आज कल शाम होते ही दिल बड़ा उदास हो जाता है जिधर देखता हूँ उस सिम्त से एक बेमानीपन दिल में घर करने लगता है.. किसी चीज़ का कोई मक़्सद समझ नहीं आता.. जबकि लाखों लोग अपने मक़्सद लिए कीड़ों-मकोड़ों की तरह हर तरफ़ रेंग रहे हैं.. एक अजीब सी चीखोपुकार है.. खुद को बहुत समझाने की कोशिश करता हूँ कि हर ज़र्रा जीवन से लबालब भरा हुआ है.. बाहर से जो बेजान पत्थर समझ आता है वो भी चेतना के एक स्तर पर खड़ा हुआ है.. फिर अपनी ही आवाज़ इस नक़्क़ारखाने में दबती जाती है.. ये जो हस्ती है मेरी मानो किसी क़ैद में छटपटाती है..
इसी बीच पढ़े मीर के कुछ शेर थोड़ी राहत का सबब बनते हैं..
है तह-ए-दिल बुतों का क्या मालूम
निकले पर्दे से क्या, खुदा मालूम
यही जाना कि कुछ न जाना, हाय
सो भी एक उम्र में हुआ मालूम
इल्म सब को है यह, कि सब तू है
फिर है अल्लाह कैसा नामालूम
गर्चे तू ही है सब जगह, लेकिन
हम को तेरी नहीं है जा मालूम
11 टिप्पणियां:
हम समझते थे कि हमें है सब मालूम,
पर जब मालूम हुआ तो ये जाना कि जाना कुछ नहीं...
वाकई एक से एक सुकुनदेय शेर हैं मगर जनाब ये माज़रा क्या है?? थोड़ा कहीं पहाड़ों में तफरीह कर आयें ता हमारे बम्बई प्रवास में हमारे साथ एक शाम कुछ हमारी तरह बितायें...बाहर आ जायेंगे इस सोचिया दायरे से.
बस सुझाव मात्र है काहे से की आप पधार नहीं रहे न हमारे तक...इस चक्कर में.
शायद मौसम का दोष है या ज़माने का या ज़माने में अपनी अवस्थिति का। वैसे ऐसे अहसासों की एक निश्चित आवृत्ति भी होती है। छठे-छमासे घूमते-घांमते कहीं से आ ही जाते हैं।
इससे निकलने के तरीके के बारे में यही बात है कि वाइरल बुखार की दवा लेंगे तो एक हफ्ते में ठीक होगा, नहीं तो सात दिन मे :)
देके दिल हम जो हो गए मजबूर,
इसमें क्या इख्तियार है अपना ।
जिसको तुम आसमान कहते हो,
सौ दिलों का गुबार है अपना ।
हमारा मानना है कि ये मियादी बुखार है, अपने आप चला जाएगा।
अगर मैं कहूँ कि आपके सभी शब्द और उनके भाव मेरे ही हैं तो उम्मीद है आपको बुरा नहीं लगेगा...
ऐसा ही कुछ हम भी महसूस कर रहे हैं...
हम तो समझे थे कि निर्मल-आनंद प्राप्त करने और प्रदान करने के बाद अब कुछ रह नहीं जाता. लेकिन आश्वस्त हुए कि आप अभी बेचैन से हैं.
कुछ ऐसा ही दौरा एक बार बोद्धिसत्व जी जो पड़ा था तब आप की टिप्पणी कुछ अलग मूड की थी। कोई बात नहीं ऐसा एहसास हम सब को होता है सर्दी खांसी की तरह, जब तक रहता है बहुत परेशान करता है और कभी इसकी उम्र छोटी होती है तो कभी लंबी
bhayi ye duniya vale nahin samjhenge....hamare man ki bat.....jay ho...nirmalaanand ki ...main kal aap se har hal men mil raha hun....
नयन बंद कर भीतर देखो, सुन्दर मूरत दिेख जायेगी,
दृष्टि खोल कर बाहर देखो, सुन्दर मूरत मिल जायेगी - माँ
दादा,अनिल रघुराज जी ने आपको जो सलाह दी मान लेने जैसी है वरना ये तो फिर-फिर लौट आने वाले भाव हैं,सम्पर्क बनाए रखिये हम दोनो एक दूसरे की नब्ज देख कर इलाज के पत्थर फोड़ेंगे.....
हे ब्रेव मैन, अभया नन्द जी महाराज स्वस्थ्य रहिए ,मस्त रहिए ,हाँ दवाईयाँ खा कर जल्दी से जल्दी ठीक हो जाइए .......
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