभव की कल्पना की थी..

राजू ने लेटे लेटे ही अपनी जेब में हाथ डालकर एक सिगरेट का पैकेट निकाला और फिर दुबारा उसी जेब में हाथ डाल कर एक माचिस की डिबिया.. बिल्लू ने आँख फाड़ कर उसे देखा.. 'पियोगे'. राजू ने उसकी तरफ़ मुड़कर पूछा.. बिल्लू कुछ न कह पाया उसने बस तेजी से अपनी गरदन को ना में हिलाया.. शायद राजू को इसी जवाब की उम्मीद थी.. उसने बिना कोई हैरानी जतलाये सिगरेट सुलगाई और धुआँ उगलने लगा..

(आगे फिर.. )

3 टिप्‍पणियां:

azdak ने कहा…

अरे, इतनी जल्‍दी फिर बिल्‍लू का बचपन? और अब साथ में राजू भी? और आप बच्‍चों को सिगरेट की गंदी लत दे रहे हैं? घर-परिवार के बीच बिल्‍लू का बचपन बिना टेंशन के पढ़ा जा सके, कृपया इसका खयाल रखे रहें, निर्मलानंद जी! आप निर्भय हैं पर परिवार और बच्‍चों में हमें बड़ा कदम फूंक फूंक कर चलना पड़ता है!

बेनामी ने कहा…

आज मिला पने टॉम सॉयर को हकल्बेरी फ़िन । पहले-पहल पपीते के पत्ते की डन्ठल में उसके सूखे पत्ते भर कर भी पी सकते थे,हमारी तरह ।

बोधिसत्व ने कहा…

अभय जी प्रमोद की चिंता पर कान न देते हुए आप बिल्लू की जीवन यात्रा के पड़ावों को बारीकी से दर्ज करें। हमें बिल्लू में बहुत कुछ अपना दिख रहा है।
बिल्लू की राह में कई राजू आएंगे मेरी राय में बिल्लू यानी आगे बढ़ने का नाम । मैं इंतजार करूँगा बिल्लू के बड़े होने का और यह भी कि बिल्लू का असली नाम क्या है

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